रहीस सिंह का ब्लॉग: पड़ोसियों से संबंध बेहतर बनाने की चुनौती

By Rahees Singh | Published: December 30, 2018 05:28 AM2018-12-30T05:28:22+5:302018-12-30T05:28:22+5:30

यह अफगानिस्तान से भारत की कनेक्टिविटी को बढ़ाएगा और पाकिस्तान को दरकिनार करने में सहायक होगा. यह ग्वादर का काउंटर करने में मदद करेगा. इस वर्ष भारत को सेशेल्स के साथ एसम्पशन आइलैंड (सेशेल्स) में नौसेनिक अड्डा निर्मित करने संबंधी समझौता करने में सफलता मिली.

Rahis Singh's blog: Challenge to improve relations with neighbors | रहीस सिंह का ब्लॉग: पड़ोसियों से संबंध बेहतर बनाने की चुनौती

रहीस सिंह का ब्लॉग: पड़ोसियों से संबंध बेहतर बनाने की चुनौती

नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण के साथ ही ‘नेबर्स फस्र्ट’ की नीति की शुरुआत हुई और इसके बाद क्रमश: ‘हेड-ऑन डिप्लोमेसी’, ‘हार्ट-टू-हार्ट डिप्लोमेसी’, ‘टच थेरेपी बेस्ड डिप्लोमेसी’, ‘डिजिटल डिप्लोमेसी’, ‘मैरीटाइम डिप्लोमेसी’, ‘एक्ट ईस्ट’, ‘फास्ट ट्रैक बेस्ड डिप्लोमेसी’ आदि से गुजरते हुए ‘इनफार्मल डिप्लोमेसी’ पर पहुंच गई. अब सवाल यह उठता है कि क्या लोकप्रियता की विदेश नीति भारत को अनुकूल परिणाम भी दिला पाई? हां में उत्तर दिया तो जा सकता है लेकिन संपूर्ण सहमति के साथ नहीं. कारण यह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनय की शुरुआत पड़ोसी प्रथम से की थी लेकिन पड़ोसी भारतीय परिधि से कहीं छिटकते, सकुचाते या फिर विपरीत दिशा में मुड़ते दिखे. तब फिर आने वाले समय में भारत की विदेश नीति की प्रमुख चुनौती क्या यही होगी अथवा कोई और?

भारत की कूटनीति के मुख्य आयामों में- पाकिस्तान को वैश्विक कूटनीति से अलग-थलग करना, अमेरिका के साथ ‘कॉम्प्रिहेंसिव साङोदारी’ स्थापित करना, रूस के साथ संबंधों की ‘रिसेपिंग’ करना, मध्य-पूर्व के साथ ‘पुर्नसतुलन’ स्थापित करना, जापान के साथ आर्थिक और सामरिक साङोदारी का नया फलक तलाशना, खाड़ी देशों के साथ ‘परंपरा और मूल्यों’ की साङोदारी पर जोर देना, इजराइल के साथ संबंधों को टैबूज की श्रेणी से निकाल कर बाहर लाना और अन्योन्याश्रितता पर आधारित कूटनीतिक रिश्ते कायम करना तथा पड़ोसी देशों के साथ भ्रातृत्वपूर्ण समानता की साङोदारी स्थापित करना आदि रहे. लेकिन क्या पाकिस्तान पूरी तरह से अलग-थलग हो पाया या फिर चीन अपने सदाबहार दोस्त को लगातार मूल-धारा के राजनय में लाने के जो प्रयास कर रहा है, उसके कारण पाकिस्तान फिर-फिर भारत के खिलाफ ऐंठ कर खड़ा हो जाता है या अमेरिकी सहायता के बंद होने के बाद भी घुटनों के बल बैठता नहीं दिख रहा.

इस वर्ष भारत की ‘यूएस सेंटर्ड’ कूटनीति पर ब्रेक लगता दिखा. इसका कारण शायद यह रहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ‘अमेरिका फस्र्ट’ की नीति ने बराबरी की साङोदारी पर विराम लगा दिया और उनकी अनिश्चितता की विदेश नीति ने रणनीतिक साङोदारी पर पुनर्विचार करने के लिए विवश किया.

उल्लेखनीय है कि भारत और अमेरिका के बीच होने वाली ‘2 प्लस 2’ वार्ता दो बार टाली गई. अब या तो इसकी वजह से भारत चीन और रूस की तरफ ‘अनौपचारिक कूटनीति’ के लिए बढ़ा या फिर अमेरिका ने भारत के इन कदमों को देखते हुए धीमी गति से निर्णय लेने की कोशिश की. बहरहाल सितंबर महीने में भारत-अमेरिका ‘2 प्लस 2’ वार्ता संपन्न हुई और भारत ने उन चार फाउंडेशनल एग्रीमेंट्स में से एक पर हस्ताक्षर भी किए जिनके लिए अमेरिका बिल क्लिंटन के शासनकाल से भारत पर दबाव बना रहा है. हालांकि अमेरिका ‘2 प्लस 2’ वार्ता से पहले ही भारत को एसटीए-1 की श्रेणी प्रदान कर चुका है जो पहली बार किसी गैर नाटो देश के रूप में भारत को दी गई है, जो भारत की सफलता का प्रतीक है. इससे पहले वह भारत को 99 प्रतिशत डिफेंस टेक्नोलॉजी का प्रयोग करने की अनुमति दे चुका है और भारत को अपना ‘मेजर डिफेंस पार्टनर’ घोषित कर चुका है लेकिन रूस के साथ एस-400 सुपरसोनिक एयर डिफेंस सिस्टम संबंधी सौदे का वह विरोध करता रहा और जब यह सौदा हो गया तो संभवत: उसे अच्छा नहीं लगा. तो क्या आने वाले समय में अमेरिका पुन: पहले जैसा ही दिखेगा या फिर उसकी राहें थोड़ी जुदा होंगी.

चूंकि ट्रम्प एक अनिश्चित प्रशासक, अनिश्चित राजनय के पोषक और अनिश्चित उत्तराधिकारी हैं इसलिए भविष्य के लिए कुछ भी कहना उचित प्रतीत नहीं होता, लेकिन अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की पूरी तरह से वापसी के बाद स्थितियां बदलेंगी और अमेरिका का रुख भी. भारत ने ईरान के साथ बेहतर तालमेल करते हुए चाबहार बंदरगाह को विकसित करने और उसे खोलने में सफलता अर्जित कर ली. ध्यान रहे कि चाबहार को सामान्य तौर पर भले ही कारोबार से जोड़कर देखा जा रहा हो लेकिन यह ‘नार्थ-साउथ अंतर्राष्ट्रीय गलियारे’ से जुड़कर भारत के लिए मध्य-एशिया में प्रवेश हेतु ‘प्रवेश द्वार’ साबित होगा.

यह अफगानिस्तान से भारत की कनेक्टिविटी को बढ़ाएगा और पाकिस्तान को दरकिनार करने में सहायक होगा. यह ग्वादर का काउंटर करने में मदद करेगा. इस वर्ष भारत को सेशेल्स के साथ एसम्पशन आइलैंड (सेशेल्स) में नौसेनिक अड्डा निर्मित करने संबंधी समझौता करने में सफलता मिली. यदि वह इससे चाबहार को जोड़ ले जाता है तो स्वाभाविक रूप से चीन के ग्वादर-जिबूती लिंक को काउंटर करने में कुछ हद तक सफल हो सकता है. लेकिन अमेरिकी रवैया भारत-ईरान संबंधों में धीमापन ला सकता है.

Web Title: Rahis Singh's blog: Challenge to improve relations with neighbors

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे