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रहीस सिंह का ब्लॉगः चुनौतियों के बावजूद वर्ष 2022 में आगे बढ़ेगा भारत

By रहीस सिंह | Updated: January 1, 2022 12:57 IST

दुनिया कोविड-19 महामारी के नए चरण में प्रवेश कर रही है या फिर कर चुकी है, जिसके परिणाम अभी आने शेष हैं। संभव है कि वैश्विक राजनीति इस दौर में पुन: शिथिल पड़े और यूरोप व अमेरिका कुछ कदम पीछे हटने की मुद्रा में दिखें।

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वर्ष 2022 की शुरुआत होने तक भारत बैलेंसिंग पॉवर से थोड़ा आगे बढ़कर वैश्विक जिम्मेदारी निभाने की स्थिति में पहुंचता हुआ दिखाई दिया। हालांकि पिछले 2 वर्षो में कोविड-19 महामारी ने काफी चुनौतियां खड़ी कीं लेकिन भारत ने इसके बीच में भी मैत्री और सहकार के नए रास्ते खोजे और दुनिया के देशों का साथ लेकर आगे बढ़ने का कार्य किया। फिर भी वर्ष 2022 विदेश नीति के लिहाज से कैसा रहेगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उथल-पुथल के दौर से गुजरती दुनिया किन भू-राजनीतिक समीकरणों के सहारे सरकने का प्रयास कर रही है। दुनिया कोविड-19 महामारी के नए चरण में प्रवेश कर रही है या फिर कर चुकी है, जिसके परिणाम अभी आने शेष हैं। संभव है कि वैश्विक राजनीति इस दौर में पुन: शिथिल पड़े और यूरोप व अमेरिका कुछ कदम पीछे हटने की मुद्रा में दिखें। ऐसे में बहुत कुछ चीन और रूस के द्वारा उठाए गए कदमों पर निर्भर होगा। ये दोनों भारत के लिए नई राह बनाएंगे अथवा चुनौतियां पैदा करेंगे, इस पर हमारी विदेश नीति की दिशा काफी निर्भर रहेगी।

भारत का अगला कदम सन्निकट पड़ोस पर ध्यान देने का होगा, जिसके साथ वह पहले से ही एक्ट ईस्ट के जरिये तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है। दरअसल, दक्षिण पूर्व एशिया में 25 वर्षो से मजबूत विकास और लगातार बढ़ते क्षेत्रीय एकीकरण का दौर चल रहा है। लेकिन अमेरिका-चीन टकराव और कोविड-19 महामारी के कारण यह क्षेत्र अनिश्चितता और परिवर्तनशील व बाधित हो रही सप्लाई चेन सहित कुछ अन्य संकटों से गुजर रहा है जिसमें अनिश्चित व अस्थिर भू-राजनीति को भी शामिल किया जा सकता है। चीन इस क्षेत्र में व्यापक घुसपैठ कर चुका है। दक्षिण पूर्व एशिया के देश अब इससे उबरना चाहते हैं। भारत के लिए यह अवसर की तरह है लेकिन चूंकि भारत की अर्थव्यवस्था चीन के मुकाबले काफी छोटी है इसलिए भारत चाहकर भी इस क्षेत्र में आर्थिक दृष्टि से चीन का विकल्प नहीं बन सकता। भारत को इस दिशा में और व्यापक रणनीति बनानी होगी।

प्रधानमंत्री ने एक अवसर पर कहा था कि आज सिर्फ पड़ोसी वही नहीं हैं जिनसे हमारी भौगोलिक सीमाएं मिलती हैं बल्कि वो भी हैं जिनसे दिल मिलता है। इसी का परिणाम है कि भारत ने सार्क देशों से आगे बढ़कर पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ एक संवेदनशील कनेक्ट स्थापित किया है। मध्य-पूर्व फिलहाल इस समय उस प्रकार की भू-राजनीतिक सक्रियता का केंद्र नहीं है जैसा कि पिछले दो दशकों में देखा गया है। इसकी दो वजहे हैं। एक-कोविड 19 के कारण वैश्विक शक्तियां इस क्षेत्र में अपनी चालें नहीं चल पा रही हैं। दूसरी-इस क्षेत्र के कुछ देश आर्थिक पुनर्निर्माण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं, ऐसे में उन्हें उन देशों के सहयोग की जरूरत है जो वैज्ञानिक, अन्वेषी और नवोन्मेषी हैं। भारत इस मामले में काफी आगे है। ध्यान रहे कि पिछले कुछ वर्षो में इस क्षेत्र के साथ भारत ने व्यापक भागीदारी वाले रिश्ते बनाए हैं। उल्लेखनीय है कि भारत की व्यापार और ऊर्जा सुरक्षा होरमुज जलसंधि और बाव-एल-मंडेब खाड़ी की सुरक्षा से घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है। भारतीय नौसेना ने कई खाड़ी देशों के साथ नौसैनिक अभ्यासों में हिस्सा लिया है जिनमें कुवैत, यमन, बहरीन, सऊदी अरब, कतर, यूएई तथा जिबूती प्रमुख हैं। इस दौर में भारत-सऊदी अरब रिश्ते काफी ऊंचाई पर पहुंचे जिसमें प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत कूटनीति की अहम भूमिका रही। 2022 में भी भारत का प्रभाव बढ़ेगा।  

रही बात यूरोप की तो वह इस समय ऐतिहासिक संक्रमण और आंतरिक विसंगतियों से गुजरता हुआ दिख रहा है। यही नहीं, ब्रेक्जिट ने यह बता दिया है कि अब यूरोपीय संघ की एकता जिसे आप्टिमम यूनिटी कहा गया था, कृत्रिम थी और थोपी हुई थी। ऐसे में यूरोप 2022 में वैश्विक कूटनीति में कोई खास भूमिका नहीं निभा पाएगा। इसलिए भारत को भी उसके साथ औपचारिक रहकर आगे बढ़ने की जरूरत होगी। हां ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के साथ भारत को भू-राजनीतिक, रक्षा और सामरिक आवश्यकताओं की दृष्टि से द्विपक्षीय रिश्तों पर विगत की भांति आगे बढ़ना होगा।  

अमेरिकी ‘वार इन्ड्यूरिंग फ्रीडम’ के बाइप्रोडक्ट रूप में जो अफगानिस्तान हम देख रहे हैं, वह भारत को सीधी न सही, पर किसी न किसी प्रकार की बड़ी समस्या पैदा कर सकता है। तालिबान शक्ति और वैधता प्राप्त करता जा रहा है, यह चिंताजनक है। दूसरी तरफ पाकिस्तान कट्टरता के जिस दौर से गुजर रहा है उसकी दरुगध पूरे दक्षिण एशिया को प्रभावित कर सकती है। जो भी हो, भारत के समक्ष तमाम दृश्य अथवा अदृश्य चुनौतियां हैं और 2022 में इनमें वृद्धि भी हो सकती है। लेकिन उन सबका मुकाबला करते हुए भारत दुनिया को यह बताने में समर्थ साबित होगा कि वह एक बड़ी ताकत है और महाशक्ति बनने की प्रक्रिया में है।

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