भारत को दुनिया में एक नई पहचान देते प्रधानमंत्री मोदी, करिश्मा, इच्छाशक्ति और आत्मनियंत्रण का दुर्लभ संयोग
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 25, 2025 05:17 IST2025-09-25T05:17:45+5:302025-09-25T05:17:45+5:30
हाल में ही 75 साल के हुए मोदी ने अपने दस साल से अधिक के प्रधानमंत्री काल में जो कुछ हासिल किया है, उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रीगण उसे हासिल नहीं कर पाए थे.

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प्रभु चावला
भारत की विकास की कहानी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरीखे लोग कम ही होंगे, जिन्होंने दीर्घजीविता को चमक के साथ, सत्ता को दृढ़ता के साथ और सहनशीलता को प्रभावी तरीके से जोड़कर रखा हो. वडनगर जैसे एक छोटे शहर से नई दिल्ली में सत्ता के शीर्ष तक उनका सफर वस्तुत: गुमनामी से शिखर तक की यात्रा है. यह लंबी यात्रा सिर्फ उनके करियर के बारे में नहीं बताती, बल्कि इसमें करिश्मा, इच्छाशक्ति और आत्मनियंत्रण का दुर्लभ संयोग भी है. आरएसएस उनके वैचारिक अभिभावक हैं तथा आध्यात्मिक तौर पर वह भारत माता द्वारा पोषित हैं.
हिंदुत्व के वैचारिक सपने को दूसरे किसी नेता ने इतनी स्पष्टता से महसूस नहीं किया. हाल में ही 75 साल के हुए मोदी ने अपने दस साल से अधिक के प्रधानमंत्री काल में जो कुछ हासिल किया है, उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रीगण उसे हासिल नहीं कर पाए थे. मोदी ने भारत के सांस्कृतिक और संवैधानिक नक्शे को नया रूप दिया है. उन्होंने भव्य राम मंदिर का निर्माण कराया.
तीन तलाक को आपराधिक घोषित करने को जहां लैंगिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम बताया गया, वहीं यह पर्सनल लॉ में सुधार की उनकी प्रतिबद्धता के बारे में भी बताता है. पाठ्यक्रम सुधार में पुस्तकीय बदलाव को राष्ट्रवादी विमर्श से जोड़ा गया. ऐसे ही, काशी विश्वनाथ और उज्जैन के महाकाल मंदिर के पुनरुद्धार को धर्म और आधुनिकता के सम्मिश्रण के तौर पर देखा जा सकता है.
मोदी ने आस्था और राजनीति को अभिन्न बना दिया है. बतौर प्रधानमंत्री, उन्होंने लोगों की पुरानी आकांक्षाओं को अपनी सरकार की नीति बनाया. इस प्रक्रिया में उन्होंने भारतीय राष्ट्र राज्य को नया आकार ही नहीं दिया, बल्कि भारत की सभ्यतागत पहचान को संरक्षित करने का भी काम किया. अपने अनेक पूर्ववर्तियों के विपरीत मोदी ने अपनी खास छवि निर्मित की है- यह छवि अनुशासित, दृढ़ इच्छाशक्ति से पूर्ण तथा असाधारण ऊर्जा से लैस नेता की है. राजनेताओं की बदलती छवि के बीच उनका सामान्य रहन-सहन, निरंतर कर्म करने की प्रवृत्ति और संवाद में महारत उन्हें दूसरे राजनेताओं से बहुत अलग करती है.
मोदी प्रतीकात्मकता में विश्वास करते हैं. हालांकि वह संख्या, लक्ष्य और नीति को रणनीति में बदलने की क्षमता पर भी भरोसा करते हैं. अलबत्ता मोदी के नेतृत्व में निर्णय लेने की प्रक्रिया जिस आक्रामक तरीके से केंद्रीकृत हुई है, उसकी तुलना सिर्फ इंदिरा गांधी के तौर-तरीकों से ही की जा सकती है. मंत्रालय और पार्टी कार्यकर्ता दिशानिर्देश के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर देखते हैं.
इससे योजनाओं के क्रियान्वयन में बेशक तेजी आई है, पर सांस्थानिक स्वायत्तता का क्षरण हुआ है. ये कमियां शासन चलाने के मोदी के केंद्रीकृत तरीके के कारण पैदा हुई हैं. इन सबके बावजूद निष्पक्ष इतिहास यह प्रश्न पूछेगा : क्या उनके दौर में सबसे गरीब लोग अपनी गरीबी से उबर पाए हैं?
क्या उनके प्रशासन में सत्ता और बहुलतावाद में, शासन और मेल-जोल में, वैभव और वास्तविक न्याय में समन्वय बन पाया है? श्रीराम का यश उनके राज्यारोहण के कारण नहीं, उनकी करुणा भावना के कारण है, उनकी विजय के कारण नहीं, उनकी अंतश्चेतना के कारण है.
ठीक इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी की महिमा का आकलन सिर्फ मंदिर निर्माण या नारों से नहीं, बल्कि इससे भी होगा कि अपने कार्यकाल में भारत को वास्तविक अर्थ में एक धर्मनिरपेक्ष, बहुलतावादी, सहिष्णु, समृद्ध, शांतिपूर्ण, आत्मविश्वासी और दयालु गणतंत्र बनाने में उनका योगदान कितना रहा.