प्रकाश बियाणी का ब्लॉग: कर्ज से निपटने के रास्ते तलाशने ही होंगे

By Prakash Biyani | Updated: October 4, 2019 06:27 IST2019-10-04T06:27:33+5:302019-10-04T06:27:33+5:30

कर्ज के इस चक्र व्यूह से निकलने का बेसिक तरीका है खर्च घटे, कर वसूली बढ़े, सरकारी कंपनियां मुनाफा अर्जन करें, उनकी सरकारी फंडिंग बंद हो. निजी निवेश के अभाव में सरकारी खर्च घटाना कठिन है जो आज अर्थव्यवस्था का ग्रोथ इंजन है. इसी तरह इंफ्रास्ट्रक्चर पर सरकार खर्च घटा नहीं सकती और न ही प्रधानमंत्नी सम्मान, आयुष्मान भारत, मनरेगा या फसल बीमा योजना बंद कर सकती है.

Prakash Biyani blog: You have to find ways to deal with debt | प्रकाश बियाणी का ब्लॉग: कर्ज से निपटने के रास्ते तलाशने ही होंगे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फोटो- एएनआई)

विगत एक माह से वित्त मंत्नी और शेयर मार्केट लुका-छिपी खेल रहे हैं. अर्थव्यवस्था की सुस्ती और मंदी दूर करने की मंशा से वित्त मंत्नी जिस दिन राहत पैकेज घोषित करती हैं, शेयर मार्केट दौड़ पड़ता है. ऐसा लगता है कि इकोनॉमी ट्रैक पर आ गई है, पर दूसरे-तीसरे दिन शेयर सूचकांक जहां से दौड़े थे, वहीं लौट आते हैं. ऐसा कौन सा ब्लैक होल है जो दिखाई नहीं देता पर अर्थव्यवस्था को संभलने से रोक रहा है?

90 के दशक के वित्तीय संकट से इस पहेली को समझा जा सकता है. 1991-92 में देश का कुल कर्ज सकल घरेलू उत्पाद का 77.4 फीसदी हो गया था. अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में क्रूड आयल के मूल्य बढ़ने से चालू खाते (निर्यात कम, आयात ज्यादा) का घाटा बढ़ा. भुगतान शेष (बैलेंस ऑफ पेमेंट्स यानी विभिन्न देशों के बीच लेन-देन के निपटान) की समस्या खड़ी हो गई. आज 425 बिलियन डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार के कारण भुगतान शेष जैसी समस्या तो नहीं है, पर केंद्र और राज्यों का कुल कर्ज 131 लाख करोड़ रु. हो गया है जो जीडीपी का 69 फीसदी है. इसमें सब्सिडी भुगतान रोक देने जैसे ‘ऑफ बैलेंस शीट कर्ज’ शामिल नहीं हैं.

इसमें सरकारी कंपनियों जैसे एयर इंडिया, बीएसएनएल आदि का कर्ज और घाटा भी शामिल नहीं है. संक्षेप में कहें तो केंद्र और राज्य सरकारों पर ओपन और हिडन कर्ज इतना हो चुका है कि सालाना बजट की एक चौथाई राशि ब्याज भुगतान पर खर्च हो रही है. यही नहीं, कर वसूली की ग्रोथ दस साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है. सितंबर माह में जीएसटी कलेक्शन 2.67 फीसदी घटकर करीब 92 हजार करोड़ रु पए हुआ है जो लक्ष्य से कम है. मार्केट में मंदी का यह स्पष्ट संकेत है.

सरकार ही नहीं, देश का कॉर्पोरेट वर्ल्ड भी गले-गले तक कर्ज में डूबा हुआ है. ब्याज से ज्यादा मुनाफा अर्जन हो तो कारोबार में कर्ज लेना बुरा नहीं है अन्यथा हाल ही में जेट एयरवेज को क्रैश होते हम सबने देखा है. शेयर मार्केट में सूचीबद्ध 800 कंपनियों के यही हाल हैं. विगत 5 वर्षो में उनका कर्ज 30 फीसदी बढ़कर 32.03 लाख करोड़ रु. हो गया है जबकि मुनाफा इन वर्षो में 10 फीसदी बढ़कर 2.69 लाख करोड़ रु.  रह गया है. यही नहीं, इसमें कंपनी के प्रमोटरों का डायरेक्ट कर्ज शामिल नहीं है जैसे शेयर गिरवी रखकर कर्ज लेना. चालू वित्त वर्ष में यह कर्ज 1,23,248 करोड़ रुपए हो गया है. खाता-बही की इस लीपा-पोती  (विंडो ड्रेसिंग) के कारण पिछले दिनों अनिल अंबानी की कंपनियों के शेयर धराशायी हुए थे तो अब सुभाष चंद्रा ऐसे ही संकट का सामना कर रहे हैं. देश के बड़े कारोबारियों पर ब्याज का बोझ मुनाफे से ज्यादा हो जाने के कारण नए प्रोजेक्ट या कारोबार का विस्तार थम गया है और बेरोजगारी बढ़ रही है.    

देश के आम नागरिक को भी चार्वाक की थ्योरी ‘कर्ज लो और घी पियो’ की लत लग गई है. भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार देश में हाउस होल्ड कर्ज (हाउसिंग, मोटर कार, व्हाइट गुड्स क्र ेडिट कार्ड कर्ज) विगत छह वर्षो में दोगुना से ज्यादा 22.20 लाख करोड़ रुपए हो गया है. देश की बहुसंख्यक मध्यमवर्गीय आबादी आज क्रेडिट कार्ड या गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (एनबीएफसी) से कर्ज लेकर खरीद-फरोख्त कर रही है. ईएमआई चुकाने के बाद उनके पास आपातकाल के लिए बचत नहीं बचती. याद करें कि 2007 में अमेरिका में लेहमेन ब्रदर्स दिवालिया हुआ था तो ग्लोबल इकोनॉमी चक्रव्यूह में फंस गई थी. भारतीय बैंक तब कर्ज देने में उदार नहीं थे और हम बचत करते थे इसलिए हमारा देश तब अमेरिका और यूरोप जैसी दुर्दशा से बच गया था. अब यह संभावना भी खत्म हो गई है.

कर्ज के इस चक्र व्यूह से निकलने का बेसिक तरीका है खर्च घटे, कर वसूली बढ़े, सरकारी कंपनियां मुनाफा अर्जन करें, उनकी सरकारी फंडिंग बंद हो. निजी निवेश के अभाव में सरकारी खर्च घटाना कठिन है जो आज अर्थव्यवस्था का ग्रोथ इंजन है. इसी तरह इंफ्रास्ट्रक्चर पर सरकार खर्च घटा नहीं सकती और न ही प्रधानमंत्नी सम्मान, आयुष्मान भारत, मनरेगा या फसल बीमा योजना बंद कर सकती है.

कर वसूली तब तक नहीं बढ सकती जब तक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ग्रो न हो और मांग तथा निवेश न बढ़े. इसके लिए वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण ने कई जतन किए हैं. कॉर्पोरेट टैक्स घटाया है. जीएसटी की दरें कम की हैं. बैंकों से कहा है कि वे लघु और मध्यम उद्योगों को सरल शर्तो पर कर्ज दें. रिजर्व बैंक ने ब्याज दरें घटाई हैं. निवेश बढ़ाने के लिए विदेशी निवेशकों पर सरचार्ज वापस लिया है. सरकारी बैंकों को पूंजी दी है तो रियल एस्टेट के लिए राहत पैकेज घोषित किया है. उन्हें उम्मीद है कि आगामी फेस्टिवल सीजन में मांग बढ़ेगी. अच्छी बरसात होने से रबी की बंपर फसल आएगी. ग्रामीण आबादी की क्रय शक्ति भी बढ़ेगी.  

इन कठिन रास्तों के साथ वित्त मंत्नालय ने शार्टकट भी खोजे हैं. रिजर्व बैंक से सरप्लस मनी 1.23 लाख करोड़ लेने के बाद अब सरकार इंडियन अॅायल कॉरपोरेशन, भारत डायनॉमिक्स, मिश्र धातु और नाल्को जैसी नवरत्न कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने की तैयारी कर रही है.

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