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प्रकाश बियाणी का ब्लॉग: शेयर मार्केट में कोहराम मचाता कोरोना

By Prakash Biyani | Updated: March 13, 2020 09:05 IST

कोरोना वायरस 110 देशों में पहुंच गया है और 1.25 लाख संक्रमित लोगों में से 4200 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है. कोरोना के कारण ग्लोबल जीडीपी भी प्रभावित हुई है. 2019 की चौथी तिमाही में यह 3.2 फीसदी थी जो 2020 की पहली तिमाही में घटकर 0.7 फीसदी रहने की आशंका है.

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शेयर मार्केट के लिए कोरोना का प्रकोप बहुत बड़ी दुर्घटना बन गया है. 1 जनवरी से 12 मार्च के दौरान बीएसई सूचकांक 8500 और निफ्टी 3000 से ज्यादा अंक गिर गया है. 12 मार्च को एक सत्न में ही बीएसई सूचकांक 2919 और निफ्टी 868 अंक गिर गया और शेयरधारकों को 10 लाख करोड़ रुपए का अनुमानित नुकसान हुआ.  

कोरोना वायरस 110 देशों में पहुंच गया है और 1.25 लाख संक्रमित लोगों में से 4200 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है. कोरोना के कारण ग्लोबल जीडीपी भी प्रभावित हुई है. 2019 की चौथी तिमाही में यह 3.2 फीसदी थी जो 2020 की पहली तिमाही में घटकर 0.7 फीसदी रहने की आशंका है.

कोरोना वायरस ने ग्लोबलाइजेशन पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है. ग्लोबलाइजेशन का मतलब है- दुनिया के देशों की सीमा से परे उत्पाद, तकनीक और सूचना पहुंचे और सबको जॉब के अवसर मिलें. यह तभी संभव है जब दुनिया के सारे देशों में उद्योग लगें और सबको कारोबार के समान अवसर मिलें. पर यह नहीं हुआ.

चीन ने लोगों की जरूरत के अनुसार घटिया और बेहतर दोनों तरह के उत्पाद बनाए और उन्हें वैसे ही मूल्य पर सारी दुनिया में बेचा तथा ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बन गया. मैन्युफैक्चरिंग की लागत और स्केल को लेकर दुनिया का कोई देश चीन का मुकाबला नहीं कर पाया और कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर हो गया.

कोरोना वायरस का मुख्य केंद्र चीन का हुबेई प्रांत ऑटोमोटिव, आयरन, स्टील, पेट्रोकेमिकल, फूड प्रोसेसिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल, हाइड्रोपॉवर और लॉजिस्टिक का ग्लोबल कैपिटल है. वहां से कच्चे माल की आपूर्ति ठप होने से भारत चीन का द्विपक्षीय व्यापार प्रभावित हुआ है. हम 25 फीसदी ऑटो कंपोनेंट्स, 65 फीसदी दवाओं के इनपुट्स, 60 फीसदी मोबाइल फोन और सोलर एनर्जी के कंपोनेंट्स के लिए चीन पर निर्भर हैं. भारत चीन को ऑर्गेनिक केमिकल्स, कॉटन, प्लास्टिक सामान  आदि निर्यात करता है.

कोरोना वायरस की दुर्घटना से सबक सीखते हुए हमें चीन पर से निर्भरता घटानी चाहिए. इसके लिए जरूरी है कि देश में लेबर रिफार्म हो और उद्योगों के लिए भूमि अधिग्रहण आसान हो. ध्यान दें कि चीन में मैन्युफैक्चरिंग आर्डर की पूर्ति के लिए उद्योगों को अस्थायी और पार्ट टाइम लेबर मिलते हैं. चीन टेक्नोक्रेट्स तैयार करता है और हम ‘मास्टर इन आल, पर एक्सपर्ट इन निल’ इंजीनियर तैयार करते हैं. हमारे यहां भूमि अधिग्रहण में वर्षो लग जाते हैं जबकि चीन में मैन्युफैक्चरिंग शुरू करने में एक माह भी नहीं लगता.

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