बिहार की चुनावी राजनीति के केंद्र में फिर होंगे नीतीश कुमार!, बिहार में बहार है, फिर नीतीशे कुमार है

By राजकुमार सिंह | Updated: July 14, 2025 05:19 IST2025-07-14T05:19:06+5:302025-07-14T05:19:06+5:30

2005 में लालू-राबड़ी राज को विदा कर नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री भी बन गए, पर पिछले दिनों खुद वंशवादी राजनीति की राह पर आगे बढ़ते दिखे.

polls chunav 2025 Nitish Kumar again be center Bihar's electoral politics blog raj kumar singh | बिहार की चुनावी राजनीति के केंद्र में फिर होंगे नीतीश कुमार!, बिहार में बहार है, फिर नीतीशे कुमार है

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Highlights‘जीतनराम मांझी प्रयोग’ को अपवाद मानें तो तब से बिहार की सत्ता पर नीतीश ही काबिज हैं. मुख्यमंत्री पद बरकरार रहे. नारा भी रहा : बिहार में बहार है, फिर नीतीशे कुमार है. लोकसभा चुनाव से ऐन पहले उसे झटका देकर भाजपाई नेतृत्ववाले राजग में लौट गए.

बिहार की विडंबना देखिए कि दोनों बड़े दल तीसरे नंबर के दल की सत्ता की पालकी उठाने को मजबूर रहे हैं. तीन दशक पहले लालू प्रसाद यादव पर भ्रष्टाचार, जंगल राज और वंशवादी राजनीति के आरोप लगाते हुए नीतीश कुमार ने जनता दल तोड़ समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में समता पार्टी बनाते हुए सत्ता के लिए भाजपा से दोस्ती की राजनीतिक राह चुनी. 2005 में लालू-राबड़ी राज को विदा कर नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री भी बन गए, पर पिछले दिनों खुद वंशवादी राजनीति की राह पर आगे बढ़ते दिखे.

खुद नीतीश द्वारा किए गए ‘जीतनराम मांझी प्रयोग’ को अपवाद मानें तो तब से बिहार की सत्ता पर नीतीश ही काबिज हैं. हां, सुविधानुसार दोस्त बदलते रहे. शर्त यही कि मुख्यमंत्री पद बरकरार रहे. नारा भी रहा : बिहार में बहार है, फिर नीतीशे कुमार है. जिस विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के नीतीश सूत्रधार बताए जा रहे थे, लोकसभा चुनाव से ऐन पहले उसे झटका देकर भाजपाई नेतृत्ववाले राजग में लौट गए.

विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश के फिर पलटी मारने की चर्चाएं रहीं, पर अटकलों से आगे नहीं बढ़ पाईं. हां, इस बीच बेटे निशांत की मुख्यमंत्री आवास में होली से शुरू वंशवाद की चर्चाएं अभी थमी नहीं हैं.  
 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश का जदयू मात्र 43 सीटों पर सिमट गया था. फिर भी भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया,

पर नीतीश को लगा कि चिराग पासवान के उम्मीदवारों के जरिये जदयू को 43 सीटों तक समेटने की रणनीति भाजपा की ही थी.  चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी ने ढाई दर्जन सीटों पर जदयू को हरवा दिया,   वरना जदयू दूसरा बड़ा दल होता. आखिर 2015 के चुनाव में भी जदयू ने 71 सीटें जीती थीं. शायद भाजपा के ‘चिराग-दांव’ से खफा हो कर ही नीतीश बाद में लालू और कांग्रेस के महागठबंधन में चले गए.

मुख्यमंत्री नीतीश ही रहे. तेजस्वी को फिर उपमुख्यमंत्री पद पर संतोष करना पड़ा.  विपक्षी गठबंधन बनाते-बनाते नीतीश लोकसभा चुनाव से ठीक पहले फिर राजग में लौट गए. भाजपा को भी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उनकी वापसी फायदे का सौदा लगी.  फायदा हुआ भी, लेकिन अब साल के आखिर में विधानसभा चुनाव के लिए हर दल नए सिरे से समीकरण बिठाने जुटा है.

भाजपा ज्यादा सीटों के आधार पर अपना मुख्यमंत्री बनाना चाहेगी तो उपमुख्यमंत्री बनने के लिए नीतीश शायद ही तैयार हों.  तब क्या बेटे निशांत की राजनीतिक होली चुनाव पश्चात की संभावनाओं का संकेत थी? भाजपा, जदयू के बिना सरकार बना पाने की स्थिति में नहीं हुई तो उपमुख्यमंत्री बना कर निशांत की सत्ता राजनीति की सम्मानजनक शुरुआत करवा सकती है.

लालू-तेजस्वी का राजद सबसे बड़ा दल बना तो वह भी एक बार फिर नीतीश की पालकी उठाने के बजाय निशांत को उपमुख्यमंत्री बनाना पसंद करेगा, लेकिन विधानसभा में नंबर वन बनने की लड़ाई आसान नहीं है.  अचानक जाति जनगणना की घोषणा से लेकर मतदाता सूचियों के विशेष पुनरीक्षण अभियान तक हर कदम को चुनावी दांव से जोड़ कर देखा जा रहा है.

ऐसे दांव का असर तो होता है, लेकिन जाति-संप्रदाय के आधार पर मतदाताओं की गोलबंदी के मद्देनजर बिहार में सिर्फ इतने से बात शायद न बन पाए.  इसलिए राजग और इंडिया, जिसे बिहार में महागठबंधन कहा जाता है, के आंतरिक समीकरणों पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा.  

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