लाइव न्यूज़ :

पीयूष पांडे का ब्लॉग: संविधान के मन की बात

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 25, 2020 13:11 IST

संविधान ने तंज कसते हुए कहा-‘‘जिस तरह तुम्हारे जैसे 90 फीसदी लेखक-पत्नकार लिखते रहते हैं कि बांछें खिल गईं, लेकिन उन्हें नहीं पता होता कि शरीर के किस अंग में बांछें खिलती हैं, वैसे ही मेरी शपथ लेकर अपनी राजनीति चमकाने वाले 90 फीसदी राजनेताओं को नहीं मालूम कि मुझमें लिखा क्या है.’’

Open in App

बात पिछले साल के 26 जनवरी की है. मैं सुबह-सुबह अपनी निजी लाइब्रेरी में गया तो बहुत धीमी आवाज में सिसकने की आवाज सुनाई दी. सारी किताबें अलमारी से बाहर निकालीं तो अचानक संविधान बोल पड़ा- ‘‘तो याद आ ही गई मेरी?’’ मैं चौंका लेकिन नोटबंदी से लेकर एयर स्ट्राइक तक की खबरों के बाद चौंकना अब आदत में शुमार है. मैंने कहा- ‘‘किसी के रोने की आवाज सुनाई दी तो किताबों को उलट-पलट रहा था.’’‘‘मैं ही रो रहा था.’’ संविधान ने कहा.

मैंने कहा- ‘‘आज आपका बर्थडे है. आज क्यों रोना.’’

संविधान के कहा- ‘‘अलग-अलग अलमारियों में पड़े बरसों बरस हो जाते हैं. लेकिन कोई सुध लेने नहीं आता. किसी लाइब्रेरी में, विधानसभा में, दफ्तर में, कॉलेज में कोई मुझे खोलकर नहीं पढ़ता कि मैं आखिर क्या कह रहा हूं. यदा-कदा बाहर के कमरे से टेलीविजन की आवाज कान में आती है तो लगता है कि जैसे हर कोई बस संविधान-संविधान की दुहाई दे रहा है.’’

मैंने पूछा-‘‘नेता भी नहीं पढ़ते?’’

संविधान ने तंज कसते हुए कहा-‘‘जिस तरह तुम्हारे जैसे 90 फीसदी लेखक-पत्नकार लिखते रहते हैं कि बांछें खिल गईं, लेकिन उन्हें नहीं पता होता कि शरीर के किस अंग में बांछें खिलती हैं, वैसे ही मेरी शपथ लेकर अपनी राजनीति चमकाने वाले 90 फीसदी राजनेताओं को नहीं मालूम कि मुझमें लिखा क्या है.’’

संविधान की आवाज भारी हो गई. कहा- ‘‘सोच रहा हूं कि मुझे बनाते वक्त संविधान सभा में कितनी बहस हुई थी. सिर्फ इसलिए ताकि आने वाली पीढ़ी को उनके अधिकार मिल सकें. लेकिन हुआ क्या?’’

पिछले साल की संविधान की ये बात मुझे आज याद आई, जब पड़ोसी शर्माजी यह कहते हुए नाराज हो रहे थे कि ‘यार साल की शुरुआत में ही छुट्टी की लिंचिंग हो गई. रिपब्लिक डे संडे को पड़ गया. जब ब्रिटेन की रानी साल में दो बार जन्मदिन मना सकती है, देश में अरसे तक 1 अप्रैल को पेश होने वाला बजट 1 फरवरी को पेश किया जा सकता है तो गणतंत्न दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्वो को मनाने में भी थोड़ी लचीली नीति अपनाई जानी चाहिए.’  

सच में, जब समाज और सियासत की रीढ़ ही लचीली हो गई तो नीति भी लचीली ही होनी चाहिए.

टॅग्स :गणतंत्र दिवसइंडियालोकमत हिंदी समाचार
Open in App

संबंधित खबरें

भारतभारत जल्द ही मेट्रो नेटवर्क की लंबाई के मामले में अमेरिका को छोड़ देगा पीछे, केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर का दावा

भारतपरमाणु ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने के साथ जवाबदेही भी जरूरी

टेकमेनियाYouTube down: यूट्यूब हुआ डाउन, भारत और यूएस में हजारों यूजर्स ने वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के साथ समस्याओं की शिकायत की

क्रिकेटU19 Asia Cup 2025: श्रीलंका को हराकर अंडर-19 एशिया कप के फाइनल में पहुँचा भारत, PAK से होगी खिताबी जंग

भारतब्रिटिश साम्राज्य के विनाश के लिए गले लगाई शहादत

भारत अधिक खबरें

भारतकांस्टेबल भर्ती में पूर्व अग्निवीरों का कोटा 10 से बढ़ाकर 50 फीसदी, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बीएसएफ परीक्षा में की घोषणा, आयु सीमा में 5 साल तक की छूट

भारतBihar: जिस डॉक्टर का नकाब नीतीश कुमार ने हटाया था, उसने शनिवार को नहीं ज्वॉइन की ड्यूटी

भारतअरुणाचल प्रदेश जिला परिषद-पंचायत चुनावः अब तक घोषित 49 जिला परिषद में से 30 पर बीजेपी का कब्जा, ईटानगर नगर निगम में 14 सीट

भारतमहाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल की पत्नी शालिनीताई पाटिल का निधन, 94 साल में अलविदा, कांग्रेस सरकारों में मंत्री

भारतWATCH: भारत की पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान की दिशा में बड़ा कदम, इसरो ने 'गगनयान मिशन' की लैंडिंग के लिए जिम्मेदार पैराशूट का किया परीक्षण