नींद नहीं आती? आए तो बेचैनी में खुल जाती है? काम में मन नहीं लगता? बातें याद नहीं रहतीं? दिल में दर्द होता है? कुछ दिखाई नहीं देता? अकेले रहने का मन करता है? आपको ये ‘प्रेम रोग’ के लक्षण लग सकते हैं, लेकिन आजकल ऐसे लक्षणों से परेशान हैं कोरोना से ठीक हुए मरीज. जिस तरह दूध का जला छाछ भी फूंक फूंककर पीता है, उसी तरह कोरोना से चोट खाया सांस भी संभल-संभलकर लेता है.
लेकिन, जिस तरह घरों में चूहे-कॉक्रोच और मच्छर बिना किसी इजाजत के दाखिल होते हैं, उसी तरह तमाम सावधानियों के बावजूद कोविड से ठीक हुए मरीज के शरीर में ‘पोस्ट कोविड’ समस्याएं घुस आती हैं. ये समस्याएं शहर के एलआईजी फ्लैट में गांव से आए दूर के उन चाचाजी की तरह हैं, जो जाने को एक हफ्ते में जा सकते हैं और न जाने का मन बना लें तो कितने भी जतन कर लो नहीं जाते. कोविड उपरांत के जतन हैं होम्योपैथी, आयुर्वेदिक, यूनानी, बंगाली, झाड़फूंक, टोना-टोटका वगैरह (अपनी सुविधानुसार, जेबअनुसार और व्हाट्सएप ज्ञानअनुसार).
यदि कोविड से ठीक हुए मरीज के शरीर में कोविड उपरांत के लक्षण नहीं तो सोशल मीडिया पर सक्रिय कई कोविड पीड़ित संघ उन्हें सच्चा कोविड पीड़ित ही नहीं मान रहे. कई संघों का मानना है कि ऐसे फर्जी पीड़ित सिर्फ भविष्य में संभावित कोरोना पेंशन के लालच में स्वयं को कोविड पीड़ित बता रहे हैं. उधर, कई कोविड पीड़ित भी कोविड उपरांत की परेशानियां शरीर में न पाकर इसलिए परेशान रहते हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्होंने जिस बीमारी को कोविड मानकर घर को जेल बना दिया, वो कोविड नहीं बल्कि साधारण वायरल बुखार था.
बीमारी ठीक हो जाए लेकिन उसके बाद के हालात महीनों परेशान करें, ऐसा अमूमन होता नहीं, लेकिन कोविड में ऐसा है. जिन्हें कोविड नहीं हुआ, उन्हें पोस्ट कोविड लक्षणों को सुनकर ऐसे हंसी आती है, जैसे अवतार और बाहुबली देखने वाले आज के बच्चों को ‘मिस्टर इंडिया’ फिल्म के पुरातन स्पेशल इफेक्ट्स देखकर आती है.याद रखिए गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी ऐसी सामाजिक अवस्थाएं हैं, जिनका दर्द सिर्फ वो ही समझ सकता है, जिसने इन्हें जीया हो. उसी तरह ‘पोस्ट कोविड समस्याएं’ ऐसी शारीरिक अवस्था है, जिसे सिर्फ वही जान सकता है, जो उसमें रहा है. कृपया उनका मजाक न बनाएं.