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ब्लॉग: नेताओं के पीए का हमेशा से रहा है महत्व, परंपरा पुरानी है फिर राहुल गांधी को दोष क्यों दें?

By हरीश गुप्ता | Updated: September 8, 2022 10:30 IST

निजी सहायक कांग्रेस पार्टी में राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा रहे हैं और मुख्यमंत्रियों, कैबिनेट मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं ने इसके साथ रहना सीख लिया था.

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गुलाम नबी आजाद ने पार्टी छोड़ने से पहले, राहुल गांधी के निजी सहायकों (पीए) को उन सभी गड़बड़ियों के लिए जिम्मेदार ठहराया, जिनका कांग्रेस सामना कर रही थी. हालांकि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन आरोप लगाया कि ये सहायक राहुल गांधी तक पहुंच को अवरुद्ध करने के लिए जिम्मेदार थे. लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इस आरोप से हैरान हैं क्योंकि निजी सचिवों और निजी सहायकों को प्रधानमंत्रियों और सभी कांग्रेस अध्यक्षों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है. 

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की राजनीतिक यात्रा के दौरान एम.ओ. मथाई के महत्व को पुस्तकों में व्यक्त किया गया है. कांग्रेस पार्टी में लगभग 50 वर्ष बिताने वाले गुलाम नबी आजाद इंदिरा गांधी युग के दौरान आर.के. धवन और एम.एल. फोतेदार द्वारा निभाई गई भूमिका से पूरी तरह वाकिफ थे. यह कोई रहस्य नहीं है कि इंदिरा गांधी से उनकी सहायता के बिना कोई नहीं मिल सकता था. 

यह कांग्रेस पार्टी में राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा था और मुख्यमंत्रियों, कैबिनेट मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं ने इसके साथ रहना सीख लिया था. वी. जॉर्ज का महत्व सभी कांग्रेसी राजीव गांधी के पीए के रूप में जानते थे. राजीव गांधी के निधन के बाद, वे 1991 में सोनिया गांधी के सबसे शक्तिशाली निजी सचिव बने और लंबे समय तक उनकी सेवा की. लेकिन कई नेता अपनी खुद की कार्यप्रणाली बनाते हैं ताकि पीए अपनी भूमिका से आगे न बढ़ें. 

फिर भी, नेता अपने भरोसेमंद पीएस, ओएसडी और पीए पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं जो वीआईपी से मिलने के इच्छुक आगंतुकों को फिल्टर करना शुरू कर देते हैं. संयोग से, आर.के. धवन और एम.एल. फोतेदार पीवी नरसिम्हा राव सरकार में केंद्रीय मंत्री बने. वी. जॉर्ज बहुत कम अंतर से अपनी राज्यसभा सीट से चूक गए. तो राहुल गांधी को दोष क्यों दें!

पार्टी का प्रसार करना चाहते हैं पवार

ऐसे समय में जब भाजपा महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड और अन्य जगहों पर आक्रामक है, एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार इन दिनों दिल्ली और हरियाणा में अपनी पार्टी के आधार का विस्तार करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. एक तरफ उन्होंने दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशनल क्लब ऑफ इंडिया में पार्टी को मजबूत करने के लिए एक युवा सम्मेलन आयोजित किया, तो दूसरी तरफ हरियाणा से संबंधित पार्टी कार्यकर्ताओं की एक बड़ी सभा की अध्यक्षता की. 

उन्होंने पार्टी को मजबूत करने के लिए अन्य राज्यों में इस तरह के सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई है. अंदरूनी सूत्राें का कहना है कि पवार 2024 में लोकसभा चुनावों के दौरान अपनी पार्टी का फैलाव बढ़ाना चाहते हैं.  

नए एजी का चयन शीघ्र

एक अप्रत्याशित कदम के रूप में, प्रधानमंत्री ने भारत के अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल से अपना उत्तराधिकारी खोजने के लिए कहा था. 90 वर्षीय वेणुगोपाल को तीन महीने का सेवा-विस्तार दिया गया ताकि वे सरकार को उत्तराधिकारी खोजने में मदद कर सकें. अंतत: नए एजी के नाम की सिफारिश करने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया, जिसने तीन नामों को शॉर्ट-लिस्ट किया, सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता, राकेश द्विवेदी व सी.एस. वैद्यनाथन. इससे पहले मुंबई के डेरियस जे. खंबाटा का नाम चर्चा में था.

हरिवंश बने रहेंगे राज्यसभा के उपसभापति

राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश अपने पद पर बने रहने को लेकर असमंजस में थे क्योंकि उनकी पार्टी जनता दल (यू) ने भाजपा से नाता तोड़ लिया था. जद (यू) का राज्यसभा सांसद होने के नाते, उनके पद छोड़ने की उम्मीद थी. जब वह पिछले महीने पटना में पार्टी के सभी सांसदों और विधायकों की बैठक में शामिल नहीं हुए, तो इसे अवज्ञा के रूप में देखा गया. लेकिन बताया जाता है कि नीतीश कुमार ने उन्हें बता दिया था कि वे इस पद पर बने रह सकते हैं क्योंकि उन्हें अगस्त 2018 में पूरे सदन द्वारा सर्वसम्मति से चुना गया था और यह एक गैर-दलीय पद है.

हरिवंश नीतीश कुमार के खिलाफ बगावत करते नहीं दिखना चाहते, जिन्होंने उन्हें सार्वजनिक जीवन में लाया. उन्होंने नीतीश कुमार को एक संदेश भेजा था कि वे पार्टी के आदेश का पालन करेंगे. लेकिन अब मामला ठंडा हो चुका है. भाजपा भी सहज है क्योंकि वह राज्यसभा की कार्यवाही को चतुराई और कठोरता के साथ संभाल रहे हैं.  

और अंत में

28 अगस्त को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में गांधी परिवार के सभी तीन सदस्य शोक संतप्त होते हुए भी शामिल हुए क्योंकि एक दिन पहले ही सोनिया गांधी की मां का इटली में निधन हो गया था. गांधी परिवार 23 अगस्त को भारत से चला गया था और फिर भी उन्होंने वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सीडब्ल्यूसी की बैठक में शामिल होने का फैसला किया, क्योंकि वे संगठनात्मक चुनाव कार्यक्रम की घोषणा में देरी नहीं करना चाहते थे.

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