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पवन के वर्मा का ब्लॉगः सरदार पटेल को श्रद्धांजलि सर्वथा योग्य

By पवन के वर्मा | Updated: November 8, 2018 17:27 IST

जब पंडित नेहरू का देहांत हुआ तो उनके निवास को संग्रहालय बना दिया गया। इसके बजाय हमने तीन बंगलों को अनगढ़ ढंग से जोड़कर प्रधानमंत्री का वर्तमान निवास स्थल तैयार कर दिया है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का निवास भी संग्रहालय है।

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पवन के. वर्मा

सरदार पटेल की प्रतिमा पर विवाद क्यों हो? क्या इसलिए कि यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है? या इसलिए कि प्रधानमंत्री द्वारा इसके लोकार्पण का भव्य समारोह आयोजित किया गया? या इसकी लागत की वजह से, जो कि रिपोर्टो के अनुसार तीन हजार करोड़ रु। के करीब है? अन्य कारणों को भी गिनाया गया है। क्या प्रतिमाओं का निर्माण कालबाह्य चीज हो चुकी है और पैसों की बर्बादी है? या जैसा कुछ लोगों ने कहा, सरदार को उनके नाम पर होने वाले इस दिखावे से खुशी नहीं होती? हो सकता है मोदी और भाजपा द्वारा पटेल को इस तरह ‘अपनाए’ जाने से कांग्रेस नाराज हो। 

इस प्रतिमा के आलोचकों से मेरा इतना ही कहना है कि वे इन विकल्पों में से किसी को भी चुन सकते हैं। जहां तक मेरे दृष्टिकोण का सवाल है, मुङो लगता है भारत के लौह पुरुष के लिए एक उपयुक्त श्रद्धांजलि लंबे समय से अपेक्षित थी। यदि उनके गृह राज्य में उनकी प्रतिमा का निर्माण किया गया है जो सबसे ऊंची है, तो यह उचित ही है। 

जब पंडित नेहरू का देहांत हुआ तो उनके निवास को संग्रहालय बना दिया गया। इसके बजाय हमने तीन बंगलों को अनगढ़ ढंग से जोड़कर प्रधानमंत्री का वर्तमान निवास स्थल तैयार कर दिया है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का निवास भी संग्रहालय है। राष्ट्रीय राजधानी में एयरपोर्ट उनके नाम पर है। कनाट प्लेस को राजीव गांधी चौक नाम दिया गया। नई दिल्ली का सबसे बड़ा स्टेडियम जवाहरलाल नेहरू के नाम पर है। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं। एक पल के लिए भी मेरा इरादा देश के लिए नेहरू, इंदिरा और राजीव के योगदान को कम करके दिखाने का नहीं है। उन्होंने देश की अत्यंत विशिष्ट सेवा की और उन्हें याद किया जाना जरूरी है। इंदिरा और राजीव ने देश के लिए अपना जीवन न्योछावर किया। खासकर नेहरू की तो मैं बहुत सराहना करता हूं। लेकिन हमारे स्वतंत्नता संग्राम में कई अन्य शीर्षस्थ नेता भी थे, जिन्हें उनका देय नहीं मिला। 

अब भाजपा त्रुटि सुधार में लगी है। जैसे मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नामकरण दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर कर दिया। लेकिन भाजपा के पास स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े महापुरुषों की कमी है। इसलिए उसे सरदार पटेल जैसे उपयुक्त प्रतीकों की जरूरत है। मुङो लगता है ‘लौह पुरुष’ की उपाधि नरेंद्र मोदी जैसे व्यक्तित्व को आकर्षित करती है। इस महिमामंडन में निस्संदेह एक विडंबना है। भाजपा, जो कि मूलत: आरएसएस से जुड़ी है, इस बात को सुविधाजनक ढंग से भूल जाती है कि आरएसएस के बारे में सरदार की सोच क्या थी। वे आरएसएस की विचारधारा के प्रखर आलोचक थे। शायद भाजपा को लगता है प्रतिमा के आकार से लोग पटेल की विरासत के इस हिस्से को भूल जाएंगे। 

इन सब के बावजूद भारत के लौहपुरुष के प्रति इस श्रद्धांजलि को विवाद का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए। स्वाधीनता आंदोलन में सरदार पटेल का योगदान अपरिमित है। 31 अक्तूबर 2018 को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी जो उन्हें समर्पित की गई, वह हर देशभक्त भारतीय द्वारा समर्थन किए जाने योग्य है। 

टॅग्स :वल्लभभाई पटेल
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