अवधेश कुमार का ब्लॉग:पार्टियों का भाग्य तय करता नोटा

By अवधेश कुमार | Published: December 17, 2018 05:53 PM2018-12-17T17:53:48+5:302018-12-17T17:53:48+5:30

कई संगठनों ने आम चुनावों में मतदाताओं को तीसरा विकल्प देने की कानूनी लड़ाई लंबे समय तक लड़ी. पहली नजर में यह मांग तर्कसंगत लगती थी

Parties decide the fate of the parties | अवधेश कुमार का ब्लॉग:पार्टियों का भाग्य तय करता नोटा

फाइल फोटो

कई संगठनों ने आम चुनावों में मतदाताओं को तीसरा विकल्प देने की कानूनी लड़ाई लंबे समय तक लड़ी. पहली नजर में यह मांग तर्कसंगत लगती थी कि यदि किसी मतदाता को कोई उम्मीदवार पसंद न हो उस स्थिति में भी उसे उन्हीं में से एक उम्मीदवार को मत देने के लिए मजबूर करना लोकतांत्रिक व्यवहार नहीं हो सकता इसलिए एक विकल्प दिया गया, नोटा. इन्हें नन ऑफ द एवव यानी इनमें से कोई नहीं कहते हैं. जिस समय यह विकल्प मिला शायद ही किसी ने सोचा हो कि यह चुनाव में जीत का कारण भी बन सकता है.

यही सोचा गया कि इससे यह पता चलेगा कि किसी क्षेत्न में कितने लोगों के बीच उम्मीदवार अलोकप्रिय थे या कितने लोगों ने किसी न किसी कारण उम्मीदवारों या चुनावों के प्रति नाराजगी प्रकट की. इस आधार पर ही यह टिप्पणी की जाने लगी कि नोटा का कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि इसमें दिया गया वोट व्यर्थ जाता है. किंतु अब स्थिति बदलने लगी है. वास्तव में इससे आगे चलकर नोटा अब जीत और हार का भी फैसला करने लगा है. पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के संदर्भ में नोटा फिर इसी कारण चर्चा में है, इसने परिणामों को प्रभावित किया है. 

तेलंगाना, मिजोरम एवं छत्तीसगढ़ में इसका प्रभाव इसलिए नहीं दिखा कि यहां जीतने हारने वाले उम्मीदवारों के बीच का अंतर ज्यादा था. किंतु दो प्रमुख राज्यों राजस्थान एवं मध्य प्रदेश के चुनाव परिणामों पर इसने उलटफेर करने में भूमिका निभाई है. प्रदेश स्तर पर देखें तो राजस्थान में दोनों पार्टियों के बीच मतों का अंतर केवल 0.3 प्रतिशत है. यहां नोटा को कुल 1.3 प्रतिशत मत मिले हैं. आप खुद सोच सकते हैं कि इसने किस तरह परिणाम को प्रभावित किया होगा. मध्य प्रदेश में नोटा के हिस्से 1.3 प्रतिशत मत आए.  

राजस्थान में 15 विधानसभा क्षेत्नों में विजयी रहे उम्मीदवारों की जीत-हार के अंतर से ज्यादा वोट नोटा को मिले हैं. दोनों पार्टियों को इसने बराबर प्रभावित किया है. मध्य प्रदेश में 25 से ज्यादा सीटें ऐसी हैं जहां नोटा ने प्रत्याशियों की जीत हार तय की है. इस प्रकार नोटा बहुमत विहीनता की स्थिति लाकर राजनीतिक अस्थिरता का कारण बन सकता है. 

Web Title: Parties decide the fate of the parties

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