पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: दिक्कतें बढ़ाते बोतलबंद पानी पर प्रभावी रोक की जरूरत

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: February 5, 2021 14:34 IST2021-02-05T14:31:49+5:302021-02-05T14:34:09+5:30

कोई दो साल पहले ही सिक्किम राज्य के लाचेन गांव ने किसी भी तरह के बोतलबंद पानी के अपने क्षेत्र में बिकने पर सख्ती से पाबंदी लगा दी. यहां हर दिन सैकड़ों पर्यटक आते हैं लेकिन अब यहां बोतलबंद पानी या प्लास्टिक की पैकिंग का प्रवेश नहीं होता.

Pankaj Chaturvedi's blog: Need for effective ban on bottled water increasing problems | पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: दिक्कतें बढ़ाते बोतलबंद पानी पर प्रभावी रोक की जरूरत

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)

हम भूल चुके हैं कि मई-2016 में केंद्र सरकार ने आदेश दिया था कि अब सरकारी आयोजनों में टेबल पर बोतलंबद पानी की बोतलें नहीं सजाई जाएंगी, इसके स्थान पर साफ पानी को पारंपरिक तरीके से गिलास में परोसा जाएगा.

सरकार का यह शानदार कदम असल में केवल प्लास्टिक बोतलों के बढ़ते कचरे पर नियंत्रण मात्र नहीं था, बल्कि साफ पीने के पानी को आम लोगों तक पहुंचाने की एक पहल भी थी.

दुखद है कि उस आदेश पर कैबिनेट या सांसदों की बैठकों में भी पूरी तरह पालन नहीं हो पाया. कई बार महसूस होता है कि बोतलबंद पानी आज की मजबूरी हो गया है लेकिन इसी दौर में ही कई ऐसे उदाहरण सामने आ रहे हैं जिनमें स्थानीय समाज ने बोतलबंद पानी पर पाबंदी का संकल्प लिया और उसे लागू भी किया.

कोई दो साल पहले ही सिक्किम राज्य के लाचेन गांव ने किसी भी तरह के बोतलबंद पानी के अपने क्षेत्र में बिकने पर सख्ती से पाबंदी लगा दी. यहां हर दिन सैकड़ों पर्यटक आते हैं लेकिन अब यहां बोतलबंद पानी या प्लास्टिक की पैकिंग का प्रवेश नहीं होता.

यही नहीं अमेरिका का सेनफ्रांसिस्को जैसा विशाल और व्यावसायिक नगर भी दो साल से अधिक समय से बोतलबंद पानी पर पाबंदी के अपने निर्णय का सहजता से पालन कर रहा है.

सिक्किम में ग्लेशियर की तरफ जाने पर पड़ने वाले आखिरी गांव लाचेन की स्थानीय सरकार ‘डीजुमा’ व नागरिकों ने मिलकर सख्ती से लागू किया कि उनके यहां किसी भी किस्म का बोतलबंद पानी नहीं बिकेगा.

भारत की लोक परंपरा रही है कि जो जल प्रकृति ने उन्हें दिया है उस पर मुनाफाखोरी नहीं होनी चाहिए. तभी तो अभी एक सदी पहले तक लोग प्याऊ, कुएं, बावड़ी और तालाब खुदवाते थे.

आज हम उस समृद्ध परंपरा को बिसरा कर पानी को स्नेत से शुद्ध करने के उपाय करने की जगह उससे बेहद महंगे बोतलबंद पानी को बढ़ावा दे रहे हैं. पानी की तिजारत करने वालों की आंख का पानी मर गया है तो प्यासे लेागों से पानी की दूरी बढ़ती जा रही है.

पानी के व्यापार को एक सामाजिक समस्या और अधार्मिक कृत्य के तौर पर उठाना जरूरी है वर्ना हालात हमारे संविधान में निहित मूल भावना के विपरीत बनते जा रहे हैं जिसमें प्रत्येक को स्वस्थ तरीके से रहने का अधिकार है व पानी के बगैर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती.

घर पर नलों से आने वाले एक हजार लीटर पानी का दाम बमुश्किल चार रुपए होता है. जो पानी बोतल में पैक कर बेचा जाता है वह कम से कम बीस रुपए लीटर होता है यानी सरकारी सप्लाई के पानी से शायद चार हजार गुना ज्यादा.

इसके बावजूद स्वच्छ, नियमित पानी की मांग करने के बनिस्बत दाम कम या मुफ्त करने के लिए हल्ला-गुल्ला करने वाले असल में बोतलबंद पानी की उस विपणन व्यवस्था के सहयात्री हैं जो जल जैसे प्राकृतिक संसाधन की बर्बादी, परिवेश में प्लास्टिक घोलने जैसे अपराध धड़ल्ले से वैध तरीके से कर रहे हैं.

क्या कभी सोचा है कि जिस बोतलबंद पानी का हम इस्तेमाल कर रहे हैं उसका एक लीटर तैयार करने के लिए कम-से-कम चार लीटर पानी बर्बाद किया जाता है. आरओ से निकले बेकार पानी का इस्तेमाल कई अन्य काम में हो सकता है लेकिन जमीन की छाती छेद कर उलीचे गए पानी से पेयजल बना कर बाकी हजारों हजार लीटर पानी नाली में बहा दिया जाता है.

प्लास्टिक बोतलों का जो अंबार जमा हो रहा है उसका महज बीस फीसदी ही पुनर्चक्रित होता है, कीमतें तो ज्यादा हैं ही; इसके बावजूद जो जल परोसा जा रहा है, वह उतना सुरक्षित नहीं है, जिसकी अपेक्षा उपभोक्ता करता है. कहने को पानी कायनात की सबसे निर्मल देन है और इसके संपर्क में आकर सबकुछ पवित्र हो जाता है.

विडंबना है कि आधुनिक विकास की कीमत चुका रहे नैसर्गिक परिवेश में पानी पर सबसे ज्यादा विपरीत असर पड़ा है. जलजनित बीमारियों से भयभीत समाज पानी को निर्मल रखने के प्रयासों की जगह बाजार के फेर में फंस कर खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है.

Web Title: Pankaj Chaturvedi's blog: Need for effective ban on bottled water increasing problems

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