पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: ....तो तेजाब बरसता आसमान से
By पंकज चतुर्वेदी | Updated: November 18, 2020 15:12 IST2020-11-18T15:09:41+5:302020-11-18T15:12:44+5:30
प्रदूषण भले ही चरम पर पहुंचता जा रहा है कि लेकिन आतिशबाजी कायम है. दिल्ली-एनसीआर में इस बार भी दीपावली पर वही दृश्य नजर आया. हवा के जहरीले होने का बीते चार साल का रिकार्ड टूट गया.

दिवाली पर दिल्ली की हवा हुई और जहरीली (फाइल फोटो)
लाख डर, आदेश और अपील को दरकिनार कर दिल्ली व उसके आसपास की गगनचुबी इमारतों में रहने वाले लोगों ने दीपावली पर इतनी आतिशबाजी चलाई कि हवा के जहरीले होने का बीते चार साल का रिकार्ड टूट गया.
दीपावली की रात दिल्ली में कई जगह वायु की गुणवत्ता अर्थात एयर क्वालिटी इंडेक्स, एक्यूआई 900 के पार थी, अर्थात लगभग एक गैस चेंबर के मानिंद जिसमें नवजात बच्चों का जीना मुश्किल है, सांस या दिल के रोगियों के जीवन पर इतना गहरा संकट कि स्तरीय चिकित्सा तंत्र भी उससे उबरने की गारंटी नहीं दे सकता.
यह बात मौसम विभाग बता चुका था कि पश्चिमी विक्षोप के कारण बन रहे कम दबाव के चलते दिवाली के अगले दिन बरसात होगी. हुआ भी ऐसा ही. हालांकि दिल्ली एनसीआर में थोड़ा ही पानी बरसा और उतनी ही देर में दिल्ली के दमकल विभाग को 57 ऐसे फोन आए जिसमें बताया गया कि आसमान से कुछ तैलीय पदार्थ गिर रहा है जिससे सड़कों पर फिसलन हो रही है.
असल में यह वायुमंडल में ऊंचाई तक छाए ऐसे कण का कीचड़ था जो लोगों की सांस घोंट रहा था. यदि दिल्ली इलाके में बरसात ज्यादा हो जाती तो मुमकिन है कि अम्ल-वर्षा के हालात बन जाते. सनद रहे अधिकांश पटाखे सल्फरडाई आक्साइड और मैग्नेशियम क्लोरेट के रसायनों से बनते हैं जिनका धुआं इन दिनों दिल्ली के वायुमंडल में टिका हुआ है.
इनमें पानी का मिश्रण होते ही सल्फ रिक एसिड व क्लोरिक एसिड बनने की संभावना होती है. यदि ऐसा होता तो हालात बेहद भयावह होते और उसका असर हरियाली, पशु-पक्षी पर भी होता.
यही बात अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए चिंता का विषय बन गई है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की हवा बेहद विषाक्त है. इसके कारण राजनयिकों, निवेश आदि के इस क्षेत्र में आने की संभावना कम हो जाती है.
आतिशबाजी नियंत्रित करने के लिए अगले साल दीपावली का इंतजार करने से बेहतर होगा कि अभी से ही आतिशबाजियों में प्रयुक्त सामग्री व आवाज पर नियंत्रण, दीपावली के दौरान हुए अग्निकांड, बीमार लोग, बेहाल जानवरों की सच्ची कहानियां सतत प्रचार माध्यमों व पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से आम लोगों तक पहुंचाई जाए.