पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: जल विद्युत परियोजनाओं ने बढ़ाया हिमाचल में भूस्खलन का खतरा

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: August 27, 2024 11:12 IST2024-08-27T11:11:11+5:302024-08-27T11:12:21+5:30

नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी, इसरो द्वारा तैयार देश के भूस्खलन नक्शे में हिमाचल प्रदेश के सभी 12 जिलों को बेहद संवेदनशील की श्रेणी में रखा गया है. देश के कुल 147 ऐसे जिलों में संवेदनशीलता की दृष्टि से मंडी को 16 वें स्थान पर रखा गया है.

Pankaj Chaturvedi blog Hydropower projects increase the risk of landslides in Himachal | पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: जल विद्युत परियोजनाओं ने बढ़ाया हिमाचल में भूस्खलन का खतरा

जल विद्युत परियोजनाओं ने बढ़ाया हिमाचल में भूस्खलन का खतरा

Highlightsहिमाचल प्रदेश में बरसात के दौरान भूस्खलन और उससे तबाही बढ़ती जा रही हैहर बार सरकारी निर्माण का जबरदस्त नुकसान होता हैबारिश का एक महीना और बचा हुआ है और अभी तक कोई 64,894.27 करोड़ का नुकसान हो चुका है

पिछले कुछ वर्षों से हिमाचल प्रदेश में बरसात के दौरान भूस्खलन और उससे तबाही बढ़ती जा रही है. हर बार  सरकारी निर्माण का जबरदस्त नुकसान होता है. अभी तो बारिश का एक महीना और बचा हुआ है और अभी तक कोई 64,894.27 करोड़ का नुकसान हो चुका है. सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा किए गए निर्माणों में ही 30160.32 करोड़ बरसात की भेंट चढ़ चुका है. 

कई सड़क टूट गईं, बिजली के ट्रांसफाॅर्मर और तार टूट गए. राजधानी शिमला से लेकर सुदूर किन्नौर तक पहाड़ों के धसकने से घर, खेत से लेकर सार्वजनिक संपत्ति का जो नुकसान हुआ है उससे उबरने में राज्य को कई साल लगेंगे. वैसे यदि गंभीरता से देखें तो यह हालात भले ही आपदा से बने हों लेकिन इन आपदाओं को बुलाने में  इंसान की भूमिका भी कम नहीं है. जब दुनियाभर के शोध कह रहे थे कि हिमालय पर्वत जैसे युवा पहाड़ पर पानी को रोकने, जलाशय बनाने और सुरंगें बनाने के लिए विस्फोटक के इस्तेमाल के अंजाम अच्छे नहीं होंगे, तब हिमाचल की जल धाराओं पर छोटे-बड़े बिजली संयंत्र लगाकर उसे विकास का प्रतिमान बताया जा रहा था.

नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी, इसरो द्वारा तैयार देश के भूस्खलन नक्शे में हिमाचल प्रदेश के सभी 12 जिलों को बेहद संवेदनशील की श्रेणी में रखा गया है. देश के कुल 147 ऐसे जिलों में संवेदनशीलता की दृष्टि से मंडी को 16 वें स्थान पर रखा गया है. यह आंकड़ा और चेतावनी फाइल में सिसकती रही और इस बार मंडी में तबाही का भयावह मंजर सामने आ गया. ठीक यही हाल शिमला का हुआ जिसका स्थान इस सूची में 61वें नंबर पर दर्ज है. प्रदेश में 17,120 स्थान भूस्खलन संभावित क्षेत्र अंकित हैं, जिनमें से 675 बेहद संवेदनशील मूलभूत सुविधाओं और घनी आबादी के करीब हैं.

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, हिमाचल प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 97.42% भूस्खलन की संभावना में है. हिमाचल सरकार की डिजास्टर मैनेजमेंट सेल द्वारा प्रकाशित एक ‘लैंडस्लाइड हैजार्ड रिस्क असेसमेंट’ अध्ययन ने पाया कि बड़ी संख्या में हाइड्रोपावर स्थल पर धरती खिसकने का खतरा है. लगभग 10 ऐसे  मेगा हाइड्रोपावर प्लांट स्थल मध्यम और उच्च जोखिम वाले भूस्खलन क्षेत्रों में स्थित हैं. राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण  ने विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से सर्वेक्षण कर भूस्खलन संभावित 675 स्थल चिन्हित किए हैं. चेतावनी के बाद भी किन्नौर में एक हजार मेगावॉट की करछम और 300 मेगावाॅट की बासपा परियोजनाओं पर काम चल रहा है.

यह सच है कि विकास का पहिया बगैर ऊर्जा के घूम नहीं सकता लेकिन ऊर्जा के लिए ऐसी परियोजनाओं से बचा जाना चाहिए जो कि कुदरत की अनमोल देन कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश को हादसों का प्रदेश बना दे.

Web Title: Pankaj Chaturvedi blog Hydropower projects increase the risk of landslides in Himachal

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