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पारंपरिक ‘जल-तिजोरियां’ ही बचा सकती हैं बेपानी होने से

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: March 31, 2025 07:11 IST

यह तो बीते दो सौ साल में ही हुआ कि लोग भूख या पानी के कारण अपने पुश्तैनी घरों-पिंडों से पलायन कर गए.

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इस साल मौसम ने होली से पहले ही तीखे तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं. गहन जंगलों से आच्छादित ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों में मार्च के तीसरे हफ्ते में तापमान 41 से पार हो गया. महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तेलंगाना में तो लू से विकट हालात हो रहे हैं. जितनी अधिक गर्मी होगी, उतनी ही जल की मांग बढ़ेगी-पीने के लिए, स्नान आदि के लिए, खेत के लिए भी और कारखाने को भी.

समझना होगा कि धरती पर पानी की जरूरत या तो बरसात से पूरी होती है या फिर ग्लेशियर से. गर्मी के अनियंत्रित होने से इन दोनों जल-स्रोतों का गणित भी डगमगा रहा है. सबसे बड़ी  बात, जलवायु परिवर्तन की तीखी मार मौसम के सभी पूर्वानुमानों को गड़बड़ा रही है, सो पानी के लिए बरसात के भरोसे बैठना भी अब अनिश्चित सा हो गया है. अभी से अधिकांश छोटी नदियां सूख गई हैं और इसका सीधा असर तालाब-कुओं-बावड़ियों पर दिख रहा है.

ऐसे में हर समय जलसंकट के लिए तैयारी करके रखना  होगा- तैयारी का कोई रॉकेट विज्ञान है नहीं. बस अपने पुरखों ने पानी की हर बूंद को सहेजने के जो जंतर दिए थे, उन्हें सिद्ध कर रखना होगा.

भारत में विश्व की कुल आबादी का लगभग 18 प्रतिशत हिस्सा निवास करता है, जबकि देश में  पीने योग्य जल संसाधनों का मात्र चार प्रतिशत भाग ही उपलब्ध है. देश में अत्यधिक जल दोहन तथा अकुशल प्रबंधन के कारण भू-जल स्तर में निरंतर गिरावट आ रही है. इसके परिणामस्वरूप आने वाले समय में देश को गंभीर जलसंकट का सामना करना पड़ सकता है.

वैसे देश की जल कुंडली देखें तो वह बहुत निर्मल और नीली दिखती है लेकिन यह बात सरकारी आंकड़े भी मानते हैं कि जल संसाधन मंत्रालय के एकीकृत जल संसाधन विकास के लिए राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, उच्च उपयोग परिदृश्य में वर्ष 2050 तक जल की आवश्यकता 1,180 अरब घन मीटर होने की संभावना है.

देश में जल की उपलब्धता वर्तमान में 1,137 अरब घन मीटर है. वर्ष 2030 तक देश की 40 प्रतिशत आबादी को पीने योग्य स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं होगा. जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत 122 देशों में 120 वें स्थान पर है और देश के लगभग 70 प्रतिशत जल स्रोत प्रदूषित हैं.

हमारे देश की नियति है कि थोड़ा ज्यादा बादल बरस जाएं तो उसको समेटने के साधन नहीं बचते और कम बरस जाए तो ऐसा रिजर्व स्टॉक नहीं दिखता जिससे काम चलाया जा सके.

पानी हमेशा से एक अनिवार्य जरूरत रही है और कम बरसात, मरुस्थल जैसी विषमताएं प्रकृति में विद्यमान रही हैं- यह तो बीते दो सौ साल में ही हुआ कि लोग भूख या पानी के कारण अपने पुश्तैनी घरों-पिंडों से पलायन कर गए. उसके पहले का समाज तो हर तरह की जल-विपदा का हल रखता था. अभी हमारे देखते-देखते ही घरों के आंगन, गांव के पनघट व कस्बों के सार्वजनिक स्थानों से कुएं गायब हुए हैं.  

टॅग्स :Water Resources and Public Health Engineering DepartmentWater Resources Department
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