ब्लॉग: वानरों का पुराना स्वभाव तेजी से बदल रहा
By कृष्ण प्रताप सिंह | Updated: June 2, 2023 11:39 IST2023-06-02T11:27:18+5:302023-06-02T11:39:14+5:30
आपको बता दें कि अयोध्या में वानरों को ऐसी दावतें प्रायः मिलती रहती हैं। देश व प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से अयोध्या आये श्रद्धालु, पर्यटक और पुण्यार्थी तो उनको श्रद्धाभाव से चने व अमरूद वगैरह खिलाते ही हैं स्थानीय लोग भी उनसे पीछे नहीं रहते हैं।

फोटो सोर्स: ANI (प्रतिकात्मक फोटो)
लखनऊ: अयोध्या के धार्मिक हलकों में वानरों से जुड़ी एक और कथा चली आती है. यह कि 1986 में एक फरवरी को फैजाबाद के तत्कालीन जिला जज कृष्णमोहन पांडे ने एक वकील की अर्जी पर विवादित स्थल में बंद ताले खोल देने का आदेश दिया तो उनके न्यायालय में आकर अपना आसन ग्रहण करने के पहले से ही एक वानर उसकी छत पर जा बैठा था और तभी वहां से हटा था, जब ताले खोलने का आदेश ‘सुन’ लिया था.
पीएम मोदी के भूमि पूजन के समय वानरों के लिए किया गया था ये उपाय
आस्थावानों द्वारा अभी भी इस कथा की कई चमत्कारिक व्याख्याएं की जाती हैं. लेकिन तीन साल पहले 2020 में पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राममंदिर के निर्माण के सिलसिले में भूमि पूजन करने अयोध्या आए तो स्थानीय प्रशासन को इस अंदेशे से हलाकान होना पड़ा था कि नगरी के वानरों की धमाचौकड़ी उनके पूजन में विघ्न डाल सकती है.
तब इस विघ्न को रोकने के लिए उसे कई ऐहतियाती उपाय करने पड़े थे, जिनमें से एक के तहत कार्यक्रम स्थल के आस-पास की पांच जगहें चिह्नित करके वहां जलेबी, चने और अमरूद वगैरह रखवा दिए गए थे. इसका लाभ भी हुआ था: वानर वहां ‘दावत’ उड़ाने में व्यस्त हो गए थे और भूमिपूजन निर्विघ्न सम्पन्न हो गया था.
वानरों के लिए दावत आम बात है
प्रसंगवश, अयोध्या में वानरों को ऐसी दावतें प्रायः मिलती रहती हैं : देश व प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से अयोध्या आये श्रद्धालु, पर्यटक और पुण्यार्थी तो उनको श्रद्धाभाव से चने व अमरूद वगैरह खिलाते ही हैं, स्थानीय लोग भी उनसे पीछे नहीं रहते. कोई वानरों को बंदर कह दे तो बुरा मानते हैं सो अलग.
लेकिन अब कंक्रीट के जंगलों के निरंतर फैलाव के बीच वानरों का पुराना स्वभाव, जो उनके और अयोध्यावासियों के बीच सामंजस्य का वायस हुआ करता था, तेजी से बदल रहा और उन्हें हिंसा व बरजोरी पर उतरना सिखा रहा है, जिससे रोज-रोज परेशानियां झेल रहे अयोध्यावासी चाहते हैं कि उनके दैनंदिन जीवन में वानरों की बढ़ती दखलंदाजी घटे. अलबत्ता, वे चाहते हैं कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. यानी उनकी धार्मिक आस्थाओं की भी रक्षा हो, वे आहत होने से भी बच जाएं और वानरों से पीछा भी छूट जाए.