एनके सिंह का ब्लॉग: बेहतर स्वास्थ्य-शिक्षा से ‘आप’ की वापसी
By एनके सिंह | Updated: February 12, 2020 18:05 IST2020-02-12T18:05:59+5:302020-02-12T18:05:59+5:30

तस्वीर आम आदमी पार्टी के ट्विटर से साभार.
जरा सोचें, एक ऐसा समाज जिसमें संकीर्ण पहचान-समूह जैसे जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा या भय, अतार्किक भावनाएं और लालच व्यक्ति की सोच को प्रभावित न करते हों बल्कि उसके लिए, उसके परिवार के लिए और व्यापक समाज के लिए नैतिक रूप से सही, स्थायी और दूरगामी कल्याण ही उसके फैसले के नियंता हों. क्या तब कोई राजनीतिक दल असली जन-कल्याण को खारिज कर चुनाव में लालच, आरक्षण, भावना और संकुचित पहचान-समूह के सहारे वोट बटोरने का साहस कर सकेगा?
दिल्ली चुनाव परिणाम यही संदेश पूरे भारत के लगभग 92 करोड़ मतदाताओं को देते हैं. आम आदमी पार्टी (आप) को दिल्ली के 1.5 करोड़ मतदाताओं ने दुबारा अपना रहनुमा चुना है और वह भी प्रबल समर्थन देकर. क्या कारण थे इस चुनाव के पीछे, यह जानना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि देश की राजधानी वाले राज्य पर केंद्र में शासन कर रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूरी नजर थी और जीतने के लिए हर संभव प्रयास किया गया. देश के सबसे मकबूल नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनेक सभाएं की, दूसरे सबसे शक्तिशाली नेता और भारत के गृहमंत्री अमित शाह तो दिल्ली में डेरा ही डाल रखे थे.
अगर इन सब के बावजूद आप को जनता ने चुना तो क्या यह शाहीनबाग आंदोलन पर मतदाताओं की सकारात्मक मुहर थी? नहीं. यह संदेश था कि जो असल में हमारे स्वास्थ्य, हमारे बच्चों की शिक्षा हमारे कल्याण के लिए बिजली-पानी मुफ्त देगा, वही हमारी पसंद भी होगा. यह दल भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन के दौरान उपजे राष्ट्रव्यापी जनांदोलन की उपज है. लिहाजा 2015 में 70 में से 67 सीटों के साथ सत्ता में आने के बावजूद आप-सरकार को पग-पग पर बाधाएं मिलीं. लेकिन अपने 30,000 करोड़ रुपए के पहले बजट में एक तिहाई राशि शिक्षा के लिए और एक बड़ा अंश स्वास्थ्य के लिए आबंटित किया. करीब 2.10 करोड़ की दिल्ली की कुल आबादी के लिए सन् 2019 में आप सरकार का बजट दूना यानी 60 हजार करोड़ रुपए का हो गया. राजनीतिक दलों के लिए भी ये नतीजे एक सीख हैं. सबसे बड़ी बात यह थी कि दिल्ली सरकार ने मुफ्त सुविधाएं देने के बावजूद अपने राजस्व को बढ़ाया. यह सब कुछ भी इसीलिए संभव हुआ क्योंकि सरकार नें भ्रष्टाचार को लगभग खत्म कर दिया था और राजस्व बढ़ता गया.
क्या राज्य की सरकारें इस मॉडल को अख्तियार कर जनता के लिए मुफ्त बिजली-पानी देने का संकल्प ले सकती हैं? जनता को भी संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठकर अपनी सोच को दीर्घकालिक कल्याण के मुद्दों की ओर ले जाना होगा. यानी अपनी सोच को संकीर्ण भावनाओं से ऊपर ले जाना होगा