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निरंकार सिंह का ब्लॉग: सबसे बड़ी बीमारी बनने की ओर कैंसर

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: November 7, 2019 06:30 IST

हृदय रोग को पीछे छोड़कर कैंसर जल्द ही विश्व की सबसे बड़ी बीमारी बन सकता है. करीब एक दशक तक चले दो वैश्विक सर्वेक्षणों के अनुसार, ‘अमीर देशों में कैंसर के कारण सबसे ज्यादा लोग अपनी जान गंवा रहे हैं. इन देशों में हृदय रोग के मुकाबले दोगुनी मौतें कैंसर के कारण हो रही हैं.’

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ठळक मुद्देदेश में हर साल कैंसर के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए सात नवंबर को राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस मनाया जाता है.इसका उद्देश्य यह है कि कैंसर की यदि शुरुआत में ही जांच करा ली जाए तो रोगी की जान बचाई जा सकती है.

देश में हर साल कैंसर के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए सात नवंबर को राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य यह है कि कैंसर की यदि शुरुआत में ही जांच करा ली जाए तो रोगी की जान बचाई जा सकती है. पर देश में जिस तेजी से कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ रही है उससे शीघ्र ही यह दुनिया का सबसे बड़ा कैंसरग्रस्त देश हो जाएगा.

हृदय रोग को पीछे छोड़कर कैंसर जल्द ही विश्व की सबसे बड़ी बीमारी बन सकता है. करीब एक दशक तक चले दो वैश्विक सर्वेक्षणों के अनुसार, ‘अमीर देशों में कैंसर के कारण सबसे ज्यादा लोग अपनी जान गंवा रहे हैं. इन देशों में हृदय रोग के मुकाबले दोगुनी मौतें कैंसर के कारण हो रही हैं.’

अध्ययन में शामिल कनाडा स्थित क्यूबेक लावल यूनिवर्सिटी के गिल्स डेगनिस ने कहा, ‘हमारी रिपोर्ट के अनुसार 2017 में दुनिया भर में हुई मौतों का दूसरा प्रमुख कारण कैंसर था. 2017 में करीब 26 फीसदी मौतें इस खतरनाक बीमारी से हुई थीं. वहीं दिल की बीमारियों के मामलों में लगातार कमी आ रही है इसलिए आने वाले दशकों में कैंसर सबसे बड़ी बीमारी बन सकता है.’

कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली सर्जरी, कीमोथेरेपी व रेडियोथेरेपी की तीनों मुख्य विधियों में नए आविष्कार हुए हैं. इलाज अब पहले से सुविधाजनक, सफल और बिना साइड इफेक्ट के संभव हुआ है.

नई दवाइयां आई हैं, रेडियोथेरेपी में नई टेक्नोलॉजी आई है. सर्जरी में रोबोटिक व लैप्रोस्कोपिक सर्जरी जैसे कई नए सर्जिकल प्रोसीजर और कीमोथेरेपी इम्यूनोथेरेपी जैसी नई दवाओं ने ब्लड कैंसर व लिम्फोमा सहित अन्य तरह के कैंसर में परिणाम को क्रांतिकारी रूप से बदल दिया है.

इसमें संदेह नहीं कि आज अपने देश में कई अस्पताल, प्रयोगशालाएं हैं जो अगली पीढ़ी की लक्ष्यबद्ध डीएनए सीक्वेसिंग की सुविधा मुहैया कराती हैं और जिससे ट्यूमर पैदा करने और बढ़ाने वाले जेनेटिक बदलावों की पहचान की जा सकती है.

वे प्रयोगशालाएं जिस खर्च और लागत पर ये टेस्ट करती हैं, वह पश्चिम के देशों में आने वाले खर्च का छोटा सा हिस्सा है. कोलकाता के टाटा मेडिकल सेंटर के डायरेक्टर डॉ. मैमन चांडी के अनुसार कैंसर के लिए हिंदुस्तान में स्टेम सेल प्रत्यारोपण 12-25 लाख रु. में करवाया जा सकता है, जबकि अमेरिका में 2,50,000 डॉलर खर्च करने पड़ सकते हैं. जरूरत लोगों में जागरूकता पैदा करने की है.

टॅग्स :कैंसरइंडिया
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