एन. के. सिंह का ब्लॉग: शोषण के जाल में फंसे प्रवासी मजदूरों की ताकत सरकार शायद अब समझे!

By एनके सिंह | Updated: May 3, 2020 09:55 IST2020-05-03T09:55:26+5:302020-05-03T09:55:26+5:30

कोरोना संकट से निपटने में केंद्र सरकार ने दो ऐतिहासिक गलतियां कीं. उसे नौ करोड़ प्रवासी मजदूरों की अर्थव्यवस्था में भूमिका और उनकी मानसिक स्थिति का अंदाजा नहीं था जब मार्च में पहला लॉकडाउन घोषित हुआ. दूसरी गलती थी : घोषणा के दो दिन पहले ही कम से कम दो महीने का अनाज और कुछ धन देकर इन मजदूरों को अचानक पलायन से रोका जा सकता था लेकिन इसकी जगह उन्हें क्वारंटाइन की जलालत झेलने को मजबूर किया गया.

N. K. Singh blog: Govt may now understand power of migrant laborers stranded in web of exploitation! | एन. के. सिंह का ब्लॉग: शोषण के जाल में फंसे प्रवासी मजदूरों की ताकत सरकार शायद अब समझे!

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

अंग्रेजी कहावत है ‘एक चेन की ताकत उसकी सबसे कमजोर कड़ी के बराबर ही होती है.’ अर्थशास्त्न का सिद्धांत है: आर्थिक प्रक्रिया चक्रीय (चेन की तरह) होती है, अगर एक कड़ी निकाल दें तो वह चक्र पूर्ण नहीं होगा. यानी श्रमिक उत्पादन करता है, उत्पादन को उपभोक्ता चाहिए और उपभोग के लिए पैसा चाहिए जो श्रम से आता है. यही कारण है कि कर्नाटक-तेलंगाना-केरल सहित महाराष्ट्र, पंजाब और दिल्ली सरीखे औद्योगिक, कृषि-प्रधान और संपन्न राज्यों की सरकारें प्रवासी श्रमिकों से विनती कर रही हैं कि वे वापस गांव न जाएं, बल्कि ‘ठहरें’ और उन्हें आश्वस्त कर रही हैं कि उनकी सुविधा का ध्यान रखा जाएगा. इन राज्यों के उद्यमियों और किसानों ने हाथ खड़े कर दिए हैं यह कहते हुए कि बिना श्रमिकों के उत्पादन का पहिया नहीं चल पाएगा.    

कोरोना संकट से निपटने में केंद्र सरकार ने दो ऐतिहासिक गलतियां कीं. उसे नौ करोड़ प्रवासी मजदूरों की अर्थव्यवस्था में भूमिका और उनकी मानसिक स्थिति का अंदाजा नहीं था जब मार्च में पहला लॉकडाउन घोषित हुआ. दूसरी गलती थी : घोषणा के दो दिन पहले ही कम से कम दो महीने का अनाज और कुछ धन देकर इन मजदूरों को अचानक पलायन से रोका जा सकता था लेकिन इसकी जगह उन्हें क्वारंटाइन की जलालत झेलने को मजबूर किया गया.

आज जब 39 दिन बाद उन्हें ट्रेनों से भेजने का फैसला हुआ तो उनके द्वारा गंतव्य स्थान में कोरोना फैलाने का डर भी ज्यादा है जो उस समय भेजने पर न होता. खैर, अब देर से ही सरकार को यह अहसास हुआ और उन्हें तत्काल ट्रेनों से गृहराज्य भेजने का फैसला लिया गया.

फिलहाल ‘क्वारंटाइन की जिंदगी’ याद करते हुए यह मजदूर सिहर जाता है जब उससे सवाल पूछा जाता है, ‘क्या फिर वापस काम के लिए आओगे.’ उसका जवाब होता है ‘आधा पेट खा लेंगे पर वापस नहीं आएंगे.’ हालांकि यह कष्ट झेलने के बाद की प्रतिक्रिया है. इनके गृह-राज्यों में उद्योगों के अभाव, आबादी के दबाव और कृषि के समुन्नत न होने के कारण रोजगार नहीं हैं. आजीविका के लिए इन्हें वापस आना ही होगा. इसमें कुछ महीने लग सकते हैं. केंद्र को समझना होगा कि जितनी जल्दी इन करोड़ों मजदूरों को उनके गृहराज्य भेजा जाएगा उतनी ही जल्दी आने वाले दिनों में ये मजदूर फिर वापस रोजी के लिए आएंगे और कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्न का पहिया चलेगा.        

प्रवासी मजदूरों की वर्तमान मन:स्थिति समाजशास्त्नीय रूप से एक बड़ा संकेत है भविष्य के लिए. शहर में सेवा क्षेत्न में, पंजाब सरीखे कृषि-संपन्न राज्य की खेती में या गुजरात, केरल और तमिलनाडु में तमाम उद्योगों में लगे ये नौ करोड़ प्रवासी मजदूर भारत सरकार के सांख्यिकी रिकॉर्ड में कहीं भी नहीं हैं. कहना न होगा कि भारतीय अर्थ-व्यवस्था में ये अपने श्रम से सवा दो लाख करोड़ रुपए सालाना कमा कर अपने घरों को भेजते हैं और उत्पादन के जरिये जीडीपी में लाखों करोड़ रुपए का योगदान करते हैं. लेकिन इनकी स्थिति पर सरकारों ने कभी भी गौर नहीं किया.  

बहरहाल दो तथ्य साफ हैं - पहला : ये मजदूर इस समय केवल घर वापस जाएंगे चाहे इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े और दूसरा : कोरोना में फिर क्वारंटाइन से बचने के लिए ये फिलहाल कुछ महीने वापस अपने काम वाले स्थान पर नहीं लौटेंगे. सीधा अर्थ है - पंजाब की कृषि, दिल्ली और एनसीआर का सेवा क्षेत्न और गुजरात, महाराष्ट्र, सहित दक्षिण भारत के तमाम राज्य का उद्योग चलाना मुश्किल होगा. इसका एक ताजा उदाहरण है पंजाब जहां इनकी कमी के चलते किसानों ने धान की जगह कम श्रम वाले कपास और मक्के की खेती शुरू की है जबकि 60 प्रतिशत उद्यमियों ने सरकार से कहा कि वे कुशल और अकुशल कारीगरों की जबरदस्त कमी के कारण फैक्ट्री नहीं चालू कर सकेंगे.

Web Title: N. K. Singh blog: Govt may now understand power of migrant laborers stranded in web of exploitation!

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