अपनी नदियों को डुबाने के कारण ही डूबती है मायानगरी, पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग
By पंकज चतुर्वेदी | Published: July 30, 2021 04:03 PM2021-07-30T16:03:05+5:302021-07-30T16:04:30+5:30
मुंबई की डूब का असली कारण महानगर की चार नदियों को सीवर में बदल देना है. ये नदियां महज बरसात के पानी को समेट कर सहजता से समुद्र तक पहुंचाने का काम ही नहीं करती थीं.
हर साल की तरह इस साल भी जब बादल झूमकर बरसे तो देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की रफ्तार थम गई. जो सड़कें सरपट यातायात के लिए बनाई गई थीं, वहां नाव चलाने की नौबत आ गई.
किसी राज्य या दुनिया के कई देशों के सालाना बजट से ज्यादा जिस नगरपालिका की आमद-रफ्त हो, वहां बीते एक दशक में 16 हजार करोड़ का नुकसान केवल जलभराव के कारण होना इस रुपहले महानगर के अस्तित्व पर चिंता की लकीरें खींचता है. जब कभी मुंबई के डूबने की घटना होती है तो उसका सबसे ज्यादा दोष पुरानी सीवर लाइन पर मढ़ दिया जाता है.
जबकि हकीकत यह है कि मुंबई की डूब का असली कारण महानगर की चार नदियों को सीवर में बदल देना है. ये नदियां महज बरसात के पानी को समेट कर सहजता से समुद्र तक पहुंचाने का काम ही नहीं करती थीं, इन नदियों के तट पर बसे मैंग्रोव वनों के चलते बाढ़ बस्ती में जाने से ठहर जाती थी.
सन अस्सी से 2020 तक के चार दशकों में इस महानगर की आबादी चार गुना हो गई, और समुद्र से घिरे इस आबादी के समुंदर में जमीन को बढ़ाना तो संभव था नहीं, सो चारों नदियों के किनारे उजाड़े गए, महानगर की सुरक्षा दीवार कहलाने वाले मैंग्रोव जंगलों को ही रास्ते से हटा दिया गया. सभी जानते हैं कि मुंबई कभी समुद्र के बीच में सात द्वीपों का समूह था.
पहले पुर्तगाली, उसके बाद में ब्रितानी शासकों और उसके बाद हमारे राजनेताओं ने खाड़ियों में मलबा भर कर जमीनों से सोना बनाया और महानगर को तीन तरफ समंदर से घिरा एक बेतरतीब अर्बन स्लम बना दिया. बांद्रा से लेकर नरीमन पाइंट तक कई मशहूर जगहों पर अभी कुछ दशकों पहले तक अथाह सागर लहराता था. संकरे से शहर के चप्पे-चप्पे पर सीमेंट पोत दी गई.
जाहिर है कि बरसात होने पर ऐसी जगह कम ही बची जहां कुदरत की नियामत वर्षा बूंदें धरती में जज्ब हो पातीं. अब जो भी पानी गिरता है, वह नालियों से होकर समुद्र में जाता है. जहां व्यवधान मिला, वह वहीं ठिठक जाता है. हर बार हिंदमाता, दादर, परेल, लालबाग, कुर्ला, सायन, माटुंगा, अंधेरी, मलाड के अलावा वे सभी इलाके जहां नदियों का मिलान समुद्र से होता है, घुटनों से कमर तक पानी में होते हैं.
मुंबई को डुबाने का पाप तो यहां के बाशिंदों ने तभी अपने ही हाथों से लिख दिया था, जब यहां की चार नदियों- मीठी, दहिसर, ओशिवारा और पोइसर को उपेक्षित किया गया था. नदियों में घर का निस्तार व औद्योगिक कचरा डाल कर गंदे नाले में बदल दिया गया. नदी के किनारों को सिकोड़ कर वहां बस्तियां बसा ली गईं. वहां लगे मैंग्रोव जंगलों को कचरादान बना दिया गया.
एनजीटी में कहा गया कि अभी बचे 6600 हेक्टेयर मैंग्रोव वन में 8000 टन प्लास्टिक कचरा भरा हुआ है. मीठी नदी और माहिम की खाड़ी के इलाकों में मैंग्रोव के जंगल हुआ करते थे लेकिन बिल्डरों ने विकास की दौड़ में इनका विनाश किया. एक आकलन कहता है कि जमीन और समुद्र के बीच एक रक्षा कवच बनाने वाले मैंग्रोव के जंगलों का 40 फीसदी हिस्सा 1995 से 2005 के बीच तहस-नहस हुआ, कुछ बिल्डरों ने बर्बाद किया, कुछ पर अतिक्रमण करके झुग्गी बस्तियां बनीं
सन् 2005 की भयावह बाढ़ के कारणों की जब जांच हुई थी, तब पता चला था कि तबाही की असली वजह मीठी नदी का उफान था. मीठी मुंबई शहर की सबसे लंबी नदी है. यह संजय गांधी नेशनल पार्क के करीब से निकल कर साकीनाका, कुर्ला, धारावी होते हुए 25 किलोमीटर का सफर तय करती है व माहिम की खाड़ी में समुंदर में मिल जाती है.
मुंबई एयरपोर्ट बनाने के लिए मीठी नदी के दोनों तरफ दीवार बनाकर चार बार समकोण में मोड़ा गया. यहां अब खूब जलभराव होता है क्योंकि वहां नदी का कोई तट बचा ही नहीं जहां पानी धरती पर रिसकर भूगर्भ में जा सके. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मीठी नदी के तट का अतिक्रमण झुग्गीवासियों ने किया है पर मुंबई हवाई अड्डे के कारण भी मीठी नदी के बेसिन का संकुचन हुआ है.
मीठी नदी पर भवन निर्माण कंपनियों ने बहुमंजिला इमारतें बना दीं. इस नदी तट से अतिक्रमण हटाने की बात जब जांच समिति ने सुझाई तो झुग्गी वालों को उजाड़ने की योजना बनाई गई लेकिन आलीशान अट्टालिकाओं पर सभी मौन रहते हैं. 12 किलोमीटर लंबी दहिसर नदी श्रीकृष्ण नगर, कांदरपाड़ा के रास्ते मनोरी क्रीक में अरब सागर में समाती है.
सात किलोमीटर लंबी ओशिवरा नदी में अब भवन निर्माण का मलबा भर दिया गया है तो लगभग उतनी ही लंबी पोइसर नदी पूरी तरह प्लास्टिक कचरे से जाम है. इसका मार्वे की खाड़ी तक का रास्ता अब गुम सा गया है. सरकारी भाषा में ये चारों नदियां अब मृत हैं.
चूंकि इन नदियोंं में अब लगभग प्रवाह बंद है, सो बरसात होते ही इसकी तरफ आता पानी उफन कर बाहर आ जाता है. यदि उसी समय हाई टाइड अर्थात समुद्र में ज्वार का काल हो तो उन नदियों के समुद्र में मिलने के स्थान पर समुद्र जल उल्टी मार मारता है. परिणामस्वरूप नदियों को सोखकर बने घर, कॉलोनी, सड़क बाजार जलमग्न हो जाते हैं.