पानी और पेट्रोल की मुश्किल में मराठवाड़ा

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: September 17, 2018 02:35 PM2018-09-17T14:35:38+5:302018-09-17T14:35:38+5:30

इतिहास गवाह है कि स्वामी रामानंद तीर्थ से लेकर गोविंदभाई श्रॉफ जैसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मराठवाड़ा की कमी-कमजोरियों को समाप्त करने के लिए लगातार संघर्ष करते रहे। 

Marathwada is in difficulties because water and petrol  | पानी और पेट्रोल की मुश्किल में मराठवाड़ा

पेट्रोल पंप की फाइल फोटो

-अमिताभ श्रीवास्तव
देश की स्वतंत्रता के 13 माह बाद शामिल हुआ मराठवाड़ा परिक्षेत्र आज सोमवार को अपना 70वां मुक्ति संग्राम दिवस मना रहा है। अनेक किस्म के रस्मी आयोजनों के साथ दिन भर उत्सवी माहौल दिखाई देगा। हैदराबाद रियासत से अलग और वर्ष 1960 में महाराष्ट्र में शामिल वर्तमान में आठ जिले अपनी-अपनी पहचान और इतिहास को संजो कर रखते हैं। अजंता-एलोरा से मध्य कालीन संत परंपरा तक सात्विक जीवन की हजारों साल पुरानी मिसालें मराठवाड़ा में हैं। मगर अतीत के सापेक्ष वर्तमान अनेक सवालों को जन्म देता है। राज्य के विकास की तुलना में मराठवाड़ा की मामूली उन्नति कई चिंताओं को जन्म देती है।

यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि मराठवाड़ा ने पहले स्वतंत्रता और उसके बाद एक मराठी भाषी प्रांत महाराष्ट्र के गठन के लिए अहम भूमिका निभाई है, जिसका बड़ा सबूत बिना किसी शर्त महाराष्ट्र राज्य में शामिल होना है। मगर तथ्यात्मक रूप से सिद्ध हो चुका है कि कालांतर में मराठवाड़ा को अपनी उदार भूमिका का नुकसान उठाना पड़ा। देश की आजादी के 71 साल बाद भी मराठवाड़ा का बड़ा हिस्सा रेल सेवा से वंचित है। हवाई सेवा की जिद तो मराठवाड़ा के लिए बाल-हठ जैसी है।

इसी प्रकार औद्योगीकरण के नाम पर औरंगाबाद के बाद जालना है। बाकी नांदेड़, परभणी, हिंगोली, बीड़, लातूर और उस्मानाबाद में तो औद्योगिक क्षेत्र महज एक औपचारिकता है। इसी प्रकार कम वर्षा वाले क्षेत्र में गन्ना उत्पादन और शक्कर कारखानों की बाढ़ कृषि व्यवस्था को पूरी तरह चौपट करने के बड़े कारण हैं। सालों-साल के सूखे के बाद अब हालात बदलने के लिए कृषि पर नए सिरे से विचार जरूरी हो गया है। पानी की समस्या आसमानी सुल्तानी है। कुछ हद तक शिक्षा और स्वास्थ्य करीब आया है, लेकिन उसका भार उठाना सबके बस की बात नहीं। इसी कारण बेरोजगारी बढ़ गई है। कृषि उत्पादन में कमी अर्थव्यवस्था बिगाड़ रही है।

हर स्तर पर बिगड़ते हालात से निपटने के लिए समृद्धि मार्ग, दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर, लॉ यूनिवर्सिटी, रेलवे कोच फैक्टरी, फूड प्रोसेसिंग पार्क आदि जैसे उपाय सामने हैं। मगर तात्कालिक स्तर पर मराठवाड़ा के पिछड़ेपन का प्रमाण परभणी जिला दे रहा है, जहां देश में सबसे महंगा पेट्रोल 91।13 रुपए प्रति लीटर हो चुका है, जो अंतर्राष्ट्रीय हालात से अधिक मराठवाड़ा की परिस्थिति का गवाह है। दरअसल परभणी के आसपास तेल डिपो नहीं है, जिससे वहां ईंधन पहुंचने में सर्वाधिक खर्च आता है। यही बात मराठवाड़ा के पिछड़ेपन को ताजा परिस्थितियों में सिद्ध करती है।

इतिहास गवाह है कि स्वामी रामानंद तीर्थ से लेकर गोविंदभाई श्रॉफ जैसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मराठवाड़ा की कमी-कमजोरियों को समाप्त करने के लिए लगातार संघर्ष करते रहे। मगर आज भी मराठवाड़ा को लेकर उनकी मांगें प्रासंगिक हैं। इसलिए राज्य सरकार स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को श्रद्धांजलि देने के बहाने उनकी लंबी लड़ाई के उद्देश्यों को भी समङो। सही अर्थो में वही मराठवाड़ा की जरूरत और मुक्ति संग्राम समारोह के आयोजन की सफलता कही जा सकती है।  वर्ना समारोह वार्षिक आयोजन से अधिक नहीं माना जा सकता।
(अमिताभ श्रीवास्तव लेखक हैं।)

Web Title: Marathwada is in difficulties because water and petrol 

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