manipur crisis: मणिपुर में शांति के प्रयास लगातार जारी हैं . लेकिन साथ-साथ हिंसा भी जारी है और हिंसा पर काबू पाना संभव नहीं हो रहा है . इसलिए शांति और सरकार गठन के लिए विभिन्न जातीय गुटों का प्रतिनिधित्व करनेवाले सिविल सोसायटी संगठनों की केंद्र से वार्ता बेनतीजा चल रही है. एक-दूसरे के खिलाफ नफरती हिंसा से त्रस्त गुटों में मुख्य रूप से मैतेई और कुकी-जो समुदायों के लोग शामिल हैं.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ दिल्ली में हुई हालिया बातचीत का एक सुखद संयोग ये रहा कि 2 वर्षों में पहली बार गैर-आदिवासी मैतेई और आदिवासी कुकी-जो दोनों ही समुदायों के प्रतिनिधि शामिल थे. 3 मई 2023 से मणिपुर में हिंसा जारी है. मणिपुर के भाजपा मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को हिंसा पर नियंत्रण में विफलता के कारण विगत 9 फरवरी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.
13 जनवरी को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. मुख्यमंत्री के इस्तीफे से पहले राज्यपाल बदले गए. रिटायर केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला को मणिपुर का राज्यपाल केंद्र सरकार ने बनाया. नए राज्यपाल की नीतियों से तनाव में कुछ हद तक कमी आई. लेकिन छिटपुट हिंसा रुक नहीं पाई.
13 फरवरी के बाद से कुकी-जो समेत नगा और अन्य गैर-मैतेई समुदाय के लोग राज्य में शांति तथा लोकप्रिय सरकार की वापसी की कोशिश में जुटे हैं. हिंसा से कुकी-जो लोगों को जान-माल की क्षति ज्यादा हुई है. इसलिए कुकी-जो समुदाय के लोग मई, 2023 में हिंसा भड़कने के समय से ही अपने लिए अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं.
अपनी मांग पर अड़े रहने के बावजूद उन लोगों ने सिविल सोसायटी संगठनों की ओर से हुई वार्ता की पहल का स्वागत किया. गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को एसटी (अनुसूचित जनजाति) का दर्जा देने का निर्णय राज्य मंत्रिमंडल ने मार्च, 2023 के पहले हफ्ते में किया. लेकिन उसे लागू करवाने के लिए मुख्यमंत्री ने मणिपुर हाईकोर्ट का सहारा लिया.
हाईकोर्ट ने अपने 27 मार्च के आदेश में मैतेई को एसटी दर्जा देने की सिफारिश राज्य सरकार को केंद्र के पास भेजने को कहा. मणिपुर सरकार के ऐसा करते ही ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ने उसके विरोध में 3 मई को सोलिडेरिटी मार्च निकाला और हिंसा भड़क उठी. मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के उकसाऊ भाषण ने आग में घी का काम किया.
भाजपा के ही एक विधायक ने मणिपुर हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट को कड़े लहजे में चेताया कि यह मामला अदालत का नहीं, केंद्र के अधिकार क्षेत्र का है और हाईकोर्ट के महकमे में नहीं आता, इसलिए अपनी सीमा में रहें. आज जिस कुकी समुदाय को विश्वास में लेने पर केंद्र सरकार ज्यादा जोर दे रही है,
उससे 2008 से केंद्र का एक-दूसरे के खिलाफ ऑपरेशन स्थगित रखने (एस ओ एस - सस्पेंसन ऑफ ऑपरेशन) समझौता चल रहा था, जिसे राज्य सरकार ने मार्च, 2023 में मैतेई को खुश करने के फैसले से पहले ही वापस ले लिया. आपसी विश्वास खंडित हो चुका है. इसलिए इतने प्रयासों के बावजूद हालात सामान्य नहीं हो रहे हैं .