देर से ही सही, कोर्ट के फैसले से निर्दोषों को मिली राहत 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 2, 2025 07:15 IST2025-08-02T07:14:36+5:302025-08-02T07:15:00+5:30

इन 17 वर्षों में न केवल जांच एजेंसियां बदलीं बल्कि पांच अलग-अलग न्यायाधीशों ने भी मामले पर सुनवाई की.

Malegaon Blast Case Though late court decision brought relief to the innocent | देर से ही सही, कोर्ट के फैसले से निर्दोषों को मिली राहत 

देर से ही सही, कोर्ट के फैसले से निर्दोषों को मिली राहत 

मालेगांव ब्लास्ट केस में 17 साल बाद आखिर गुरुवार को कोर्ट का फैसला आ ही गया और एनआईए अदालत ने वर्ष 2008 के इस मामले में सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया. कोर्ट का कहना था कि आरोपियों के खिलाफ विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं हैं तथा अदालत सिर्फ धारणा के आधार पर दोषी नहीं ठहरा सकती. उल्लेखनीय है कि 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में हुए एक विस्फोट में छह लोग मारे गए थे और 95 अन्य घायल हुए थे.

पहले इस मामले की जांच महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने की थी, लेकिन बाद में मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी गई थी. 17 साल बाद ही सही, मामले में फैसला आने से जो निर्दोष थे, उन्होंने राहत की सांस ली है. इन 17 वर्षों में न केवल जांच एजेंसियां बदलीं बल्कि पांच अलग-अलग न्यायाधीशों ने भी मामले पर सुनवाई की. यहां तक कि विस्फोट के पीड़ितों और अभियुक्तों, दोनों पक्षों को यह शिकायत रही कि न्यायाधीशों को बार-बार बदले जाने से मुकदमे की गति धीमी हुई और इसमें देरी का यह एक महत्वपूर्ण कारण बना. कोरोना महामारी के कारण भी मुकदमे में कुछ समय के लिए रुकावट आई थी.

अभी कुछ दिन पहले ही मुंबई में 2006 के सीरियल बम ब्लास्ट मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने 12 आरोपियों को बरी कर दिया था. इस मामले में भी फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा था कि प्रॉसीक्यूशन, यानी सरकारी वकील आरोपियों के खिलाफ केस साबित करने में नाकाम रहे हैं. 19 साल बाद आए उस फैसले में भी हाईकोर्ट ने कहा कि मामले में पेश किए गए सबूतों में कोई ठोस तथ्य नहीं था इसलिए आरोपियों को बरी किया जाता है. हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है.

मालेगांव ब्लास्ट मामले में भी जाहिर है कि फैसले से असंतुष्ट पक्षों द्वारा ऊंची अदालतों में जाने का रास्ता खुला है. सवाल यह है कि 17 या 19 साल बाद भी जांच एजेंसियां मामलों में इतने पुख्ता सबूत क्यों नहीं जुटा पातीं कि वे अदालत के सामने टिक सकें?

जाहिर है कि उन्हें जांच के अपने चलताऊ ढर्रे को बदलना होगा, विभिन्न जांच एजेंसियों को आपस में समन्वित तरीके से काम करना होगा, अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करना होगा और जांच में तेजी भी लानी होगी, ताकि निर्दोष लोगों को जेल की लम्बी यातना झेलने से बचाया जा सके. आखिर दशकों तक जेल में सड़ने के बाद कोई निर्दोष बरी होता भी है तो उसकी जिंदगी के उन पुराने दिनों को कौन लौटाएगा?

Web Title: Malegaon Blast Case Though late court decision brought relief to the innocent

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