ब्लॉग: महाराष्ट्र बना हुआ है भाजपा के लिए बड़ी चिंता, मनसे नेता राज ठाकरे को अब साथ लाने की कोशिश

By हरीश गुप्ता | Updated: September 15, 2022 09:17 IST2022-09-15T09:15:30+5:302022-09-15T09:17:42+5:30

मनसे नेता राज ठाकरे को भाजपा-एकनाथ शिंदे गुट के साथ गठबंधन का हिस्सा बनाया जाने की कोशिश चल रही है. फार्मूला यह है कि मनसे और एकनाथ शिंदे गुटों को मिला दिया जाए और राज ठाकरे को एक महत्वपूर्ण भूमिका दी जाए.

Maharashtra remain a big concern for BJP, now trying to bring MNS leader Raj Thackeray along | ब्लॉग: महाराष्ट्र बना हुआ है भाजपा के लिए बड़ी चिंता, मनसे नेता राज ठाकरे को अब साथ लाने की कोशिश

राज ठाकरे को शिंदे गुट-भाजपा गठबंधन का हिस्सा बनाने की तैयारी (फाइल फोटो)

एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार बनने के बाद भी भाजपा आलाकमान महाराष्ट्र को लेकर लगातार चिंतित हैं. भारतीय जनता पार्टी का मुख्य उद्देश्य उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना की रीढ़ को खत्म करना है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में जब मुंबई का दौरा किया तो भाजपा के इरादे स्पष्ट कर दिए. उन्होंने कहा कि उद्धव विरोधी नंबर वन बने हुए हैं. 

हैरानी की बात यह है कि उद्धव ने चुप्पी साधे रहने का विकल्प चुना. भाजपा जानती है कि आगामी बीएमसी चुनाव नवगठित सरकार की पहली बड़ी परीक्षा होगी. मुंबई में भाजपा द्वारा किए गए कम-से-कम दो आंतरिक सर्वेक्षण उत्साहवर्धक नहीं हैं. इसी पृष्ठभूमि में भाजपा बीएमसी की बाधा को पार करने के लिए विभिन्न परिवर्तनों और संयोजनों पर काम कर रही है. 

एक सुझाव यह है कि मनसे नेता राज ठाकरे को गठबंधन का हिस्सा बनाया जाए. फार्मूला यह है कि मनसे और एकनाथ शिंदे गुटों को मिला दिया जाए और राज ठाकरे को एक महत्वपूर्ण भूमिका दी जाए. शिंदे और राज ठाकरे ने गणेश पूजा के लिए एक-दूसरे के आवासों का दौरा किया, जो बढ़ते सौहार्द्र को दर्शाता है. शिंदे जहां सरकार का नेतृत्व करते रहेंगे, वहीं राज ठाकरे को इसका मुखिया बनाया जा सकता है. 

राज ठाकरे भीड़ खींचने वाले और उत्कृष्ट वक्ता हैं और शिवसेना के कैडर को प्रेरित कर सकते हैं. राज ठाकरे के बेटे को एमएलसी और मंत्री के रूप में लाया जा सकता है जबकि शिंदे के बेटे को बाद में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है. इस प्रस्ताव के सफल नहीं होने की स्थिति में, भाजपा-शिंदे-मनसे के बीच बीएमसी चुनाव एक साथ लड़ने के लिए एक व्यावहारिक समझौता हो सकता है. 

भाजपा बीएमसी चुनावों के किसी भी प्रतिकूल परिणाम के राजनीतिक परिणामों से अवगत है. पहले प्रस्ताव में कई बाधाएं हैं और इसमें गहरे सामंजस्य की आवश्यकता है. पता चला है कि एकनाथ शिंदे विभिन्न विकल्पों पर चर्चा करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी का दौरा कर सकते हैं.

विनोद तावड़े का बढ़ता ग्राफ

महाराष्ट्र के वरिष्ठ भाजपा नेता विनोद तावड़े 2014 में कभी मुख्यमंत्री पद के तगड़े दावेदार थे. लेकिन वे चूक गए और देवेंद्र फडणवीस को भाजपा-शिवसेना सरकार की कमान सौंप दी गई. तावड़े को गठबंधन सरकार में मंत्री के रूप में संतुष्ट रहना पड़ा. सबसे बुरा दौर 2019 में आया जब उन्हें अंतिम समय में पार्टी का टिकट देने से इनकार कर दिया गया और इंतजार करने के लिए मजबूर किया गया. लेकिन उन्होंने कभी अपना धैर्य नहीं खोया और लो प्रोफाइल में बने रहे. 

आलाकमान को उन्हें दिल्ली लाने और भाजपा का सचिव बनाने में एक साल लग गया. एक और साल बीतने के बाद नवंबर 2021 में उन्हें महासचिव के रूप में पदोन्नत किया गया. यह एक बड़ी पदोन्नति थी जिससे कई लोगों की भौंहें तन गईं. राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मु खातिर समर्थन हासिल करने के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने तावड़े को मुख्य समन्वयक की भूमिका सौंपी. उन्होंने पांच अन्य मुख्य समन्वयकों के साथ मुर्मु की खातिर समर्थन जुटाने के लिए व्यापक यात्रा की. 

उन्होंने हरियाणा के प्रभारी के रूप में अपनी पहचान बनाई और उन्हें सबसे महत्वपूर्ण राज्य बिहार देकर पुरस्कृत किया गया. तावड़े के साथ, महाराष्ट्र के दो अन्य नेताओं को भी पार्टी संगठन का काम मिला है, जो दर्शाता है कि पश्चिमी राज्य भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है. प्रकाश जावड़ेकर को केरल की कमान सौंपी गई तो पंकजा मुंडे को मध्यप्रदेश का सह-प्रभारी बनाया गया. 

ये कदम बीएमसी चुनाव जीतने के उद्देश्य से भाजपा की बड़ी योजनाओं का हिस्सा हैं. भाजपा आलाकमान चाहता है कि नेता सब मतभेद भुलाकर एकजुट रहें और हाल के बदलाव इसी कवायद का हिस्सा हैं. दूसरे, तावड़े के उदय से राज्य की राजनीति में उनकी वापसी नहीं हो पाएगी. देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र में पार्टी का चेहरा बने रहेंगे और केंद्रीय भूमिका निभाते रहेंगे. 

पार्टी आलाकमान 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा-शिवसेना (शिंदे)-मनसे की संख्या भी 44 सीटों तक बढ़ाना चाहता है. भाजपा-शिवसेना (उद्धव) गठबंधन ने 2019 में 42 लोकसभा सीटें हासिल की थीं.

पेंशन के लिए पूर्व सीबीआई प्रमुख की लड़ाई

पूर्व सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा अपने सेवानिवृत्ति लाभों के तहत कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के साथ कड़वी लड़ाई में लगे हुए हैं. सरकार ने सीबीआई के निदेशक के रूप में हटाए जाने के बाद डीजी, फायर सर्विसेज के रूप में शामिल होने से इनकार करने का हवाला देते हुए उनके पेंशन और भत्तों को रोक दिया. वर्मा को सीबीआई प्रमुख के रूप में दो साल के कार्यकाल के लिए नियुक्त किया गया था. लेकिन उनकी अपने स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना से तीखी तकरार हो गई. 

केंद्रीय सतर्कता आयोग की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिश के बाद सरकार ने इन दोनों को सीबीआई से हटा दिया. लेकिन वर्मा ने डीजी, फायर सर्विसेज की नई पोस्टिंग लेने से इनकार कर दिया. सरकार ने जवाबी कार्रवाई की और उनकी सेवानिवृत्ति के लाभ को रोक दिया. 

वर्मा का तर्क है कि सीबीआई निदेशक के पद का कार्यकाल दो साल के लिए तय है और एक बार वहां से उन्हें हटा दिए जाने के बाद वे फायर सर्विसेज के डीजी के रूप में ज्वाइन नहीं कर सकते थे क्योंकि वे जुलाई 2017 में ही सेवानिवृत्त हो गए थे. डीजी, फायर सर्विस का पद दो साल के लिए कोई नामित पद नहीं है. लेकिन उनकी बात कोई नहीं सुन रहा है और वे चार साल से अपनी पेंशन के लिए भटक रहे हैं.

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