अतिवृष्टि के बाद महाराष्ट्र में किसानों की सहायता के लिए राज्य सरकार पूरे जोेश के साथ सामने आई है. उसने ज्यादा वर्षा के कारण फसलों के नुकसान के लिए अनेक प्रकार की आर्थिक मदद दी. दिवाली के पास आसमानी संकट से मराठवाड़ा, विदर्भ और पश्चिम महाराष्ट्र का एक बड़ा क्षेत्र प्रभावित हुआ है. बरसात के अलावा बांधों का पानी संकट का कारण इतना बना कि फसलें तो गिरीं ही, साथ ही साथ कई स्थानों पर खेतों की मिट्टी तक बह गई. इसी स्थिति को देखते हुए सरकार ने व्यापक सर्वेक्षण के आधार पर सहायता घोषित की है.
आशा की जा रही है कि वह दीपोत्सव आरंभ होने के पहले किसानों तक पहुंच जाएगी, जो कुछ समय के लिए वर्षा प्रभावितों को राहत पहुंचाएगी. कुछ आंकड़े बताते हैं कि राज्य में वर्ष 2025 के शुरुआती 3 महीनों में 767 किसानों ने आत्महत्या की. पिछले दिनों मराठवाड़ा के आंकड़ों में बताया गया कि परिक्षेत्र में बीते 6 महीनों में 543 किसानों ने जान दी.
अब यदि आत्महत्या के प्रमुख कारणों को जानने की कोशिश की जाए तो वे फसल की खराबी, बारिश की कमी या कभी अतिवृष्टि, सूखा, कर्ज का बोझ और साहूकारों का दबाव मिलते हैं. इसके अलावा भी कृषि जगत की अनेक समस्याएं किसानों के जीवन की मूल समस्याएं हैं. कभी फसल का अधिक और कभी कम होना दोनों ही स्थितियां परेशान करने वाली हैं.
बाजार की आवश्यकता और कृषि उत्पादन के बीच कोई तालमेल जुड़ नहीं पाया है. भंडारण के समुचित उपाय न होना अलग दिक्कत बनी हुई है. इनके बीच किसानों को आर्थिक सहायता और ऋण माफी को समस्याओं का हल मान लिया जाता है. किंतु उन्हीं की बार-बार आवश्यकता पड़ने की वजह पर विचार नहीं किया जाता है.
कपास और गन्ना जैसी नकदी फसलों पर निर्भरता किसानों के बीच संकट का मुख्य कारण माना जाता है. इनके अलावा दालें, फल-सब्जी भी नकद राशि का लाभ पहुंचाती हैं. किंतु ऐसी फसलों के लिए बड़े निवेश और विपणन की आवश्यकता होती है, जिससे किसान साहूकारों पर निर्भर रहने को मजबूर होते हैं.
बाद में फसलों की विफलता किसानों के आत्मविश्वास को तोड़ देती है. दरअसल नकद फसलों का संबंध सीधे बाजार से होता है, जहां जमा और जरूरत के आधार पर उनकी खरीद-बिक्री होती है. यहीं पैसा फंसने से किसान संकट में फंस जाता है. एक तरफ जहां साहूकार उसे दु:ख-सुख का साथी बता कर उत्पाद को रख लेता है, वहीं किसान की मजबूरी रकम मिलने का इंतजार करती रहती है.
वास्तविक रूप में किसान और उसके उत्पाद का बाजार से व्यावहारिक संबंध बनाया जाना चाहिए, जिससे वह अपनी क्षमता का उपयोग उतना ही करे, जितनी उसे कीमत दिला सकती है. दुर्भाग्य से किसानों के आंसू पोंछने के बाद दोबारा आंखें नम न होने के प्रयास नहीं किए जाते हैं. इसलिए सरकार को केवल आर्थिक आंकड़ों में न उलझते हुए किसानों को सक्षम बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे, जिससे भविष्य में किसानों को सहायता की आवश्यकता ही न पड़े.