बाबासाहब: सोये हुए समाज को सतत जगाते रहे
By कृष्ण प्रताप सिंह | Updated: December 6, 2024 16:22 IST2024-12-06T16:20:55+5:302024-12-06T16:22:09+5:30
Mahaparinirvan Diwas 2024: विधिवेत्ता, शिक्षाविद, चिंतक, लेखक/पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता और साथ ही अर्थशास्त्री के रूप में की गई देशसेवाओं व संघर्षों को अचर्चित ही रखा है.

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Mahaparinirvan Diwas 2024: कई बार किसी शख्सियत की कोई एक छवि लोकमानस में इस कदर बस जाती है कि उसकी दूसरी छवियां उपेक्षित होकर रह जाती हैं. बाबासाहब डाॅ. भीमराव आंबेडकर को संविधान निर्माता होने का गौरव हासिल है. आज उनके महापरिनिर्वाण दिवस पर उन्हीं की बात करें तो संविधान निर्माता की उनकी छवि ने उनके विधिवेत्ता, शिक्षाविद, चिंतक, लेखक/पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता और साथ ही अर्थशास्त्री के रूप में की गई देशसेवाओं व संघर्षों को अचर्चित ही रखा है.
इसकी अब तक की सबसे बड़ी मिसाल यह है कि नोबल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने 2023 में उनको अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अपना पिता, गुरु और आदर्श वगैरह कहकर सम्बोधित किया, साथ ही कहा कि उनके निकट अर्थशास्त्री के रूप में वे कहीं ज्यादा मान-सम्मान के हकदार हैं, तो भी उनकी अर्थशास्त्रीय स्थापनाओं पर कोई चर्चा नहीं शुरू हुई.
बाबासाहब के सपनों-सरोकारों, नीतियों-सिद्धांतों, नैतिकताओं, उसूलों और चेतावनियों आदि को अपेक्षाकृत बेहतर ढंग से सामने लाने वाले उनके व्यक्तित्व के गैरराजनीतिक पहलुओं की अनदेखी भी हम करते ही रहते हैं. उनकी भारतीयता की उस अवधारणा की भी, जिसके तहत उन्होंने कहा था: ‘कुछ लोग कहते हैं कि हम पहले भारतीय हैं, बाद में हिंदू या मुसलमान. मुझे यह कथन स्वीकार नहीं है.
मैं चाहता हूं कि लोग पहले भी भारतीय हों और अंत तक भारतीय रहें. भारतीय के अलावा कुछ भी न हों.’ दरअसल, वे चाहते थे कि सारे भारतवासी देश को अपने पंथ से ऊपर रखें, न कि पंथ को देश से ऊपर.
यहां यह भी गौरतलब है कि बाबासाहब छात्र जीवन से ही समझने लगे थे कि उनके कंधों पर अपने सोये हुए समाज को जगाने का गुरुतर दायित्व है.
अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में उन्हें दत्तचित्त होकर कई-कई घंटे लिखाई-पढ़ाई में लगे रहने और कई बार लाइब्रेरी बंद होने के बाद भी वहां ऐसा कर सकने की अनुमति मांगते देख उसके चपरासी ने एक दिन उनसे पूछा कि क्या वे कभी किसी दोस्त के साथ मौज-मस्ती नहीं करते, तो उनका उत्तर था कि अगर मैं मौजमस्ती करूंगा तो मेरे लोगों का खयाल कौन रखेगा?
आगे चलकर इसी बात को अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने इस तरह कहा था कि मैं रात-रात भर इसलिए जागता हूं क्योंकि मेरा समाज सो रहा है. अनंतर, उन्होंने उस समाज को ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो’ का नारा दिया. शिक्षित होने से उनका तात्पर्य था अज्ञान के पिंजरे से निकलकर अपने और अपने समाज के लिए नये द्वार खोलने में लगना और संगठित हाेना इस अर्थ में जरूरी था कि संघर्षों के लिए शक्ति प्राप्त करने का और कोई स्रोत नहीं था. अस्पृश्यता और ऊंच-नीच के खिलाफ उनके संघर्ष की तो खैर कोई सीमा ही नहीं थी.