Lok Sabha Elections 2024: 18वीं लोकसभा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर रहेगी!, विपक्षी दलों ने माना, चुनौतियों के बीच आंकड़ों का बढ़ता महत्व
By हरीश गुप्ता | Updated: May 30, 2024 11:13 IST2024-05-30T11:11:50+5:302024-05-30T11:13:45+5:30
Lok Sabha Elections 2024: इंडी गठबंधन के शुभचिंतक कह सकते हैं कि भाजपा को 220 लोकसभा सीटों के भीतर रोका जा सकता है और तब एनडीए को पीएम नरेंद्र मोदी की जगह नया नेता चुनने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

file photo
Lok Sabha Elections 2024: विपक्षी दलों ने अब मोटे तौर पर यह मान लिया है कि 18वीं लोकसभा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर रही है. चूंकि अब तक के सबसे लंबे और सबसे कठिन संसदीय चुनावों में मतदान समाप्त हो रहा है, इसलिए बहस सत्तारूढ़ दल को 4 जून को मिलने वाले आंकड़ों तक सीमित हो गई है. इंडी गठबंधन के शुभचिंतक कह सकते हैं कि भाजपा को 220 लोकसभा सीटों के भीतर रोका जा सकता है और तब एनडीए को पीएम नरेंद्र मोदी की जगह नया नेता चुनने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
लेकिन ऐसे विचारकों की भी कमी नहीं है जो भाजपा के 350 सीटों के आंकड़े को छू लेने की भविष्यवाणी कर रहे हैं. चौबीसों घंटे चलने वाली टीवी बहसों के दौरान उभरे कई कारणों से सच्चाई कहीं न कहीं भाजपा की ओर झुकाव के बीच हो सकती है. ऐसे कई विशेषज्ञ हैं जो मानते हैं कि भाजपा की निचली सीमा 250-260 सीटों के बीच है.
जबकि ऊपरी सीमा 300 सीटों के आंकड़े को छू सकती है और पूरी संभावना है कि मोदी मामूली अंतर से एनडीए का नेतृत्व करेंगे. इन चुनावों में नंबर गेम से ज्यादा नजरें भाजपा उम्मीदवारों की जीत के अंतर पर भी टिकी हैं. इनमें से कुछ उम्मीदवार अतीत में कई निर्वाचन क्षेत्रों में पांच लाख से अधिक वोटों के अंतर से लोकसभा चुनाव जीतते रहे हैं.
2019 में लगभग 200 भाजपा उम्मीदवारों की जीत का अंतर एक लाख वोटों से अधिक था. यदि भाजपा उम्मीदवारों के लिए जीत का अंतर काफी कम हो जाता है, तो मोदी के विरोधी यह कहकर खुश हो सकते हैं कि वह अब अजेय नहीं हैं. भाजपा द्वारा अपने उम्मीदवारों के लिए भारी जीत का अंतर बनाए रखने की स्थिति में, देश में एक सख्त मोदी 3.0 कार्यकाल का उदय हो सकता है और यात्रा आगे भी जारी रहेगी.
मोदी के सामने चुनौती
प्रधानमंत्री मोदी 4 जून के तुरंत बाद अपने एजेंडे को लागू करने के लिए बेताब दिख रहे हैं और अपने नए मंत्रिमंडल की सूची को अंतिम रूप दे रहे हैं. वह 10 जून के आसपास शपथ लेने और उन्हें एक स्पष्ट रोड मैप देने की योजना बना रहे हैं. अपने कई साक्षात्कारों में उन्होंने खुलासा किया कि उन्होंने अपने सभी मंत्रियों को एक योजना तैयार करने के लिए कहा है कि पहले 100 दिनों के दौरान क्या किया जा सकता है.
अगले 100 दिनों के भीतर लागू किए जाने वाले निर्णयों की एक सूची तैयार करने के लिए उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले सचिवों के 10 समूहों का अलग से गठन किया. इन विचार-विमर्श में शामिल प्रमुख मंत्रालयों में कृषि, वित्त, विदेश, रक्षा और अन्य शामिल हैं.
सरकार के आंतरिक और बाहरी एजेंडे को आकार देने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय में विभिन्न मंत्रियों और सचिवों के इनपुट एकत्र किए जा रहे हैं. मोदी के पास लगभग एक साल से लंबित चार श्रम संहिताओं को अधिसूचित करने की चुनौती है. अधिसूचना से श्रमिकों को वेतन के मामले में मदद मिलेगी, लेकिन उन्हें एक नई ‘हायर एंड फायर’ व्यवस्था का भी सामना करना पड़ेगा.
उनकी एक और पसंदीदा परियोजना, एक राष्ट्र एक चुनाव, को परिसीमन प्रक्रिया की शुरुआत के साथ नई संसद के समक्ष लाया जाने वाला है, जिससे लोकसभा सीटों को 700 से अधिक सांसदों तक बढ़ाने की योजना बनाई जा सके. यह काफी समय से लंबित है. मोदी वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक जनसांख्यिकीय आयोग भी स्थापित करने वाले हैं. 70 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को 7 लाख रुपए का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा कवर देने की योजना की घोषणा पहले ही की जा चुकी है.
अमेरिका निज्जर मामले पर दूर कर सकता है मतभेद?
अगर मोदी को भारी बहुमत के साथ लगातार तीसरा कार्यकाल मिलता है तो अमेरिका और कनाडा निज्जर मामले में मतभेद दूर कर सकते हैं. ऐसा माना जाता है कि अमेरिका और अधिकांश यूरोपीय देश बड़े पैमाने पर व्यवसाय-आधारित और अर्थव्यवस्था-चालित हैं. बदलाव का एक संकेत तब सामने आया जब एक अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक और वैश्विक राजनीतिक जोखिम सलाहकार इयान ब्रेमर मतदान के अंतिम चरण में मोदी के पक्ष में अपनी राय लेकर सामने आए.
उन्होंने कहा, ‘‘देश भारत के करीब आना चाहते हैं क्योंकि उसकी वैश्विक रणनीति बढ़ती जा रही है-वैश्विक दक्षिण के साथ, पश्चिम के साथ, हालांकि चीन के साथ बिल्कुल नहीं.’’ इससे पहले, पश्चिमी मीडिया की रिपोर्टें ऐसी तस्वीर पेश नहीं कर रही थीं. अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियां चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं और मोदी 15-16 जून को इटली में होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन में वैश्विक नेताओं से मुलाकात के लिए अपनी पहली विदेश यात्रा पर विचार कर रहे हैं. इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने भारत को शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है.
आने वाले महीनों में और भी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हैं. प्रधानमंत्री या विदेश मंत्री को यूक्रेन शांति सम्मेलन में भी भाग लेना है, जो 15-16 जून को स्विट्जरलैंड के ल्यूसर्न में होना है, जहां जी-7 नेताओं के इटली से आने की उम्मीद है. विदेश मंत्री के 10-11 जून को ब्रिक्स विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए रूसी शहर निजनी नोवगोरोड की यात्रा करने की भी उम्मीद है. सूत्रों का कहना है कि इन सभी निमंत्रणों पर अंतिम निर्णय होने की उम्मीद परिणाम घोषित होने के बाद ही की जा सकती है.
दोस्त या दुश्मन !
हरियाणा पुलिस ने साइबर अपराध से निपटने के लिए झारखंड और पश्चिम बंगाल में अपनी टीमें तैनात की हैं, क्योंकि इन राज्यों को साइबर धोखाधड़ी कॉल के प्राथमिक स्रोत के रूप में पहचाना जाता है. हरियाणा के लोगों को ठगने वाले गिरोह के सदस्यों की पहचान करने के लिए कई टीमें तैनात की गई हैं, जिसके परिणामस्वरूप हाल के दिनों में बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां हुई हैं.
इससे साइबर धोखाधड़ी में कमी आई है. साइबर अपराध के खतरे से निपटने के लिए, हरियाणा पुलिस ने झारखंड और पश्चिम बंगाल में अपनी टीमें तैनात की हैं. दिलचस्प बात यह है कि हरियाणा में भाजपा सत्ता में है जबकि झारखंड और पश्चिम बंगाल सरकारें इंडी गठबंधन का हिस्सा हैं. साइबर अपराध तेजी से बढ़ने के साथ, राज्य सरकारें अपनी रणनीति बना रही हैं.