ललित गर्ग का ब्लॉगः हिंसक राजनीति में जख्मी लोकतंत्र
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: May 17, 2019 07:29 IST2019-05-17T07:29:02+5:302019-05-17T07:29:02+5:30
सातवें चरण के प्रचार में कोलकाता में हुई झड़प और हिंसा ने लोकतांत्रिक बुनियाद को ही हिला दिया है. इस घटना और दूसरे चरणों की घटनाओं ने एक बार फिर अस्सी के दशक की याद दिला दी है.

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ललित गर्ग
सत्नहवीं लोकसभा के चुनाव का समूचे देश में कमोबेश शांतिपूर्ण रहना जितना प्रशंसनीय है, उतना ही निंदनीय है पश्चिम बंगाल में उसका हिंसक, अराजक एवं अलोकतांत्रिक होना. चुनावों से लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुरुआत मानी जाती है, पर पश्चिम बंगाल में चुनाव लोकतंत्न का मखौल बन चुके हैं. वहां चुनावों में वे तरीके अपनाए गए हैं जो लोकतंत्न के मूलभूत आदर्शो के प्रतिकूल हैं. सातवें चरण के प्रचार में कोलकाता में हुई झड़प और हिंसा ने लोकतांत्रिक बुनियाद को ही हिला दिया है.
इस घटना और दूसरे चरणों की घटनाओं ने एक बार फिर अस्सी के दशक की याद दिला दी है, जब चुनाव के समय खासकर बिहार से हत्या, मारपीट, बूथ लूटने, मतदान केंद्रों पर कब्जा करने और हंगामे की खबरें आती थीं. इस बार पश्चिम बंगाल से लोकसभा चुनाव के हर चरण में ऐसी ही खबरें आई हैं. कुछ समय पहले पंचायत चुनाव के दौरान भी भारी हिंसा हुई थी. इन स्थितियों ने पश्चिम बंगाल की लोकतांत्रिक स्थितियों पर अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं.
बंगाल अपनी समृद्ध सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं के लिए जाना जाता रहा है. पिछले दो सौ वर्षो में उसने कई बार देश को दिशा दिखाई है. राजनीतिक हिंसा ऐसे सुसंस्कृत राज्य की पहचान बन जाना क्षोभ और आश्चर्य का विषय है. शांति एवं संतों की धरती पर हिंसा को वोट हासिल करने का माध्यम बनाना त्नासद है.
इन विडंबनापूर्ण स्थितियों से गुजरते हुए, विश्व का अव्वल दर्जे का कहलाने वाला भारतीय लोकतंत्न जख्मी हुआ है, उसकी गरिमा एवं गौरव को ध्वस्त करने की कुचेष्टा अक्षम्य है. पश्चिम बंगाल में हिंसा, अराजकता एवं अपराध की राजनीति का खेल खेला गया है, जहां से जाने वाला कोई भी रास्ता अब निष्कंटक नहीं दिखाई देता.
लोकतंत्न को इस चौराहे पर खड़ा करने का दोष किसका है? यह शोचनीय है. लेकिन यह तय है कि वहां के राजनीतिक दलों व नेताओं ने अपने निजी व दलों के स्वार्थो की पूर्ति का माध्यम हिंसा को बनाकर इसे बहुत कमजोर कर दिया है. अनुशासन के बिना एक परिवार तक एक दिन भी व्यवस्थित और संगठित नहीं रह सकता, तब एक प्रांत की कल्पना अनुशासन के बिना कैसे की जा सकती है?