जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉगः चुनावी घोषणापत्रों में आर्थिक मुद्दे 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 29, 2019 07:24 AM2019-03-29T07:24:28+5:302019-03-29T07:24:28+5:30

पिछले कई चुनावों में खासतौर से जमींदारी प्रथा की समाप्ति, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, गरीबी हटाओ, रोजगार गारंटी, भूमिअधिग्रहण, किसान हित, भ्रष्टाचार हटाओ जैसे आर्थिक मुद्दों ने चुनाव के नतीजों को बहुत कुछ प्रभावित किया है.

lok sabha election: Economic Issues in Election Manifesto | जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉगः चुनावी घोषणापत्रों में आर्थिक मुद्दे 

जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉगः चुनावी घोषणापत्रों में आर्थिक मुद्दे 

जयंतीलाल भंडारी

इन दिनों आम चुनाव 2019 के लिए विभिन्न राजनैतिक दल अपने-अपने घोषणापत्नों को अंतिम रूप दे रहे हैं. निश्चित रूप से विभिन्न राजनीतिक दलों के घोषणापत्नों में चमकीली लोकलुभावन घोषणाएं रेखांकित होती हुई दिखाई देंगी. कांग्रेस पार्टी ने घोषणा की है कि यदि वह सत्ता में आई तो सबसे गरीब परिवारों को सालाना 72 हजार रु पए न्यूनतम आय सुनिश्चित की जाएगी. अब ऐसे में अन्य राजनैतिक दलों के द्वारा भी ऐसी ही चमकीली लोकलुभावन योजनाओं की संभावनाएं बढ़ गई हैं.  देश के अर्थविशेषज्ञों का मानना है कि देश में रोजगार वृद्धि, अर्थव्यवस्था की तेज गतिशीलता एवं कारोबार संबंधी हितों जैसे आर्थिक मुद्दों की भी अहमियत होनी चाहिए.

यदि हम देश की आजादी के बाद से पिछली 16वीं लोकसभा के चुनावों तक विभिन्न राजनीतिक दलों के घोषणापत्नों को देखें तो पाते हैं कि इन घोषणापत्नों में समय-समय पर विभिन्न आर्थिक मुद्दों को अहमियत मिलती रही है. कई आम चुनावों के घोषणा पत्न तो चमकीले आर्थिक मुद्दों की अहमियत वाले ही थे. 

पिछले कई चुनावों में खासतौर से जमींदारी प्रथा की समाप्ति, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, गरीबी हटाओ, रोजगार गारंटी, भूमिअधिग्रहण, किसान हित, भ्रष्टाचार हटाओ जैसे आर्थिक मुद्दों ने चुनाव के नतीजों को बहुत कुछ प्रभावित किया है. ऐसे में इस बार 17वीं लोकसभा के चुनावों के मद्देनजर विभिन्न राजनीतिक दलों के द्वारा अर्थव्यवस्था, उद्योग कारोबार और आम आदमी के अर्थशास्त्न से जुड़े हुए ऐसे मुद्दों को अपने घोषणापत्नों में शामिल किया जाना उपयुक्त होगा, जिनसे अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने, उद्योग-कारोबार को गतिशील करने और आम आदमी के आर्थिक कल्याण की नई दिशाएं रेखांकित होती हुई दिखाई दे सकें. यदि विभिन्न प्रमुख राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणापत्नों में विकास दर बढ़ाने, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) सुधार, रोजगार वृद्धि एवं कौशल विकास जैसे मुद्दे शामिल करेंगे तो इससे जहां अर्थव्यवस्था लाभान्वित होगी वहीं आम आदमी भी लाभान्वित होगा. 

इसमें दो मत नहीं कि देश में रोजगार एक बड़ी चुनौती बना हुआ है. देश में विकास तो हो रहा है, लेकिन रोजगार अवसरों का निर्माण तुलनात्मक रूप से कम है. ऐसे में रोजगार के साथ विकास का वचन चुनावी घोषणापत्नों में अपेक्षित है. विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में तेजी से रोजगार के दरवाजे पर दस्तक देने वाले युवाओं की संख्या को देखते हुए हर साल 81 लाख नए रोजगार अवसर पैदा करने की जरूरत है. 

Web Title: lok sabha election: Economic Issues in Election Manifesto