ब्लॉग: गठबंधनों का आगाज तो अच्छा है पर डगर आसान नहीं
By राजकुमार सिंह | Updated: July 21, 2023 10:15 IST2023-07-21T10:13:03+5:302023-07-21T10:15:38+5:30
अगर घटक दलों की संख्या शक्ति का पैमाना है तो बाजी सत्तारूढ़ भाजपा के हाथ मानी जा सकती है, जो अपने गठबंधन ( एनडीए ) का कुनबा, उसके रजत जयंती वर्ष में 38 तक पहुंचाने में सफल रही।

फोटो क्रेडिट- फाइल फोटो
अगले लोकसभा चुनाव का अनौपचारिक बिगुल बज चुका है. 18 जुलाई को सत्तापक्ष और विपक्ष, दोनों ने ही क्रमश: दिल्ली और बेंगलुरु में अपने-अपने गठबंधन का शक्ति प्रदर्शन करते हुए चुनावी दंगल में ताल ठोंक दी है.
राष्ट्र चिंतन के बहाने इस शक्ति प्रदर्शन के लिए दोनों ही पक्षों ने पांच सितारा होटलों को चुना, जो दरअसल हमारे बदलते राजनीतिक चरित्र का ही परिचायक है.
अगर घटक दलों की संख्या शक्ति का पैमाना है तो बाजी सत्तारूढ़ भाजपा के हाथ मानी जा सकती है, जो अपने गठबंधन ( एनडीए ) का कुनबा, उसके रजत जयंती वर्ष में 38 तक पहुंचाने में सफल रही.
वैसे पिछले महीने पटना में जुटे 17 दलों की संख्या को बेंगलुरु में 26 तक पहुंचा पाना (वह भी एनसीपी तथा बिहार के सत्तारूढ़ गठबंधन में सेंधमारी के साये में) विपक्ष की कम बड़ी उपलब्धि नहीं.
आखिर वर्ष 2004 में लोकसभा चुनाव के बाद सत्ता के लिए बने यूपीए में मात्र 14 दल ही थे. वे भी धीरे-धीरे कम होते गए और 2014 में केंद्र की सत्ता से बेदखली के बाद तो यूपीए बिखर ही गया. राज्य-दर-राज्य राजनीतिक हितों और अहं के अंतर्विरोधों के बीच विपक्ष न सिर्फ अपना कुनबा बढ़ाने में, बल्कि गठबंधन का प्रभावशाली नामकरण करने में भी सफल रहा.
इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस, जिसका संक्षिप्त नाम अंग्रेजी में इंडिया बनता है,पर भाजपा की टिप्पणियां उसकी असहजता को दर्शानेवाली ही मानी जा रही हैं.
कांग्रेसी से भाजपाई बने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा इंडिया को अंग्रेजों द्वारा औपनिवेशक नामकरण बताते समय भूल रहे हैं कि भाजपा सरकार द्वारा लागू कई योजनाओं के नाम में इंडिया शामिल है. वैसे इस नामकरण पर सवाल और विवाद की आशंकाओं से इनकार नहीं किया जा सकता.
भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे रहे यूपीए की जगह इंडिया नामकरण में विपक्ष के जिन भी नेताओं की जो भी भूमिका रही हो, नारों और जुमलों के वर्तमान राजनीतिक दौर में वे बड़ा दांव चलने में सफल रहे हैं. वैसे इन दोनों गठबंधनों के मंच पर जुटे 64 राजनीतिक दलों का आंकड़ा हमारे यहां बहुदलीय लोकतंत्र के दलदल की ओर भी इशारा करता है.
बेशक लोकतंत्र में राजनीतिक दल के गठन या उनकी संख्या पर अंकुश नहीं है, पर यह अपेक्षा तो स्वाभाविक है कि उनका गठन किसी विशिष्ट विचारधारा के आधार पर किया जाए, जिसे अच्छे-खासे जनाधार का समर्थन भी हासिल हो.
जनाधार संबंधी सीधी टिप्पणी राजनीतिक दलों को अच्छी नहीं लगेगी, पर इस सच से कैसे मुंह चुराया जा सकता है कि दोनों ही गठबंधनों में शामिल 34 दल ऐसे हैं, जिनका संसद के किसी भी सदन में एक भी सांसद नहीं है. यह भी कि चार दल ऐसे हैं, जिनका प्रतिनिधित्व सिर्फ राज्यसभा तक सीमित है.