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जापानियों से सीखें मितव्ययिता, दिल्ली-एनसीआर में इन जगहों पर रहते हैं जापानी

By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Updated: October 31, 2018 17:28 IST

अगर बात दिल्ली की हो तो जापानी नागरिक डिफेंस कॉलोनी में 200 गज के घर के एक फ्लोर में रह लेते हैं।  इन्हें वो ही घर पसंद है जिनमें बाथ टब होता है।

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(लेख- विवेक शुक्ला)

प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी की जापान यात्ना पर दिल्ली-एनसीआर में बसी जापानी बिरादरी की भी निगाहें थीं। दोनों देशों के संबंध क्रमश: प्रगाढ़ होते जा रहे हैं। कभी बुद्ध और गांधी का देश होने के चलते जापानी भारत आते थे। अब वे अनेक जापानी कंपनियों में पेशेवर के रूप में भारत में आते हैं। वे लगभग दो दर्जन कंपनियों के दिल्ली, गुड़गांव, ग्रेटर नोएडा और नोएडा में दफ्तरों में काम कर रहे हैं।

इन जापानियों की संख्या पांच हजार के आसपास होगी। इतनी बड़ी तादाद में जापानियों के यहां आने के बावजूद रेंट मार्केट में आग नहीं लगी क्योंकि ये खासे मितव्ययी हैं। बड़े से बड़े पद पर काम करने वाला जापानी पेशेवर भी एक लाख रुपए से कम पर ही घर रेंट पर लेता है। वो छोटे घर में भी खुशी-खुशी रह लेता है। वो अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया के नागरिकों की तरह बड़ा घर नहीं लेता।

अगर बात दिल्ली की हो तो जापानी नागरिक डिफेंस कॉलोनी में 200 गज के घर के एक फ्लोर में रह लेते हैं।  इन्हें वो ही घर पसंद है जिनमें बाथ टब होता है। अगर घर में बाथ टब नहीं है तो ये उस घर को रेंट पर नहीं लेते। अगर कुछ जापानी एक-दूसरे के करीब रहते हैं, तब ये कार पूल करके ही दफ्तर जाना पसंद करते हैं।  ये बड़ी-बड़ी कारों में अकेले दफ्तर जाने से बचते हैं। ये जापानी नागरिक भारत के उज्ज्वल भविष्य को लेकर बेहद आशावादी हैं। उन्हें लगता है कि अब भारत को विकास के रास्ते पर जाने से कोई रोक नहीं सकता।

दिल्ली-गुड़गांव में रहने वाले जापानी प्राय: विवाहित होते हैं। ये दिल्ली-गुड़गांव को इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि ये अपने बच्चों को वसंत कुंज में स्थित जापानी स्कूल में दाखिला दिलवा देते हैं। जापानी स्कूल लगभग 50 साल से दिल्ली में चल रहा है। ये पहले फिरोजशाह रोड पर ही था। इधर जापानी बच्चों के लिए हिंदी की अलग से कक्षाएं भी चलती हैं। जापानी नागरिकों के बीच गुड़गांव खासा पसंद किया जाने लगा है।

ये इधर के रेस्तरां, गोल्फ कोर्स और स्तरीय मेडिकल सुविधाओं के चलते रेंट पर घर लेना पसंद करते हैं। पर एक जापानी वो भी हैं, जो अब भारतीय हो चुकी हैं। वो हिंदी बोलती हैं। उनका नाम है कात्सू सान। वे रिंग रोड पर स्थित विश्व शांति स्तूप के कामकाज को देखती हैं। वो सन 1956 में भारत आ गई थीं। उनका भारत आने के बाद यहां पर मन इतना लगा कि फिर यहां बसने का निर्णय ले लिया। वे कभी-कभी जापान गई भी हैं, पर अब उन्हें भारत ही अपना लगता है।

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