Kisan Karj Rahat: प्रकृति की मार झेलने वाले किसानों को लेकर कर्नाटक के शर्करा और कृषि विपणन मंत्री शिवानंद पाटिल का यह बयान बेहद निंदनीय है कि किसान राज्य में बार-बार सूखा पड़ने की कामना करते हैं ताकि उनका कर्ज माफ हो जाए. पहली बात तो यह कि सूखा किसानों के कामना करने के कारण नहीं पड़ता.
दूसरी बात यह कि मंत्री महोदय अगर यह समझते हैं कि कर्जमाफी से किसानों की सूखे के कारण होने वाले नुकसान की भरपाई हो जाती है तो यह उनकी नासमझी है. उल्लेखनीय है कि कर्नाटक इन दिनों सबसे खराब सूखे की मार झेल रहा है और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पहले ही मध्यम अवधि के ऋणों पर ब्याज माफ करने की घोषण कर चुके हैं.
कर्नाटक ही नहीं, देश के विभिन्न हिस्सों में प्राय: ही किसान प्रकृति की मार झेलते रहे हैं और संबंधित सरकारें उनकी मदद भी करती रही हैं. लेकिन किसानों को लेकर इस तरह की निंदनीय टिप्पणी शायद ही किसी ने की हो. वैसे कर्नाटक के मंत्री शिवानंद इसके पहले भी किसान विरोधी बयान देकर अपनी तुच्छ मानसिकता का परिचय दे चुके हैं.
उन्होंने विगत सितंबर माह में कहा था कि मृतकों के परिजनों के लिए मुआवजा राशि दो लाख रुपए से बढ़ाकर पांच लाख रुपए करने के बाद किसानों की आत्महत्या के मामले बढ़ने लगे हैं. कोई आखिर यह सोच भी कैसे सकता है कि पांच लाख रु. पाने के लालच में किसान आत्महत्या करने लगेंगे! किसानों का जीवन क्या इतना सस्ता है?
आपदाग्रस्त किसानों को दी जाने वाली मदद तो सबको दिखाई पड़ती है लेकिन आपदाओं के कारण उनको होने वाला नुकसान का अनुमान भी क्या किसानों के प्रति ओछी मानसिकता रखने वाले लगा पाते हैं? हम चाहे कितना भी विकास कर लें लेकिन पेट तो हमारा अन्नदाता किसानों द्वारा की जाने वाली खेती से ही भरता है.
हाड़तोड़ मेहनत करने के बावजूद आमतौर पर किसान किन परिस्थितयों में अपना जीवन बसर करते हैं, यह किसी से छुपा नहीं है. बंपर फसल होने के बाद भी भाव गिर जाने के कारण उसका समुचित फायदा उन्हें नहीं मिल पाता और सूखा पड़ने पर तो उनके भूखों मरने की नौबत आती ही है.
सरकारें उन्हें मदद देकर कोई एहसान नहीं करतीं, बल्कि यह उनका कर्तव्य ही है. किसानों के प्रति ऐसी घटिया मानसिकता रखने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से कृषि विपणन मंत्री पद के योग्य नहीं है और कर्नाटक सरकार को इस पर विचार करना चाहिए.