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केरल: राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव ठीक नहीं

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: November 10, 2022 19:09 IST

केरल में पिनरई विजयन के नेतृत्ववाली वामपंथी मोर्चा सरकार एवं राज्यपाल खान के बीच राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर मतभेद चल रहे हैं।

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केरल में वामपंथी मोर्चा सरकार तथा राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के बीच टकराव तेज हो गया है। केरल सरकार ने एक अध्यादेश लाकर खान को कुलाधिपति पद से हटाने का फैसला किया है। राज्यपाल तथा राज्य सरकार के बीच टकराव न मालूम कहां जाकर रुकेगा लेकिन जो कुछ हो रहा है, वह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। परस्पर विरोधी विचारधाराओं के कारण देश के लोकतांत्रिक इतिहास में राज्य सरकार तथा राज्यपाल के बीच टकराव पहले भी हुए हैं लेकिन कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो कटुता की हद तक असहमति के सुर नहीं गए।

केरल में पिनरई विजयन के नेतृत्ववाली वामपंथी मोर्चा सरकार एवं राज्यपाल खान के बीच राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर मतभेद चल रहे हैं। राज्यपाल ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का आधार देते हुए राज्य सरकार से इन सभी कुलपतियों को पदमुक्त करने की मांग की है। राज्य सरकार ने उनकी मांग को खारिज कर दिया, तब राज्यपाल ने कुलपतियों को कुलाधिपति की हैसियत से कारण बताओ नोटिस जारी किया है।

इससे विजयन सरकार बिफर गई है और उसने बुधवार को फैसला किया है कि राज्यपाल को कुलाधिपति पद से हटाने के लिए अध्यादेश लाया जाए. खान जब से राज्यपाल बने हैं, नीतिगत मसलों पर वह राज्य सरकार के फैसलों से असहमति जताते रहे हैं। समय के साथ-साथ असहमति के सुर कटुता में परिवर्तित होते जा रहे हैं। हाल ही में राज्यपाल ने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री कार्यालय स्वर्ण तस्करी मामले में लिप्त लोगों को संरक्षण दे रहा है।

व्यक्तिगत आरोप लगाने में केरल सरकार भी पीछे नहीं रही। वह खान पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा भाजपा का एजेंट बनकर काम करने का आरोप लगा रही है। हाल के वर्षों में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में जगदीप धनखड़ (वर्तमान उपराष्ट्रपति) तथा ममता बनर्जी सरकार के बीच टकराव खासा चर्चित रहा है। ममता तथा धनखड़ ने सार्वजनिक समारोहों में भले ही आपसी सौहार्द्रता बनाए रखी लेकिन उनके मतभेद व्यक्तिगत कटुता के स्तर तक पहुंच गए थे। 

अगर कुछ दशक पीछे चले जाएं तो तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में सुश्री जयललिता तथा तत्कालीन राज्यपाल डॉ. एम. चेन्नारेड्डी के बीच इतनी ज्यादा कटुता थी कि शीर्ष संवैधानिक पदों पर आसीन दो दिग्गजों के बीच सौजन्यतापूर्ण मुलाकातों के साथ-साथ व्यक्तिगत बातचीत तक बंद थी। इसे संयोग कहें या इसके पीछे कुछ राजनीतिकरण टटोलें, लेकिन यह सच है कि राज्य सरकार का मुखिया तथा राज्यपाल परस्पर विरोधी विचारधारा से ताल्लुक रखते हों तो उनमें टकराव होता रहता है। 

यह सिलसिला खत्म नहीं हो रहा है। संवैधानिक संस्थाओं के बीच टकराव का सीधा असर सरकार के कामकाज पर पड़ता है। दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी की सरकार तथा उपराज्यपाल के बीच शायद ही किसी मसले पर बात बनती हो। ‘आप’ सरकार और उपराज्यपाल के बीच असहमति के कारण दिल्ली में कई महत्वपूर्ण फैसलों पर अमल नहीं हो सका। इससे प्रशासनिक कामकाज भी प्रभावित हो रहा है।

ऐसा नहीं है कि उन सभी राज्यों में राज्यपाल के साथ टकराव है, जहां गैर-भाजपाई सरकारें हैं। छत्तीसगढ़ में भी एक कुलपति की नियुक्ति पर वहां के राज्यपाल ने आपत्ति उठाई थी लेकिन मामला ज्यादा आगे नहीं बढ़ा। यहां सामान्यत: राज्य सरकार तथा राज्यपाल के बीच सौहार्द्रपूर्ण संबंध हैं। 

राजस्थान में भी कांग्रेस की सरकार है लेकिन राज्यपाल के साथ उसका अच्छा सामंजस्य है। ओडिशा में बीजू जनता दल की सरकार है। वहां भी राज्यपाल तथा राज्य सरकार के बीच कोई समस्या नहीं है। पंजाब में ‘आप’ सरकार तथा राज्यपाल के बीच छिटपुट मसलों को छोड़ दिया जाए तो तालमेल अच्छा है। इसीलिए यह आरोप लगाना गलत होगा कि पद संभालने के पहले विशिष्ट विचारधारा से बंधे होने के कारण राज्यपाल राज्य सरकार से टकराव मोल लेते हैं।

राज्यपाल तथा राज्य सरकार दोनों ही संविधान से बंधे हुए हैं। इसीलिए जिन राज्यों में टकराव होता है, वहां आरोप-प्रत्यारोप की जगह राज्यपाल तथा राज्य सरकार को बेहतर तालमेल स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। दोनों ही यह सुनिश्चित करें कि संविधान की सीमा का किसी भी सूरत में उल्लंघन न हो।

टॅग्स :केरलपिनाराई विजयनArif Mohammad Khan
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