विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: आपराधिक तत्वों को राजनीति से रखें दूर
By विश्वनाथ सचदेव | Updated: October 4, 2024 07:02 IST2024-10-04T07:00:42+5:302024-10-04T07:02:16+5:30
जब तक बाबा को सजा नहीं मिली थी, चुनावी-राजनीति के नफे-नुकसान के लिए राजनीतिक दलों के नेता खुले आम उससे ‘आशीर्वाद’ प्राप्त किया करते थे. अब खुलेआम ऐसा करने से भले ही राजनेता बच रहे हों, पर बाबा के अनुयायियों की लाखों की संख्या देखते हुए वह इस ‘प्रभाव’ का लाभ उठाने से नहीं चूकते.

विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: आपराधिक तत्वों को राजनीति से रखें दूर
गुरमीत राम रहीम कल तक बाबा राम रहीम के नाम से जाने जाते थे. आज बहुत से लोग उन्हें बलात्कार और हत्या के अपराधी के रूप में ही पहचानना ज्यादा पसंद करते हैं. पर पंजाब और हरियाणा में आज भी बाबा राम रहीम को दैवीय शक्तियों वाले व्यक्तित्व के रूप में मानने वालों की संख्या भी कम नहीं है. और यही बात सजा भुगत रहे राम-रहीम को इन दोनों राज्यों की चुनावी राजनीति का ताकतवर मोहरा बनाए हुए है.
जब तक बाबा को सजा नहीं मिली थी, चुनावी-राजनीति के नफे-नुकसान के लिए राजनीतिक दलों के नेता खुले आम उससे ‘आशीर्वाद’ प्राप्त किया करते थे. अब खुलेआम ऐसा करने से भले ही राजनेता बच रहे हों, पर बाबा के अनुयायियों की लाखों की संख्या देखते हुए वह इस ‘प्रभाव’ का लाभ उठाने से नहीं चूकते.
शायद इसीलिए जब भी चुनाव आते हैं बीस साल की सजा भुगतने वाले बाबा को किसी न किसी तरह जेल से बाहर आने का मौका मिल जाता है. ‘पैरोल’ और ‘फरलो’ पर बाबा के छूटने की कहानी अपने आप में एक हैरान करने वाली कहानी है. लोकसभा के चुनाव से ठीक पहले राम-रहीम को पचास दिन के पैरोल पर जेल से छोड़ा गया था.
फरवरी 2022 में बाबा को 21 दिन के पैरोल पर छोड़ा गया– पंजाब में चुनाव 14 फरवरी को होने थे. बाबा को 7 फरवरी को जेल से बाहर पहुंचा दिया गया. फिर अप्रैल 2022 में हरियाणा के स्थानीय निकायों के चुनाव थे. इससे ठीक पहले, बाबा को 30 दिन के पैरोल पर रिहाई मिल गई. 15 अक्टूबर 2022 को आदमपुर में उपचुनाव से पहले बाबा को चालीस दिन का पैरोल मिला था.
2023 में हरियाणा के पंचायत चुनाव से पहले 21 जून को चालीस दिन के पैरोल पर छोड़ा गया. नवंबर 2023 में राजस्थान में चुनाव थे. तब भी बाबा को 21 दिन के लिए जेल से छोड़ा गया था. अब जबकि हरियाणा में चुनाव हो रहे हैं, बाबा ने फिर पैरोल पर छूटने के लिए अर्जी दे दी, और वह मंजूर भी हो गई है. ज्ञातव्य है कि बाबा को अपनी दो शिष्याओं के साथ बलात्कार और एक पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के अपराध में सजा मिली है.
सवाल यह उठता है कि चुनावी मौके पर बाबा जैसे अपराधियों को जेल से बाहर निकलने का मौका क्यों मिलता या दिया जाता है? क्या यह मात्र संयोग है कि अक्सर ऐसी छूट चुनाव के आस-पास मिलती है?
पैरोल पर जेल से बाहर आना किसी भी कैदी का अधिकार है और यह छूट देने का अधिकार जेल-प्रशासन को होता है, पर इस बात को नजरंदाज क्यों किया जाता है कि बाबा जैसे कैदी मतदान को प्रभावित कर सकते हैं और इसका लाभ उस वक्त की सरकार को मिल सकता है?
नियम यह कहते हैं कि अत्यंत आवश्यक हो तभी कोई राज्य सरकार किसी कैदी को पैरोल पर रिहाई की सिफारिश कर सकती है. अंतिम निर्णय जेल प्रशासन के हाथ में होता है.
संबंधित सरकार यही तर्क देकर अपना बचाव करती है, पर कौन नहीं जानता कि इस नियम और परंपरा का अक्सर उल्लंघन होता है. अक्सर यह उल्लंघन सरकारें अपने राजनीतिक स्वार्थ को देखकर करती हैं. यह सवाल तो हमें खुद से पूछना ही होगा कि न्यायालय द्वारा घोषित अपराधी को भी हम अपराधी क्यों नहीं मानते?