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अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: कश्मीर मेंं ऐतिहासिक कदम उठाने के ये हैं कारण!

By अभय कुमार दुबे | Updated: August 14, 2019 05:58 IST

चीन पहले से पाकिस्तान की तरफ झुका हुआ था और है. ट्रम्प ने कश्मीर पर मध्यस्थता करने की इच्छा व्यक्त करके भारत में बेचैनियां पैदा कर दी थीं. 

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ठळक मुद्देनेहरू के समय जम्मू में भी मुसलमान बहुसंख्या थी.कांग्रेस के ही शासनकाल में धीरे-धीरे वहां हिंदू जनसंख्या बढ़ती गई.इस समय वहां हिंदुओं के मुकाबले मुसलमान चालीस फीसदी ही रह गए हैं.

कश्मीर पर मोदी सरकार के ऐतिहासिक कदम के बाद इस समस्या से संबंधित प्रचलित समझ बदल गई है. जो नए तर्क सामने आ रहे हैं वे मुख्य तौर पर इस प्रकार हैं. 

पहला तर्क यह है कि भारत का विभाजन उत्तर-पश्चिम और पूर्व के मुस्लिम बहुमत वाले इलाकों के पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान में बदलने के जरिये हुआ था. केवल कश्मीर ही एक ऐसा मुस्लिम बहुसंख्या का इलाका था जिसे नेहरू ने तरह-तरह की युक्तियां अपना कर भारत की तरफ खींच लिया. 

उन्होंने यह काम धारा 370 के जरिये किया, और वे चाहते थे (एक बार कहा भी था) कि यह धारा धीरे-धीरे घिस जाएगी (पिछले सत्तर साल में बहुत से केंद्रीय कानून और केंद्र का संस्थागत प्रभुत्व, जैसे चुनाव आयोग और सीएजी वगैरह, कश्मीर पर लागू होने लगे थे जिससे यह धारा कमजोर हुई थी) और इस तरह से कश्मीर पूरी तरह से भारत में समरस हो जाएगा. 

उस समय जम्मू में भी मुसलमान बहुसंख्या थी, लेकिन कांग्रेस के शासनकाल में वहां धीरे-धीरे हिंदू जनसंख्या बढ़ती गई, और इस समय वहां हिंदुओं के मुकाबले मुसलमान केवल चालीस फीसदी ही रह गए हैं. यानी कांग्रेसी डिजाइन में जम्मू-कश्मीर के एक हिस्से में आबादीमूलक परिवर्तन करने की युक्ति भी कहीं न कहीं शामिल थी.

यह तर्क इससे और भी आगे जा कर दावा करता है कि भाजपा सरकार ने जो किया है वह नेहरू और इंदिरा द्वारा एक मुस्लिम बहुसंख्या वाले इलाके को भारत में बनाए रखने के पुराने कार्यभार को ही पूरा करने की तरफ निर्णायक कदम उठाया है.  

एक दूसरा तर्क यह है कि जब भाजपा ने पीडीपी के साथ गठजोड़ सरकार बनाई थी, उस समय उसके दिमाग में धारा 370 हटाने की बात नहीं हो सकती थी (बावजूद इसके कि उसके घोषणापत्र में शुरू से ही इस धारा को हटाने का वायदा दर्ज था). 

उस समय तक वह इस धारा के घिसते रहने की परिस्थितियां तैयार करने की कांग्रेसी नीति पर ही चल रही थी. फिर उसे अचानक अपने घोषणापत्र के वायदे की याद कैसे आई? यह धारा हटाना मोदी के लिए पहली नजर में राजनीतिक रूप से जरूरी नहीं लग रहा था. फिर, अगर धारा 370 हटाना ही था तो उसे पंद्रह अगस्त यानी रक्षाबंधन के बाद अमरनाथ यात्र पूरी होने के बाद भी हटाया जा सकता था. उसके लिए सिर्फ दस-बारह दिन ही तो इंतजार करना था. अचानक बिना देर किये और जल्दबाजी में यह धारा हटाने का फैसला क्यों किया गया? 

इसके जवाब में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विद्वानों ने एक गौर करने लायक तफसील पेश की है. उनका कहना है कि पिछले एक महीने में कश्मीर समस्या का तेजी के साथ अंतर्राष्ट्रीयकरण हुआ था. इस प्रक्रिया की चालक-शक्ति अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान से बाहर निकलने के लिए लिए गए पाकिस्तानी सहयोग में निहित थी. 

डोनाल्ड ट्रम्प जो पहले पाकिस्तान को एक धोखेबाज और झूठा राष्ट्र करार देकर उसकी आर्थिक और सैनिक मदद पर रोक लगाने की तरफ जा रहे थे, अचानक पाकिस्तान के साथ गलबहियां डाले नजर आने लगे थे. चीन पहले से पाकिस्तान की तरफ झुका हुआ था और है. ट्रम्प ने कश्मीर पर मध्यस्थता करने की इच्छा व्यक्त करके भारत में बेचैनियां पैदा कर दी थीं. 

तालिबान, अमेरिका और पाकिस्तान के बीच होने वाली बातचीत में भारत की कोई भूमिका नहीं थी, और न ही हो सकती थी. अमेरिका को लग रहा था कि अफगानिस्तान के युद्ध से हाथ धोने में केवल पाकिस्तान ही उसकी मदद कर सकता है. एक तरह से देखा जाए कि बुश जूनियर द्वारा मनमोहन सिंह सरकार के साथ की गई एटमी संधि के बाद यह पहला मौका था जब पाकिस्तान अमेरिका के दाएं हाथ पर दिख रहा था. भारत के लिए यह बेहद चिंता की बात थी. 

अगर कश्मीर पर अमेरिका, पाक और चीन की तिकड़ी बन जाती (जो तेजी से बनती जा रही थी) तो भारत इस नाजुक मसले पर एशिया में अलग-थलग पड़ सकता था. यही था वह मुख्य दबाव जिसने भाजपा को याद दिलाया कि उसका वायदा तो धारा 370 हटाने का था. ऐसा करके वह कश्मीर के मसले पर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय समीकरणों को पूरी तरह से बदल सकती है. इसीलिए जब हर कोई केवल यह समझ रहा था कि भाजपा ज्यादा से ज्यादा धारा 35ए के साथ कुछ छेड़छाड़ करेगी, सरकार ने वह कर दिखाया जो किसी ने सोचा भी नहीं था. 

बहरहाल, अब गेंद पूरी तरह से केंद्र सरकार के पाले में है. वह कहे कुछ भी, पर उसे पता है कि 1989 में शुरू हुआ आतंकवाद धारा 370 की देन नहीं है. न ही इस धारा ने कश्मीर के विकास में रुकावट पैदा की थी. वहां पहले से ही राज्यपाल शासन था, और केंद्र को ‘ईमानदार’ राज्यपाल की देखरेख में कश्मीर को एक आर्थिक पैकेज देने से कोई नहीं रोक सकता था. जाहिर है कि अब उसके पास कोई बहाना नहीं है. 

अमित शाह ने वायदा किया है कि वे वास्तव में कश्मीर को स्वर्ग बनाएंगे. वह स्वर्ग कैसा होगा? वैसा जैसा चीन ने तिब्बत को बनाया है, या इजराइल ने फिलिस्तीन को बनाया है - या कश्मीर एक लोकतांत्रिक स्वर्ग होगा? 

टॅग्स :जम्मू कश्मीरधारा ३७०
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