न्यायमूर्ति गवई: आदर्श न्यायाधीश की मिसाल, संवैधानिक कानून पर बहस करना आसान नहीं
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 26, 2025 06:18 IST2025-06-26T06:18:41+5:302025-06-26T06:18:41+5:30
अगली शाम मुझे मेरे अन्य वकीलों ने बताया कि युवा भूषण जी ने कितनी कुशलता से दलीलें पेश कीं, और कितनी क्षमता से अदालत में मामले को संभाला.

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एडवोकेट श्रीहरि अणे
शीर्ष पर पहुंचने का रास्ता कभी आसान नहीं होता. यह यात्रा इतनी कठिन होती है कि हमें बुनियादी रूप से बदल देती है. इसके लिए कीमत चुकानी पड़ती है. अक्सर यह यात्रा हमें पूर्वाग्रही, स्वार्थी, असहिष्णु और शुष्क बना देती है. लेकिन हमारे नए प्रधान न्यायाधीश भूषण गवई इस आसन्न नियति से बच गए. शीर्ष पर पहुंचने के बावजूद उनके मूल स्वभाव में कभी कोई बदलाव नहीं आया. वे आज भी वैसे ही सहज, मिलनसार व्यक्ति हैं जैसे चालीस साल पहले थे, जब मैं पहली बार उनसे मिला था. मुझे उन शुरुआती दिनों की याद है, जब एक युवा वकील के रूप में उन्होंने मुझसे संवैधानिक कानून से जुड़े एक जटिल मामले में परामर्श किया, और चूंकि वो तब कनिष्ठ वकील थे, उनकी ओर से बहस करने को निमंत्रित किया. हम बंबई में मुख्य न्यायाधीश की पूर्ण पीठ के समक्ष थे,
हमारी दलीलों की बहस के दूसरे या तीसरे दिन मैं बीमार पड़ गया. उस रात, जब युवा भूषण जी मुझसे मिलने आए, तो मैंने उनसे कहा कि उन्हें बहस जारी रखनी होगी क्योंकि मैं अदालत में नहीं आ पाऊंगा. अगली शाम मुझे मेरे अन्य वकीलों ने बताया कि युवा भूषण जी ने कितनी कुशलता से दलीलें पेश कीं, और कितनी क्षमता से अदालत में मामले को संभाला.
संवैधानिक कानून पर बहस करना आसान नहीं है, और पूर्ण पीठ के समक्ष बहस करना कभी भी आसान नहीं होता है. एक जूनियर वकील को तो ऐसी बहस करने लगभग कभी बुलाया नहीं जाता है. लेकिन जब उन्होंने पूरे अधिकार से संविधान की व्याख्या करना शुरू किया, तो पूर्ण पीठ को न तो मेरी अनुपस्थिति खली और न ही मेरी व्याख्या के लिए पूछना आवश्यक समझा.
वर्षों बाद, नागपुर पीठ में सरकारी वकील के रूप में, उन्होंने अपनी उसी योग्यता और क्षमता का प्रदर्शन जारी रखा. वे राज्य के लिए अच्छी तरह से तर्कपूर्ण दलीलें पेश करते थे, और अदालत उन्हें ध्यान से सुनती थी. उनकी व्यक्तिगत पृष्ठभूमि को जानते हुए - उनके पिता रिपब्लिकन पार्टी के एक प्रमुख नेता थे- मैंने भूषण जी से कई बार राजनीति की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए कहा.
उनके स्थिर स्वभाव, सहज जनसंपर्क और आकर्षक व्यक्तित्व को देखते हुए, मुझे लगा कि वे आसानी से एक प्रभावशाली राजनीतिक नेता बन सकते हैं, जो विशेष रूप से दलित समुदाय के लिए महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं. लेकिन उन्होंने हमेशा मुस्कुराते हुए कहा कि राजनीति उनके लिए नहीं है. मुझे वह समय याद है जब वे बॉम्बे हाईकोर्ट के जज बनने वाले थे,
मैंने उनसे कहा कि उनकी पृष्ठभूमि को देखते हुए, उन्हें सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करने पर विचार करना चाहिए. भूषण जी ने मुझे जो बात कही, वो मुझे अभी भी याद है. उन्होंने कहा, ‘‘शायद एक न्यायाधीश के रूप में मेरा योगदान लोगों के लिए मेरे राजनीतिक नेता के काम से कहीं अधिक उपयोगी साबित हो सकता है.’’
वे शब्द किसी भविष्यवाणी से कम नहीं थे. बंबई उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अपने 22 वर्षों में न्यायमूर्ति गवई ने ऐतिहासिक फैसले सुनाए हैं. इनमें से कुछ, विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट के फैसले उल्लेखनीय हैं. उन्होंने हमेशा बिना किसी भय या पक्षपात के कानून की व्याख्या की.
आज के समय में, जब लोग न्यायपालिका की स्वतंत्रता की सीमा, यहां तक कि उच्चतम न्यायालय के फैसलों पर राजनीति के संभावित प्रभाव को लेकर सशंकित हैं, न्यायमूर्ति गवई के विचार पूरी तरह से स्वतंत्र, गैर-पक्षपातपूर्ण, निष्पक्ष दृष्टिकोण दिखाते हैं. हाल के वर्षों में, उन्होंने अपने फैसलों से नोटबंदी को बरकरार रखा, सेवानिवृत्ति के बाद ईडी निदेशक की नियुक्ति जारी रखी और कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के पक्ष में फैसला सुनाया. उन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड, बुलडोजर से तोड़फोड़ को खारिज किया और आश्रय के अधिकार को मान्यता दी.
उन्होंने अवमानना मामले में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाई, न्यायपालिका के खिलाफ ट्वीट करने के लिए अवमानना का दोषी पाए जाने पर प्रशांत भूषण पर एक रुपए का जुर्माना लगाया और तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत देते हुए उन्हें लगातार पुलिस हिरासत में रखना और हिरासत में लेकर पूछताछ करना गैरकानूनी घोषित किया.
अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्यों को उपवर्गीकृत करने की आवश्यकता के बारे में उनके फैसले ने आरक्षण को नियंत्रित करने वाले कानून में संभावित बदलाव के लिए विचार-विमर्श के द्वार खोल दिए हैं. बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में भी, हममें से कोई भी विदर्भवासी शेगांव शहर की बेहतरी और गजानन महाराज के कार्यों के लिए सुनाए जाने वाले उनके फैसलों को नहीं भूल सकता.
कम ज्ञात तथ्य है कि बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनके लंबे कार्यकाल के दौरान, 2003 से 2019 तक उनके द्वारा दिए गए एक भी फैसले को भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पलटा नहीं गया. मुझे किसी अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की इतनी न्यायिक सटीकता के उदाहरण की जानकारी नहीं है. न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल भले ही छोटा हो, लेकिन इसे लंबे समय तक याद रखा जाएगा.
(महाराष्ट्र एवं गोवा बार काउंसिल के विशेषांक से साभार)