जम्मू-कश्मीर भले ही अभी केंद्रशासित प्रदेश हो, लेकिन उसके विधानसभा चुनावों पर सिर्फ देश ही नहीं, दुनिया की निगाह है. इसकी वजह है संविधान का बहुचर्चित अनुच्छेद 370, जो अब अतीत बन चुका है. राज्य के स्थानीय दल अब भी इसकी याद बनाए रखना चाहते हैं.
राज्य की सत्ता संभाल चुकी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी यानी पीडीपी ने तो बाकायदा अपने चुनाव घोषणा पत्र में इस अनुच्छेद को फिर से बहाल करने का वादा कर रखा है. राज्य में भाजपा के खिलाफ मोर्चा बना चुकी कांग्रेस ने ऐसा कोई वादा तो नहीं किया है, अलबत्ता उसकी पार्टी लाइन इस अनुच्छेद को बनाए रखने की ही रही है. गाहे-बगाहे उसके नेताओं के बयान इस सिलसिले में आते रहते हैं.
उसके साथ गठबंधन कर चुकी राज्य की दूसरी स्थानीय पार्टी नेशनल काॅन्फ्रेंस भी इस अनुच्छेद की बहाली की बात करती रही है. जम्मू-कश्मीर में सीमा पार से जारी आतंकी हस्तक्षेप और आतंकी घटनाओं की वजह से विशेषकर कश्मीर घाटी में चुनाव कराना चुनौतीपूर्ण है. लेकिन सेना और सुरक्षा बलों के सहयोग से चुनाव आयोग ने निष्पक्ष और भयरहित चुनाव कराने की ठान ली है.
चुनावी तारीखों का ऐलान करते वक्त मुख्य चुनाव आयुक्त ने वादा किया था कि धरती के स्वर्ग में चुनाव खुशनुमा माहौल में ही होंगे. चुनाव आयोग की घोषणा और राज्य से संबंधित अनुच्छेद 370 के अप्रभावी होने के बाद हो रहे चुनावों को लेकर राज्य के मतदाताओं में उत्साह है. कश्मीर घाटी में आतंकवाद के उभार के बाद से बमुश्किल नौ प्रतिशत तक मतदान होता रहा है.
1989 में आतंकवाद के उभार के बाद से पहली बार पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तरी कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पास बारामूला, मध्य कश्मीर में श्रीनगर और दक्षिणी कश्मीर में पीर पंजाल पर्वतों के पास अनंतनाग-राजौरी की तीन सीटों के लिए छठे चरण में संपन्न हुए चुनावों में जहां बारामूला में 59 फीसदी मतदान हुआ, वहीं श्रीनगर में 38 तो अनंतनाग-राजौरी में 53 प्रतिशत लोगों ने वोट डाला.
चूंकि विधानसभा चुनाव संसदीय चुनावों की तुलना में कहीं ज्यादा स्थानीय मुद्दों पर भी होंगे, इसलिए वोटरों की इस संख्या में और वृद्धि ही हो सकती है. जम्मू-कश्मीर की मौजूदा विधानसभा में अब 114 सीटें हैं, जिनमें से 24 सीटें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के लिए सुरक्षित रखी गई हैं. यानी चुनाव बाकी 90 सीटों के लिए हो रहा है.
इस चुनाव में नेशनल काॅन्फ्रेंस और कांग्रेस ने समझौता कर लिया है. जबकि पीडीपी अब भी अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी में है. अनुच्छेद 370 हटाने वाली भाजपा भी अकेले मैदान में उतर रही है. इस चुनाव में एक और बात नजर आ रही है. पहला मौका है, जब हुर्रियत काॅन्फ्रेंस का तनिक भी असर नहीं दिख रहा, बल्कि उसकी चर्चा भी नहीं हो रही.