Jharkhand Vidhan Sabha Chunav 2024: झारखंड के विधानसभा चुनाव में संथाल क्षेत्र में आदिवासी आबादी कम होना बड़ा मुद्दा है. हकीकत में तो पूरे देश में ही प्रत्येक आदिवासी समुदाय की संख्या घट रही है. असलियत में यह वोट के लिए उठाया जाने वाला मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय पड़ताल का विषय है. झारखंड की 70 फीसदी आबादी 33 आदिवासी समुदायों की है. यह चौंकाने वाला तथ्य आठ साल पहले ही सामने आ गया था कि यहां 10 ऐसी जनजातियां हैं, जिनकी आबादी नहीं बढ़ रही है.
ये आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षिक रूप से कमजोर तो हैं ही, इनकी आबादी में लगातार गिरावट से इनके विलुप्त होने का खतरा भी है. ठीक ऐसा ही संकट बस्तर इलाके में भी देखा गया. ध्यान रहे देश भर की दो तिहाई आदिवासी जनजाति मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, गुजरात और राजस्थान में रहती है, और यहीं पर इनकी आबादी लगातार कम होने के आंकड़े हैं.
हमें याद करना होगा कि अंडमान निकोबार और कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में बीते चार दशक में कई जनजातियां लुप्त हो गईं. एक जनजाति के साथ उसकी भाषा-बोली, मिथक, मान्यताएं, संस्कार, भोजन, आदिम ज्ञान सबकुछ लुप्त हो जाता है. झारखंड में आदिम जनजातियों की संख्या कम होने के आंकड़े बेहद चौंकाते हैं जो कि सन् 2001 में तीन लाख 87 हजार से सन् 2011 में घट कर दो लाख 92 हजार रह गई.
ये जनजातियां हैं - कंवर, बंजारा, बथुडी, बिझिया, कोल, गौरेत, कॉड, किसान, गोंड और कोरा. इसके अलावा माल्तो-पहाड़िया, बिरहोर, असुर, बैगा भी ऐसी जनजातियां हैं जिनकी आबादी लगातार सिकुड़ रही है. इन्हें राज्य सरकार ने पीवीजीटी श्रेणी में रखा है. मध्य प्रदेश में 43 आदिवासी समूह हैं जिनकी आबादी डेढ़ करोड़ के आसपास है.
यहां भी बड़े समूह तो प्रगति कर रहे हैं लेकिन कई आदिवासी समूह विलुप्त होने के कगार पर हैं.प्रत्येक आदिवासी समुदाय की अपनी ज्ञान-श्रृंखला है. एक समुदाय के विलुप्त होने के साथ ही उनका आयुर्वेद, पशु-स्वास्थ्य, मौसम, खेती आदि का सदियों नहीं हजारों साल पुराना ज्ञान भी समाप्त हो जाता है.
यह दुखद है कि हमारी सरकारी योजनाएं इन आदिवासियों की परंपराओं और उन्हें आदि-रूप में संरक्षित करने के बनिस्बत उनका आधुनिकीकरण करने पर ज्यादा जोर देती है. हम अपना ज्ञान तो उन्हें देना चाहते हैं लेकिन उनके ज्ञान को संरक्षित नहीं करना चाहते. यह हमें जानना होगा कि जब किसी आदिवासी से मिलें तो पहले उसके ज्ञान को सुनें, फिर उसे अपना नया ज्ञान देने का प्रयास करें. आज जरूरत जनजातियों को उनके मूल स्वरूप में सहेजने की है.