Jhansi medical college Fire: भंडारा, भोपाल, नई दिल्ली और झांसी?, नवजात शिशुओं की जान के साथ लापरवाही भरा रवैया
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: November 18, 2024 05:43 IST2024-11-18T05:43:17+5:302024-11-18T05:43:17+5:30
Jhansi medical college Fire: 25 मई 2024 को नई दिल्ली के विवेक विहार स्थित एक अस्पताल में हुई थी, जहां सात बच्चों ने जान गंवाई थी.

photo-ani
Jhansi medical college Fire: महाराष्ट्र का भंडारा, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल हो या फिर देश की राजधानी नई दिल्ली और वर्तमान में उत्तर प्रदेश में झांसी का सरकारी मेडिकल कॉलेज, अस्पतालों में बच्चों की सघन चिकित्सा इकाइयों के अग्निकांड थम नहीं रहे हैं. इसके ऊपर अस्पतालों में हमेशा लगने वाली आग पर उठने वाले सवाल अपनी जगह हैं. जब चंद मासूमों के जीवन की रक्षा करना मुश्किल हो तो बाकी मरीजों का हाल तो उनकी किस्मत पर छोड़ देना चाहिए. झांसी में शुक्रवार को आग से 11 नवजात की मौत हुई और 38 झुलस गए.
इससे मिलती-जुलती घटना 25 मई 2024 को नई दिल्ली के विवेक विहार स्थित एक अस्पताल में हुई थी, जहां सात बच्चों ने जान गंवाई थी. उस दौरान सामने आया था कि बेबी केयर अस्पताल अवैध रूप से चल रहा था और उसमें सिर्फ पांच बेड थे, जबकि 12 बच्चों को भरती किया गया था. नवंबर 2021 में भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल के बाल रोग विभाग में आग लगने से चार बच्चों की मौत हो गई थी, जबकि तीन बच्चे झुलस गए थे. वहां जांच में सामने आया था कि आठ मंजिला अस्पताल में आग बुझाने के लिए कोई भी इंतजाम नहीं था.
अस्पताल के पास बिल्डिंग की फायर एनओसी भी नहीं थी और न ही फायर सेफ्टी ऑडिट हुआ था. वहां आग पर काबू पाने के लिए लगे उपकरण भी काम नहीं कर रहे थे. नौ जनवरी 2021 को महाराष्ट्र के भंडारा में हुए अग्निकांड में 10 नवजातों की मौत के बाद प्रशासन ने माना था कि अस्पताल में आग से सुरक्षा के उपकरण लगाने का प्रस्ताव लंबित था.
केवल ये तीन घटनाएं और उनकी जांच के परिणाम ही देश की चिकित्सा व्यवस्था की लापरवाही को उजागर करते हैं. अस्पतालों में बिजली की व्यवस्था खराब होना आम बात है. वहां टूटे-फूटे स्विच, फैले तार सहज ही दिख जाते हैं. इनके परे तारों का सुरक्षित जाल कल्पना से परे है, जिसको लेकर अनेक निजी अस्पताल भी गंभीर रहते हैं.
वहीं दूसरी तरफ संस्था-संस्थानों के लिए ‘फायर ऑडिट’ या ‘एनओसी’ लेना कहीं मुश्किल तो कहीं असंभव जैसा काम हो चुका है. सरकारी तंत्र आग से बचने के उपायों को बताने में उनके बजट को बिगाड़ देता है. इस परिस्थिति में काम चलाऊ व्यवस्था जन्म लेती है और जिसके परिणाम हर समय सामने आते रहते हैं.
यहां यह भी अपने आप में जांच का विषय है कि सरकारी प्रमाणन न होने के पहले भी संस्थाएं काम करने लगती हैं. दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि बच्चों और महिलाओं के लिए स्थापित व्यवस्थाओं में सबसे पहले सुरक्षा महत्वपूर्ण होती है, मगर उसे ही नजरअंदाज किया जाता है.
अब आवश्यक यही है कि सुरक्षा से समझौता करने के सभी रास्तों को बंद किया जाए. मौत के बाद बचाव के उपायों पर चर्चा कर खोए इंसानों को लौटाया नहीं जा सकता है और न ही जांच का दिखावा कर बहलाया जा सकता है. इसलिए सुरक्षा हर कीमत पर आवश्यक है और हर संस्था से अपेक्षित भी है.