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जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉग: वैश्वीकरण के भविष्य को लेकर उठते सवाल

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 4, 2019 06:35 IST

निस्संदेह 24 सितंबर के ट्रम्प के  भाषण के बाद वैश्वीकरण के भविष्य पर प्रश्नचिह्न् लग गया है. अब इस बात पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना जरूरी है कि यदि  विश्व व्यापार व्यवस्था वैसे काम नहीं करती जैसे कि उसे करना चाहिए तो डब्ल्यूटीओ ही एक ऐसा संगठन है जहां इसे दुरुस्त किया जा सकता है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो दुनियाभर में विनाशकारी नई व्यापार लड़ाइयां ही 21वीं शताब्दी की हकीकत बन जाएंगी.

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जयंतीलाल भंडारी 

इस समय वैश्वीकरण के समक्ष गंभीर चुनौती दिखाई दे रही है. दुनिया में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से अलग हटकर द्विपक्षीय और क्षेत्रीय कारोबार समझौतों का ग्राफ लगातार तेजी से बढ़ता जा रहा है. पिछले माह 24 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि भविष्य वैश्वीकरण का नहीं, बल्कि राष्ट्रवाद और द्विपक्षीय आर्थिक समझौतों का है. अब वैश्वीकरण के दिन लद गए हैं. ट्रम्प ने कहा कि 2001 में चीन ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से जुड़कर वैश्वीकरण और  उदारीकरण की बात की थी, लेकिन बीते दो दशकों में इसका उल्टा हुआ. चीन ने वैश्वीकरण का दुरुपयोग किया और अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों को इससे भारी हानि उठानी पड़ी. स्थिति यह है कि मैन्युफैरिंग सेक्टर में आउटसोसिर्र्ग के चलते लाखों लोगों को अमेरिका में नौकरियां गंवानी पड़ी हैं. चीन के कारण अमेरिका में 60,000 कंपनियां बंद हुई हैं.

निश्चित रूप से ट्रम्प के द्वारा वैश्वीकरण की खिलाफत संबंधी संबोधन के बाद इन दिनों पूरी दुनिया के कोने-कोने में करोड़ों लोग डब्ल्यूटीओ के भविष्य पर चिंतित  दिखाई दे रहे हैं. इसमें कोई दो मत नहीं है कि विभिन्न अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद कोई 72 वर्षो तक जिस वैश्विक व्यापार, पूंजी प्रवाह और कुशल श्रमिकों के लिए न्याययुक्त आर्थिक व्यवस्था के निर्माण और पोषण में अपना अतुलनीय योगदान देकर डब्ल्यूटीओ को आगे बढ़ाया है, अब वही डब्ल्यूटीओ उसी अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कदमों और निर्णयों से जोखिम में है. उसके अस्तित्व और उपयोगिता का प्रश्न दुनिया के सामने खड़ा है.

निस्संदेह 24 सितंबर के ट्रम्प के  भाषण के बाद वैश्वीकरण के भविष्य पर प्रश्नचिह्न् लग गया है. अब इस बात पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना जरूरी है कि यदि  विश्व व्यापार व्यवस्था वैसे काम नहीं करती जैसे कि उसे करना चाहिए तो डब्ल्यूटीओ ही एक ऐसा संगठन है जहां इसे दुरुस्त किया जा सकता है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो दुनियाभर में विनाशकारी नई व्यापार लड़ाइयां ही 21वीं शताब्दी की हकीकत बन जाएंगी. डब्ल्यूटीओ के अस्तित्व को बनाए रखने की इच्छा रखने वाले देशों के द्वारा यह बात भी गहराई से आगे बढ़ानी  होगी कि विभिन्न देश एक-दूसरे को व्यापारिक हानि पहुंचाने की होड़ में लगने की बजाय डब्ल्यूटीओ के मंच से ही वैश्वीकरण के दिखाई दे रहे नकारात्मक प्रभावों का उपयुक्त हल निकालें. हम आशा करें कि डब्ल्यूटीओ के अस्तित्व के इस चुनौतीपूर्ण दौर में डब्ल्यूटीओ के सभी सदस्य देश इसके उद्देश्यों एवं लक्ष्यों के अनुरूप इसे एक बार फिर से पल्लवित और पुष्पित करने के लिए और अधिक सूझबूझ का परिचय देंगे.

टॅग्स :डोनाल्ड ट्रंपबिज़नेसमोदी सरकार
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