अवधेश कुमार का ब्लॉग: कश्मीर, रोग की जड़ों पर प्रहार
By अवधेश कुमार | Published: March 6, 2019 07:28 AM2019-03-06T07:28:41+5:302019-03-06T07:28:41+5:30
विगत 22 फरवरी को एकाएक भारी संख्या में जमात के नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया। इसके पहले जमात के खिलाफ ऐसी कार्रवाई कभी हुई ही नहीं। इसका परिणाम आना निश्चित है। ठीक इसी तरह की कार्रवाई हुर्रियत के खिलाफ भी हो।
जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस सहित स्थानीय पार्टियों के चेहरे से उड़ती हवाइयां और आती उद्विग्न प्रतिक्रियाएं बता रही हैं कि सरकार और कानूनी एजेंसियों के पिछले कुछ दिनों के कदम का असर गहरा हो रहा है। ऐसा लगता है जैसे जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाने के बाद हो रही कार्रवाई ने कश्मीर की सामंती चरित्र वाली दलीय और गैरदलीय राजनीति की जड़ को हिलाना आरंभ कर दिया है।
उमर अब्दुल्ला एवं फारूक अब्दुल्ला तो अपनी बौखलाहट को संभालकर अभिव्यक्त कर रहे हैं, लेकिन महबूबा के लिए यह संभव नहीं। घाटी में उनकी राजनीतिक ताकत का आधार ही ये भारत विरोधी तत्व हैं जिनको वहां पूरे सत्ता प्रतिष्ठान का वरदहस्त प्राप्त था। हालांकि जमात पर 1990 में जब तीन वर्ष के लिए प्रतिबंध लगा तो महबूबा के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद केंद्रीय गृहमंत्री थे और 1975 में फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला ने भी इनको दो वर्षो के लिए प्रतिबंधित किया था। इसलिए इन दोनों पार्टियांे को यह भी जवाब देना चाहिए कि आखिर उन्होंने तब ऐसा क्यों किया और फिर उनको किस आधार पर भारतीय भू-भाग को खंडित करने के लिए काम करने की आजादी मिलती रही।
थोड़े शब्दों में कहें तो जमात कश्मीर में अलगाववाद एवं आतंकवाद की रीढ़ है। आतंकवाद, अलगाववाद और पत्थरबाजी के पीछे की मुख्य ताकत जमात है। इससे बड़ी त्रसदी क्या हो सकती है कि इस संगठन को नष्ट करने के लिए कभी ठीक से कार्रवाई नहीं हुई। तो आतंकवाद और अलगाववाद खत्म होगा कैसे? जमात और नेशनल कॉन्फ्रेंस वहां की मुख्य शक्ति रही। पाकिस्तान के सुझाव पर 1987 में जमात ने अन्य मजहबी संगठनों संग मिलकर मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट कश्मीर बनाया था। उसके बाद से उसकी पूरी गतिविधि पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाने की है। आरंभ के ज्यादातर आतंकवादी यहीं से निकले जिन्होंने मजहब के नाम पर भारत से अलग होने के लिए हिंसा की, कश्मीरी हिंदुओं को वहां से निकलने पर मजबूर कर दिया।
विगत 22 फरवरी को एकाएक भारी संख्या में जमात के नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया। इसके पहले जमात के खिलाफ ऐसी कार्रवाई कभी हुई ही नहीं। इसका परिणाम आना निश्चित है। ठीक इसी तरह की कार्रवाई हुर्रियत के खिलाफ भी हो। हालांकि लक्ष्य लंबा एवं कठिन हो चुका है। किंतु इस तरह की संकल्पबद्ध कार्रवाई एवं इसके साथ आम जनता की विचारधारा बदलने के लिए वैचारिक अभियान से घाटी संभल सकती है।