अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद पहली बार केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. आज बुधवार को पहले चरण का मतदान था, दूसरे चरण का मतदान 25 सितंबर और तीसरे व अंतिम चरण का मतदान पहली अक्टूबर को होगा. यह चुनाव आम चुनाव से पूरी तरह अलग है और यह जम्मू-कश्मीर की राजनीति को एक नया मोड़ देगा.
ये चुनाव इसलिए भी खास हैं क्योंकि राज्य के लोग दस साल बाद पहली बार विधानसभा चुनाव के लिए वोट कर रहे हैं. जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द किए जाने और दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित होने के बाद यह यहां का पहला विधानसभा चुनाव है. अच्छी बात है कि लोकतंत्र के इस पर्व में घाटी के मतदाता बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. घाटी में चुनाव को लेकर एक नया उत्साह और उल्लास नजर आ रहा है.
इस चुनाव में अलग-अलग राज्यों में रह रहे 35 हजार से ज्यादा विस्थापित कश्मीरी पंडित भी वोट डाल सकेंगे. उनके लिए दिल्ली में 24 स्पेशल बूथ बनाए गए हैं. 2014 के चुनाव में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने सबसे ज्यादा 28 और भारतीय जनता पार्टी ने 25 सीटें जीती थीं. दोनों पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई थी. इस साल अप्रैल और मई में हुए लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर में करीब 58 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जो एक रिकॉर्ड था.
इस बार एक बड़ा बदलाव ये भी था कि किसी भी राजनीतिक दल ने इन चुनावों का बहिष्कार नहीं किया था. विधानसभा चुनाव के पहले चरण में मतदाताओं का उत्साह देखकर कहा जा सकता है कि राज्य में मतदान करना या चुनाव लड़ना अब जीवन के लिए खतरा नहीं माना जा रहा है. कश्मीर में एक समय ऐसा था जब सरकारी कर्मचारी चुनाव में शामिल होने से कतराते थे.
उनका डर निराधार नहीं था क्योंकि कई लोगों को ड्यूटी के दौरान अपनी जान गंवानी पड़ी. पूर्व अलगाववादी घटकों के प्रतिशोध के डर से मतदाता वोटिंग से परहेज करते थे. अलगाववादी समूह और उनके सहयोगी मतदान का बहिष्कार करते थे. हालांकि इस बार स्थिति उलट गई है. राज्य के लोग मानने लगे हैं कि चुनाव बदलाव लाने का एक संभावित साधन है.
पहले अलगाववादियों के चुनाव बहिष्कार के कारण कई राष्ट्रीय दलों के नेता, उम्मीदवार और समर्थक भी घर बैठना पसंद करते थे. अब बदले माहौल में क्षेत्रीय, राष्ट्रीय दलों के साथ निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या बढ़ चुकी है. यहां के निवासियों के लिए अपनी सरकार चुनने का यह मौका कभी न खत्म होने वाली हिंसा के बीच उम्मीद की नई किरण लेकर आया है.
प्रधानमंत्री ने भी घाटी के लोगों को आश्वस्त किया है कि कश्मीर को देश का एक सुरक्षित और समृद्ध हिस्सा बनाया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि अलगाववादी हिंसा के बावजूद आतंकवाद जम्मू-कश्मीर में अपनी अंतिम सांसें ले रहा है. नि:संदेह, लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार अन्य सरकारों से बेहतर होती है. इस बार यहां चुनाव में राष्ट्रवाद और अलगाववाद के वर्चस्व की लड़ाई नजर नहीं आ रही है.
चुनाव में विकास, रोजगार, भ्रष्टाचार, स्थानीय अस्मिता जैसे मुद्दों को प्राथमिकता मिल रही है. बदले माहौल में विकास, रोजगार, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दी जा रही है. चुनाव परिणाम क्या होगा, यह मतगणना के बाद तय होगा, लेकिन प्रदेश में बदल चुके राजनीतिक परिदृश्य और राज्य के लोगों के उत्साह को देखकर ऐसा लगता है कि सभी मिलकर विकसित जम्मू-कश्मीर के सपने को साकार करना चाहते हैं.