लाइव न्यूज़ :

ब्लॉग: सोशल मीडिया पर अंकुश जरूरी, केवल कठोर कानून नहीं उसे लागू कराने की व्यवस्था भी चाहिए

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: July 7, 2022 11:40 IST

सोशल मीडिया कई मौकों पर बहुत उपयोगी साबित हुआ है. हालांकि ये भी सच है कि अब इसका इस्तेमाल निरंकुश संदेशों को फैलाने और अन्य गलत चीजों के लिए भी खूब हो रहा है.

Open in App

ट्विटर ने यह कहकर अदालत की शरण ली है कि भारत सरकार अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही है, क्योंकि वह चाहती है कि ट्विटर पर जानेवाले कई संदेशों को रोक दिया जाए या हटा दिया जाए. उसने गत वर्ष किसान आंदोलन के दौरान जब ऐसी मांग की थी, तब कई संदेशों को हटा लिया गया था. लेकिन ट्विटर ने कई नेताओं और पत्रकारों के बयानों को हटाने से मना कर दिया था. 

जून 2022 में सरकार ने फिर कुछ संदेशों को लेकर उसी तरह के आदेश जारी किए हैं लेकिन अभी यह ठीक-ठीक पता नहीं चला है कि वे आपत्तिजनक संदेश कौन-कौन से हैं. सरकारी आपत्तियों को ट्विटर ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया है. उसका कहना है कि ज्यादातर आपत्तियां विपक्षी नेताओं के बयानों पर है. 

केंद्रीय सूचना तकनीक मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि सरकार ऐसे सब संदेशों को हटवाना चाहती है, जो समाज में वैर-भाव फैलाते हैं, गलतफहमियां फैलाते हैं और उन्हें हिंसा के लिए भड़काते हैं.

पता नहीं कर्नाटक का उच्च न्यायालय इस मामले में क्या फैसला देगा लेकिन सैद्धांतिक तौर पर वैष्णव की बात सही लगती है. परंतु असली प्रश्न यह है कि सरकार अकेली कैसे तय करेगी कि कौनसा संदेश सही है और कौनसा गलत? अफसरों की एक समिति को यह अधिकार दिया गया है. लेकिन अंतिम फैसला करने का अधिकार उसी कमेटी को होना चाहिए, जिस पर पक्ष और विपक्ष, सबको भरोसा हो. 

इसमें शक नहीं है कि सोशल मीडिया जहां बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है, वहीं उसके निरंकुश संदेशों ने कोहराम भी मचाए हैं. जरूरी यह है कि समस्त इंटरनेट संदेशों और टीवी चैनलों पर कड़ी निगरानी रखी जाए ताकि लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन कोई भी नहीं कर सके. सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर चलनेवाले अमर्यादित संदेशों की वजह से आज भारत जितना परेशान है, उससे कहीं ज्यादा यूरोप उद्वेलित है. 

इसीलिए यूरेापीय संघ की संसद ने हाल ही में दो ऐसे कानून पारित किए हैं, जिनके तहत कंपनियां यदि अपने मंचों से मर्यादा भंग करें तो उनकी कुल सालाना आय की 10 प्रतिशत राशि तक का जुर्माना उन पर ठोंका जा सकता है. यूरोपीय संघ के कानून उन सब उल्लंघनों पर लागू होंगे जो धर्म, रंग, जाति और राजनीति आदि को लेकर होते हैं. भारत सरकार को भी चाहिए कि वह इससे भी सख्त कानून बनाए लेकिन उसे लागू करने की व्यवस्था ठीक से करे.

टॅग्स :सोशल मीडिया
Open in App

संबंधित खबरें

भारतपीएम मोदी भारत में X की नई 'सबसे ज़्यादा पसंद की जाने वाली' रैंकिंग में सबसे आगे

ज़रा हटकेVIDEO: बीच सड़क पर रैपिडो ड्राइवर का हंगामा, रोड लेकर पत्रकार पर हमला; जानें क्या है पूरा मामला

विश्वसोशल मीडिया बैन कर देने भर से कैसे बचेगा बचपन ?

ज़रा हटकेYear Ender 2025: मोनालिसा से लेकर Waah Shampy Waah तक..., इस साल इन वायरल ट्रेड ने इंटरनेट पर मचाया तहलका

ज़रा हटकेVIDEO: ट्रेन शौचालय से बाहर निकल रही थी महिला, तभी कटिहार जंक्शन पर अचानक उमड़ी भीड़; फिर हुआ कुछ ऐसा...

भारत अधिक खबरें

भारतकुलदीप सिंह सेंगर को जमानत, उन्नाव बलात्कार पीड़िता की सोनिया और राहुल गांधी से मुलाकात, कांग्रेस नेता ने लिखा-क्या एक गैंगरेप पीड़िता के साथ ऐसा व्यवहार उचित है?

भारतनगर निकाय चुनावः नगर पंचायत और परिषद में 2431 सीट पर जीत?, 29 नगर निकाय, 2869 सीट पर बीजेपी की नजर, शिंदे और पवार को कम से कम सीट पर रणनीति?

भारतअटल जयंती पर सुशासन का भव्य संदेश, पंचकूला बना साक्षी, मुख्यमंत्री सैनी ने नए अंदाज में दी भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि

भारतकौन हैं महादेव जानकर?, कांग्रेस ने महानगर पालिका और जिला परिषद चुनावों के लिए किया गठजोड़, कौन कितने सीट पर लड़ेगा

भारतमहाराष्ट्र नगर परिषदों और नगर पंचायतों के सीधे निर्वाचित प्रमुखों को मतदान का अधिकार, मंत्रिमंडल ने कानून संशोधन की दी मंजूरी