इस्लामी देशों के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध, वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: December 8, 2020 17:26 IST2020-12-08T17:25:18+5:302020-12-08T17:26:42+5:30
भारत का व्यापारिक लेन-देन अमेरिका और चीन के बाद सबसे ज्यादा यूएई और सऊदी अरब के साथ ही है. आजकल हमारे सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे इन देशों की चार दिवसीय यात्ना पर गए हुए हैं.

सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, दोनों ने मोदी को अपने सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किए हैं. (file photo)
प्रमुख अरब देशों के साथ भारत के संबंध जितने घनिष्ठ आजकल हो रहे हैं, उतने पहले कभी नहीं हुए. यह ठीक है कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन के जमाने में नेहरू, नासिर, एनक्रूमा के नारे लगाए जाते थे और भारत व मिस्र के संबंध काफी दोस्ताना थे.
लेकिन आजकल सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात-जैसे देशों के साथ भारत के आर्थिक और सामरिक संबंध इतने बढ़ रहे हैं कि जिसकी वजह से पाकिस्तान जैसे देशों की चिंता बढ़नी स्वाभाविक है. ईरान को भी बुरा लग सकता है, क्योंकि शिया ईरान और सुन्नी देशों में तलवारें खिंची हुई हैं. लेकिन संतोष का विषय है कि ईरान से भी भारत के संबंध मधुर हैं और भारत को अमेरिका ने ईरान पर लगे प्रतिबंधों से छूट दे रखी है.
इन इस्लामी देशों से नरेंद्र मोदी सरकार की घनिष्ठता भारत के कट्टरपंथी मुसलमानों के लिए पहेली बनी हुई है. सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, दोनों ने मोदी को अपने सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किए हैं और कश्मीर व आतंकवाद के सवालों पर पाकिस्तान को अंगूठा दिखा दिया है.
पिछले छह वर्षों में भाजपा सरकार ने इन दोनों देशों से ही नहीं बहरीन, कुवैत, कतर, ओमान जैसे अन्य इस्लामी देशों के साथ भी अपने संबंध को नई ऊंचाइयां प्रदान की हैं. इस समय इन देशों में लगभग एक करोड़ भारतीय नागरिक कार्यरत हैं और वे करीब 50 बिलियन डॉलर बचाकर हर साल भारत भेजते हैं.
भारत का व्यापारिक लेन-देन अमेरिका और चीन के बाद सबसे ज्यादा यूएई और सऊदी अरब के साथ ही है. आजकल हमारे सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे इन देशों की चार दिवसीय यात्ना पर गए हुए हैं. खाड़ी के इन प्रमुख देशों में हमारे प्रधानमंत्नी और विदेश मंत्नी भी जाते रहे हैं.
ये अरब देश औपचारिक रूप से हमारे पड़ोसी देश नहीं हैं. इनकी भौगोलिक सीमाएं हमारी सीमाओं को हालांकि स्पर्श नहीं करती हैं लेकिन इन देशों के साथ सदियों से भारत का संबंध इतना घनिष्ठ रहा है कि इन्हें हम अपना पड़ोसी देश मानकर इनके साथ वैसा ही व्यवहार करें तो दोनों पक्षों का लाभ ही लाभ है.
इनमें से कुछ देशों में कई बार जाने और इनके जन-साधारण और नेताओं से निकट संपर्क के अवसर मुझे मिले हैं. मेरी सोच यह है कि इन देशों को भी मिलाकर यदि जन-दक्षेस या ‘पीपल्स सार्क’ जैसा कोई गैर-सरकारी संगठन खड़ा किया जा सके तो सिर्फ एक करोड़ नहीं, दस करोड़ भारतीयों को नए रोजगार मिल सकते हैं. सारे पड़ोसी देशों की गरीबी भी दूर हो सकती है.