ब्लॉग: चुनाव प्रचार में बच्चों का उपयोग नहीं करने का निर्देश सराहनीय

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 7, 2024 11:23 AM2024-02-07T11:23:16+5:302024-02-07T11:24:35+5:30

ऐसा नहीं है कि चुनाव प्रचार में बच्चों के इस्तेमाल को रोकने की इसके पहले कोशिश नहीं हुई है। कर्नाटक राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पिछले साल मार्च में चुनाव अभियानों और अन्य चुनाव संबंधित कार्यों के लिए बच्चों का उपयोग करने पर रोक लगाने के आदेश जारी किए थे।

Instruction not to use children in election campaign commendable | ब्लॉग: चुनाव प्रचार में बच्चों का उपयोग नहीं करने का निर्देश सराहनीय

ब्लॉग: चुनाव प्रचार में बच्चों का उपयोग नहीं करने का निर्देश सराहनीय

चुनाव प्रचार अभियान में राजनीतिक दलों द्वारा बच्चों का इस्तेमाल नहीं करने का चुनाव आयोग का निर्देश निश्चित रूप से एक स्वागतयोग्य कदम है। आयोग ने कहा है कि अगर कोई उम्मीदवार दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते पाया जाएगा तो उसके खिलाफ बाल श्रम निषेध अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। दरअसल इस बारे में नियम तो पहले से ही बने हुए थे, लेकिन उनकी सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही थीं।

आम चुनाव में राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के प्रचार के पर्चे बांटते, पोस्टर चिपकाते, नारे लगाते या पार्टी के झंडे-बैनर लेकर चलते हुए बच्चों को आसानी से देखा जा सकता था लेकिन अब चुनाव आयोग ने कहा है कि सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को बाल श्रम (निषेध और विनियमन) द्वारा संशोधित बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करना आवश्यक है।

असल में चुनावों को साफ-सुथरा और गरिमापूर्ण बनाने के लिए नियम-कानूनों की कमी नहीं है। चुनाव आयोग अगर चाहे तो मौजूदा नियमों के अंतर्गत ही ऐसा कर सकता है। देश के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन का कार्यकाल आज भी लोग भूले नहीं हैं, जिन्होंने नब्बे के दशक में दिखा दिया था कि मुख्य चुनाव आयुक्त वास्तव में कैसा होना चाहिए तथा चुनाव आयोग और उसके चुनाव आयुक्त चाह लें तो चुनावों के दौरान न केवल निष्पक्षता बरकरार रह सकती है बल्कि भयमुक्त चुनाव भी हो सकते हैं।

बहरहाल, बात जहां तक चुनाव प्रचार अभियान में राजनीतिक दलों या उसके उम्मीदवारों द्वारा बच्चों का इस्तेमाल करने की है तो ऐसा न केवल बच्चों को सस्ता श्रम मानकर किया जाता है बल्कि बच्चों के जरिये भावनात्मक तौर पर भी मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की जाती है। कोई कुख्यात अपराधी भी अगर अपने चुनाव प्रचार में बच्चों का सहारा ले तो लोगों को उसके अपराध की गंभीरता कम लगने लगती है।

यह एक तरह से बच्चों के प्रति आम लोगों की भावनाओं और संवेदनाओं का दोहन है। ऐसा नहीं है कि चुनाव प्रचार में बच्चों के इस्तेमाल को रोकने की इसके पहले कोशिश नहीं हुई है। कर्नाटक राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पिछले साल मार्च में चुनाव अभियानों और अन्य चुनाव संबंधित कार्यों के लिए बच्चों का उपयोग करने पर रोक लगाने के आदेश जारी किए थे। अब लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए जाने से उम्मीद की जानी चाहिए कि चुनावों में बच्चों के शारीरिक और भावनात्मक दोहन पर रोक लग सकेगी, उन्हें मोहरा नहीं बनाया जाएगा और वे खुलकर अपने बचपन को जी सकेंगे।

Web Title: Instruction not to use children in election campaign commendable

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे