भारतीय शिक्षा में भारतीय ज्ञान की प्रतिष्ठा

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: July 14, 2025 08:23 IST2025-07-14T08:23:39+5:302025-07-14T08:23:39+5:30

भारत के मानस का वि-उपनिवेशीकरण शिक्षा में भारतीय दृष्टि की विवेकपूर्ण संगति के सिवाय कोई और मार्ग नहीं है. भारत की शिक्षा को भारतीय दृष्टि में स्थापित करने का परिणाम भारत और विश्व दोनों के ही हित में होगा.

Indian education system Status of Indian knowledge in Indian education | भारतीय शिक्षा में भारतीय ज्ञान की प्रतिष्ठा

भारतीय शिक्षा में भारतीय ज्ञान की प्रतिष्ठा

सुनने में यह कुछ अटपटी सी बात लगती है कि भारतीय शिक्षा को अब ‘भारतीय’ ज्ञान-परम्परा के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए पहल की जा रही है.  इसे लेकर आम आदमी के मन में कई सवाल खड़े होते हैं : भारतीय होने का क्या अर्थ है? जो ज्ञान-परम्परा स्वतंत्र भारत में चलती रही है वह किस अर्थ में भारतीय नहीं थी या कम भारतीय थी? भारतीय ज्ञान-परम्परा का स्वरूप क्या है? वह किस रूप में दूसरी ज्ञान-परम्पराओं से अलग है? 

इस भारतीय ज्ञान-परम्परा की विशिष्टता क्या है जो हम इसकी ओर मुड़ें? हालांकि इन प्रश्नों का उत्तर बहुत कुछ राजनीतिक पसंद और नापसंद पर निर्भर करता है पर आज के ज्ञान-युग में सामर्थ्यशाली होने के लिए इस पर विचार करना भारत के लिए किसी भी तरह से वैकल्पिक नहीं कहा जा सकता.  

शिक्षा भारत में हो रही है, वह भारतीय शिक्षार्थियों के लिए है और भारतीयों द्वारा ही दी जा रही है. यह लोक-रुचि और लोक-कल्याण की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. उस पर सार्वजनिक विचार होना ही चाहिए. तटस्थता और उपेक्षा का नजरिया छोड़ कर इस पर अच्छी तरह से ध्यान देना जरूरी है. आखिरकार यह पूरे समाज की मनोवृत्ति, आचरण और देश के सांस्कृतिक अस्तित्व का सवाल है.

शिक्षा की दृष्टि से यह एक गंभीर तथ्य हो जाता है कि हम आलोचनात्मक रूप से चिंतनहीन और सर्जनात्मकता की दृष्टि से पंगु होते जा रहे हैं. शैक्षिक निष्पादन चिंताजनक रूप से घट रहा है. राजनीति में मानवीय मूल्य दृष्टि की बढ़ती कमी आज सबको खटक रही है.  सामाजिक जीवन के अनेक क्षेत्रों में चिंताएं बढ़ रही हैं. नागरिक जीवन से जुड़ी व्यवस्थाएं चाक-चौबंद नहीं हैं.  ऐसे में शिक्षा पर बहुतों की नजरें टिकी हैं और उसके सुधार से बड़ी आशाएं जगती हैं.

यह तो तय है कि यदि पश्चिमी खर्चीले और अंशत: दिशाहीन तथा आयातित ज्ञान को थोपे जाने से मुक्ति की इच्छा है और अपने देश के ज्ञान, कौशल और अस्मिता को बंधक से छुड़ाने का मन है तो शिक्षा में बदलाव लाना ही होगा.  यह भी निर्विवाद है कि देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मानसिक स्वराज जरूरी है और अपनी ज्ञान-व्यवस्था को पुनर्जीवित करना होगा.  

ओढ़ी हुई आधुनिकता की जगह नवोन्मेषी हो कर समकालीन परिस्थितियों में सकारात्मक परिवर्तन भी लाना होगा. हमको सांकेतिक और सजावटी बदलाव के भुलावे से आगे बढ़ कर परिस्थितियों का सामना करना होगा और शिक्षा में जरूरी रूपांतर भी लाना होगा क्योंकि मानसिक गुलामी कई तरह से देश को आहत करती आ रही है जिसका बहुतों को पता भी नहीं होता. 

भारत के मानस का वि-उपनिवेशीकरण शिक्षा में भारतीय दृष्टि की विवेकपूर्ण संगति के सिवाय कोई और मार्ग नहीं है. भारत की शिक्षा को भारतीय दृष्टि में स्थापित करने का परिणाम भारत और विश्व दोनों के ही हित में होगा.

Web Title: Indian education system Status of Indian knowledge in Indian education

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