ब्लॉग: जिन्ना को लेकर आरएसएस का नजरिया

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: March 15, 2022 12:11 IST2022-03-15T12:05:27+5:302022-03-15T12:11:10+5:30

अहमदाबाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के अधिवेशन की प्रदर्शनी में गुजरात के 200 विशिष्ट व्यक्तियों के चित्र लगाए गए. उसमें महात्मा गांधी के साथ जिन्ना का चित्र भी लगा हुआ था. 

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ब्लॉग: जिन्ना को लेकर आरएसएस का नजरिया

Highlightsअहमदाबाद में आरएसएस की प्रदर्शनी में महात्मा गांधी के साथ जिन्ना का चित्र भी लगा हुआ था.सच्चाई तो यह है कि जिन्ना अगर नहीं होते तो भारत के टुकड़े ही नहीं होते.क्या आज का पाकिस्तान वही है, जिसका सपना जिन्ना ने देखा था?

मोहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान का राष्ट्रपिता कहा जाता है, जैसे महात्मा गांधी को भारत का राष्ट्रपिता माना जाता है लेकिन भारत के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नजर में जिन्ना से अधिक नापसंद व्यक्ति कौन रहा है? 

जून 2005 में जब भाजपा के अध्यक्ष और पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी कराची स्थित जिन्ना की मजार पर गए तो भारत में इतना जबर्दस्त हंगामा हुआ कि उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. लेकिन अब देखिए कि सरसंघचालक मोहन भागवत के नेतृत्व में संघ का रवैया कितना उदारवादी हो गया है. 

अहमदाबाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के अधिवेशन की प्रदर्शनी में गुजरात के 200 विशिष्ट व्यक्तियों के चित्र लगाए गए. उसमें महात्मा गांधी के साथ जिन्ना का चित्र भी लगा हुआ था. 

उसके नीचे लिखा था, जिन्ना पक्के राष्ट्रभक्त थे लेकिन बाद में धर्म के आधार पर उन्होंने भारत का विभाजन करवाया. 

सच्चाई तो यह है कि जिन्ना अगर नहीं होते तो भारत के टुकड़े ही नहीं होते. भारत के लोगों को यह पता ही नहीं है कि जिन्ना कांग्रेस के सबसे कट्टर धर्मनिरपेक्ष नेताओं में से एक रहे थे. 

वे कहते थे, ‘मैं भारतीय पहले हूं, मुसलमान बाद में.’ उन्होंने तुर्की के खलीफा के समर्थन में चल रहे ‘खिलाफत आंदोलन’ का विरोध किया था जबकि इस घोर सांप्रदायिक आंदोलन का गांधीजी समर्थन कर रहे थे. 1920 में नागपुर के कांग्रेस के अधिवेशन में इस मुद्दे पर जिन्ना बागी हो गए.

गांधी और जिन्ना की यह टक्कर ही आगे जाकर पाकिस्तान के जन्म का कारण बनी. गांधी और जिन्ना, दोनों गुजराती, दोनों वकील. कट्टरपंथी लोग जिन्ना को ‘काफिरे-आजम’ कहते थे और सरोजनी नायडू उन्हें ‘हिंदू-मुस्लिम एकता का राजदूत’ कहती थीं. 

वे भारत में फैले गांधीजी के वर्चस्व से इतने खफा हो गए थे कि राजनीति से संन्यास लेकर लंदन में जा बसे थे लेकिन लियाकत अली खान उन्हें 1933 में लंदन से भारत खींच लाए. 

उन्होंने मुस्लिम लीगी नेता के तौर पर सारे भारत को भट्ठी पर चढ़ा दिया, खून की नदियां बह गईं और भारत के टुकड़े हो गए लेकिन जिन्ना ने खुद स्वीकार किया कि ‘यह उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी.’ 

पाकिस्तान की संविधान सभा में उन्होंने अपने पहले ऐतिहासिक भाषण में धर्म-निरपेक्षता की गुहार लगाई, हिंदू-मुस्लिम भेदभाव को धिक्कारा और पाकिस्तान को प्रगतिशाली राष्ट्र बनाने का आह्वान किया. 

क्या आज का पाकिस्तान वही है, जिसका सपना जिन्ना ने देखा था? पहले उसने अपने दो टुकड़े कर लिये और जब से वह पैदा हुआ है, उसका जीवन कभी अमेरिका, कभी चीन की चाकरी में ही बीत रहा है.

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