शरद जोशी का ब्लॉग: साहित्यिक चोरी का बढ़ता चलन

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 6, 2019 09:04 AM2019-04-06T09:04:04+5:302019-04-06T09:04:04+5:30

साहित्यिक चोरी सभी पैमाने पर अनेक तरह की होती है. कथानक चुराए जाते हैं. वर्णन चुराए जाते हैं.  भाव, कल्पनाएं और उपमाएं भी चुराई जाती हैं. कहने को यह कहा जा सकता है कि वायुमंडल में अनेक विचार हैं.

Increasing trend of plagiarism | शरद जोशी का ब्लॉग: साहित्यिक चोरी का बढ़ता चलन

प्रतीकात्मक तस्वीर

‘आप हमारे पत्र के लिए कुछ रचना दीजिए.’

‘क्या दूं? लेख दूं? कहानी हूं? कविता दूं- क्या दूं?’

‘कहानी दे दीजिए.’

‘किसकी कहानी दूं- यशपाल की दूं, कृश्न चंदर की या प्रेमचंद की कहानी दूं?’ 

यहां पर तो यह खैर है कि रचना देनेवाले स्वयं पूछ रहे हैं कि किसकी रचना को अपनी मौलिक कहूं, परंतु प्राय: यह होता है कि दूसरे की रचना में केवल नाम सुधार कर भेज दिया जाता है. ‘दि डिलिनिटर’ के संपादक टाउनी को एक उत्तर यह भेजना पड़ा था कि ‘आपकी रचना मिली. वह बहुत सुंदर है. इतनी सुंदर कि मैं स्वयं उसे दो वर्ष पूर्व लिख चुका था.’

ये तो वो चोरी है जहां लेखक महोदय पूरी रचना ही अपने नाम पर रजिस्टर करवा लेते हैं और मौलिक कलाकार बनते हैं. कई बार संपादक उसे पहले पढ़ा हुआ होता है. इलाहाबाद की एक पत्रिका में ‘अ™ोय’ के नाम से अनेक कहानियां प्रकाशित हुईं और बाद में कहीं जाकर पता लगा कि लेखक अ™ोय न होकर कोई दूसरा व्यक्ति था.

देहली की एक निम्न कोटि की पत्रिका में हमें मजेदार चीज देखने को मिली. एक ही प्रति में कृश्न चंदर की तीन कहानियां संपादक ने प्रकाशित कीं. लेखक के स्थान पर कोई नाम नहीं था. कहानी के शीषर्क बदल दिए गए थे. जैसे ‘आंगी’ का शीर्षक ‘परदेशी की याद’ कर दिया गया था.

साहित्यिक चोरी सभी पैमाने पर अनेक तरह की होती है. कथानक चुराए जाते हैं. वर्णन चुराए जाते हैं.  भाव, कल्पनाएं और उपमाएं भी चुराई जाती हैं. कहने को यह कहा जा सकता है कि वायुमंडल में अनेक विचार हैं. संभव है कि दो श्रेष्ठ कलाकारों को एक ही विचार आया हो! होता यह है कि जब नए लेखक दूसरे की रचना में अपनत्व अनुभव कर खुद लिख लेते हैं तो वे चोर कहलाए जाते हैं और जब महान लेखक चोरी करते हैं तो कहा जाता है कि आपका अध्ययन बहुत विशाल है. शेक्सपियर के कई कथानक पहले की लिखी रचना के ही हैं पर उससे कलाकार की महानता कम नहीं पड़ती.

यशपाल कहते हैं कि मैं जब देखता हूं कि यह कहानी लेखक अच्छी नहीं बना सका है तो स्वयं ही लिख देता हूं. इसके सिवाय कुछ लेखक, थोड़ा-सा अंतर करने में प्रतिभाशाली होते हैं. पात्रों के नाम बदल देते हैं, थोड़ा कथानक ठीक कर देते हैं, आदि. इस प्रकार की रचनाओं को पकड़ना जरा कठिन होता है. पाठक पकड़ लें, पर प्राय: संपादक नहीं पकड़ पाते. पर अभी चोरी कुछ मजेदार तरीके की नजर आई. स्वयं रचना लिखकर चूंकि वह यों प्रकाशित नहीं होगी सो किसी प्रसिद्ध लेखक का नाम लिख दिया जाता है

Web Title: Increasing trend of plagiarism

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