ब्लॉग: रैगिंग के सामने आ रहे मामले बढ़ा रहे चिंता
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: June 28, 2024 14:04 IST2024-06-28T14:02:34+5:302024-06-28T14:04:10+5:30
मामला राजस्थान के डूंगरपुर मेडिकल कॉलेज का है. पीड़ित के गुर्दे में इन्फेक्शन होने के बाद उसे चार बार ‘डायलिसिस’ करवाना पड़ा. एक और मामला हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में एक सरकारी मेडिकल कॉलेज के एमबीबीएस के कुछ छात्रों के साथ उनके सीनियर छात्रों की रैगिंग का है.

ब्लॉग: रैगिंग के सामने आ रहे मामले बढ़ा रहे चिंता
पूर्वी अरुणाचल के बोर्डिंग स्कूल में रैगिंग का मामला सामने आया है. यहां सीनियर स्टूडेंट्स ने जूनियर्स को इतना पीटा कि उनके शरीर पर निशान पड़ गए. इस मामले की तस्वीरें भी सामने आई हैं. घटना के बाद स्कूल के पांच बच्चों को सस्पेंड कर दिया गया है. रैगिंग की घटना में दर्जनों बच्चे घायल हो गए हैं. हाल ही का एक मामला राजस्थान के मेडिकल कॉलेज से आया है.
यहां सीनियर छात्रों ने जूनियर की ऐसी रैगिंग की कि उसके गुर्दे में इन्फेक्शन हो गया. मामला राजस्थान के डूंगरपुर मेडिकल कॉलेज का है. पीड़ित के गुर्दे में इन्फेक्शन होने के बाद उसे चार बार ‘डायलिसिस’ करवाना पड़ा. एक और मामला हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में एक सरकारी मेडिकल कॉलेज के एमबीबीएस के कुछ छात्रों के साथ उनके सीनियर छात्रों की रैगिंग का है.
मामले में चार सीनियर ट्रेंड फिजिशियंस को कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया. आखिर क्या वजह है कि रैगिंग के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. थोड़े-बहुत समय के अंतराल में मामले सामने आते ही रहते हैं. देश के कॉलेज और यूनिवर्सिटी कैंपस में सीनियर और फ्रेशर के बीच रैगिंग एक आम बात बनती जा रही है. यहां तक कि कुछ मामलों में पीड़ित छात्र डर, निराशा, दुःख और अपमान की वजह से आत्महत्या तक कर लेते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2001 में ही रैगिंग पर प्रतिबंध लगा रखा है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की तरफ से नियम लागू किए गए हैं. पर, सरकार की अनेक कोशिशों के बावजूद देश में रैगिंग की घटनाएं सामने आती ही रहती हैं. चिंता की बात है कि सख्त अदालती निर्देशों के बावजूद रैगिंग अभी भी कॉलेजों में नासूर बनकर नवोदित छात्रों का भविष्य बर्बाद कर रही है.
दरअसल, आरोपियों को सजा नहीं मिलना ही उनका मनोबल बढ़ाता है. नैतिक संस्कारों की कमी भी इसकी वजह है. सरकार को चाहिए कि छात्रों को दंडित करने के साथ-साथ रैगिंग रोकने के लिए बनी व्यवस्था पर भी लगाम कसे ताकि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो. शैक्षणिक समाज को स्पष्ट संदेश मिले कि अगर बच्चों के साथ कुछ अनहोनी हुई तो शिक्षकों और प्रबंधकों को भी बख्शा नहीं जाएगा.
ऐसी घटनाओं के पीछे संबंधित अधिकारियों की निष्क्रियता भी कारण है. इसलिए उन पर भी सख्त कार्रवाई होनी ही चाहिए. अब जबकि कॉलेज और यूनिवर्सिटीज में एडमिशन प्रक्रिया चल रही है, ऐसे में नए विद्यार्थियों को रैगिंग को लेकर नियम-कानून जानना चाहिए और पुराने छात्रों को यह पता होना भी जरूरी है कि अगर उन्होंने कॉलेज में दाखिला लेने वाले किसी नए छात्र-छात्रा के साथ रैगिंग की तो सजा भुगतनी होगी.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद यूजीसी ने इस मामले में किसी भी तरह की लापरवाही न बरतने की हिदायत दे रखी है. अगर पीड़ित स्टूडेंट एंटी रैगिंग कमेटी की ओर से लिए गए एक्शन से संतुष्ट नहीं है तो वह निकटतम पुलिस स्टेशन में शिकायत भी दर्ज करवा सकता है. अगर आपके साथ कोई रैगिंग या आपको कोई परेशान कर रहा तो आप सीधे कॉल या ईमेल के जरिये एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन से संपर्क कर सकते हैं.