वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: सरकारी अस्पतालों में कैसे हो सुधार?
By वेद प्रताप वैदिक | Published: May 11, 2022 03:46 PM2022-05-11T15:46:22+5:302022-05-11T15:48:02+5:30
देश के कस्बों और गांवों के लोगों को लंबी-लंबी यात्रा करनी पड़ती है, सरकारी अस्पताल खोजने के लिए. करोड़ों लोग तो ऐसे हैं, जिन्हें अपने गंभीर रोगों के बारे में बरसों कुछ जानकारी ही नहीं होती, क्योंकि भारत में जांच और चिकित्सा बहुत महंगी है. होना तो यह चाहिए कि देश में चिकित्सा बिल्कुल मुफ्त हो.
भारत में सरकारी अस्पतालों की हालत देखकर हमारे केंद्र और राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों को दुख क्यों नहीं होता? ऐसा नहीं है कि उन्हें इन अस्पतालों की हालत का पता नहीं है. उन्हें अगर पता नहीं है तो वे 'राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5' की ताजा रपट जरा देख लें. उसके मुताबिक बिहार के 80 प्रतिशत मरीज अपने इलाज के लिए गैरसरकारी अस्पतालों में जाते हैं.
उन्हें पता है कि इन निजी अस्पतालों में जबर्दस्त पैसे लगते हैं लेकिन जान बचाने की खातिर वे उसे बर्दाश्त करते हैं. वे पैसे उधार लेते हैं, दोस्तों और रिश्तेदारों के कृपा-पात्र बनते हैं और मजबूरी में मंहगा इलाज करवाते हैं. ये लोग कौन हैं? निजी अस्पतालों में क्या कोई मजदूर या किसान जाने की हिम्मत कर सकता है? क्या तीसरे-चौथे दर्जे का कोई कर्मचारी अपने इलाज पर लाखों रुपए खर्च कर सकता है?
इन अस्पतालों में इलाज करवाने वाले लोग या तो संपन्न होते हैं या मध्यम वर्ग के होते हैं. ये ही ज्यादा बीमार पड़ते हैं. जो मेहनतकश लोग हैं, वे बीमार कम पड़ते हैं लेकिन जब पड़ते हैं तो उनके इलाज का ठीक-ठाक इंतजाम किसी भी राज्य में नहीं होता. उत्तर प्रदेश में भी 70 प्रतिशत मरीज निजी अस्पतालों में जाते हैं. सरकारी अस्पतालों में भयंकर भीड़ होती है. दिल्ली के प्रसिद्ध मेडिकल इंस्टीट्यूट में अगर आप जाएं तो आपको लगेगा कि किसी दमघोंटू हाॅल में मेले-ठेले की तरह आप धक्के खाने को आ गए हैं.
देश के कस्बों और गांवों के लोगों को लंबी-लंबी यात्रा करनी पड़ती है, सरकारी अस्पताल खोजने के लिए. करोड़ों लोग तो ऐसे हैं, जिन्हें अपने गंभीर रोगों के बारे में बरसों कुछ जानकारी ही नहीं होती, क्योंकि भारत में जांच और चिकित्सा बहुत महंगी है. होना तो यह चाहिए कि देश में चिकित्सा बिल्कुल मुफ्त हो. सरकार ने अभी पांच लाख रुपए के स्वास्थ्य बीमे की जो व्यवस्था बनाई है, उससे लोगों को कुछ राहत जरूर मिलेगी लेकिन इससे क्या सरकारी अस्पतालों की दशा सुधरेगी?
सरकारी अस्पतालों की दशा सुधारने का उपाय मैंने कुछ वर्ष पहले एक लेख में सुझाया था. सुझाव यह था कि राष्ट्रपति से लेकर चपरासी तक और सांसद से लेकर पार्षद तक सभी के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए कि वे अपना इलाज सरकारी अस्पतालों में ही करवाएं. इसके अलावा यदि आयुर्वेद, होमियोपैथी, यूनानी और प्राकृतिक चिकित्सा को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया जाए और उनमें अनुसंधान बढ़ाया जाए तो भारत की चिकित्सा पद्धति दुनिया की सबसे सस्ती, सुगम और सुघड़ चिकित्सा पद्धति बन सकती है.